बच्चों के साथ
न दवा न चम्पी किसी भी तरह से आराम नहीं मिल रहा था . सबेरे से सिर फट रहा था. सो भी नहीं सकती थी, क्यों कि बेटी के आने का समय हो चला था. तभी वह मेरी ढाई बरस की रानी स्कूल से वापस आ गई और उसने
अपनी ही तरह से अपनी बात रखी ! मसलन मुझे गोद मे लो
फिर इस कमरे से उस कमरे ,कीचन मे घुमाती रही यह नहीं
वो चाहिए, नहीं नहीं आईस्क्रीम चाहिए. उसकी मांगें पूरी होतीं कि तब तक बेटा भी स्कूल से आ गया, और बोला, मम्मा जल्दी से सत्तू के पराठे बनाओ , बनाया, बेटी ने अपना दुख भैया को सुनाया,कि उसे मम्मी ने आइसक्रीम नहीं दिलाया, भैया ने कहा मे दिलाऊंगा
हालाकि भैया अभी कुल बारह बरस के ही हैं। मेरा आज का दिन सर दर्द के बावजूद बच्चों के साथ आनन्द से बीता.ये दोनो ना होते तो दर्द तो होता पर यह आनन्द नहीं.
3 टिप्पणियां:
बच्चों के साथ समय बिताना का अपने आनन्द है।
उन्मुक्त जी आप सही कह रहे हैं।
क्या बात है.. बहुत सुन्दर..
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