सोमवार, 14 अप्रैल 2008

चार के कुनबे में मानस


हम अकेले हैं...

हर बात के फायदे के साथ साथ नुकसान भी होते हैं जैसा कि
आज कल माँ-बाप अक्सर यह कहते पाए जाते हैं कि अच्छा है हम अपने हिसाब से अकेले रहते हैं। सब की तरह मैं भी सोचती हूँ...। पर सच तो यह है कि संयुक्त परिवार हर समस्या का समाधान होता है ..इस बात को मैं शिद्दत से महसूस कर रही हूँ....। जहाँ मानस की पढ़ाई में भानी के खलल डालने पर मानस को परेशानी होती है और उन्हें ठीक से पढ़ने के लिए भानी के सो जाने तक रुकना पड़ता है....। भानी जिद करती है कि भइया को नहीं मुझे पढ़ाओ.....साथ ही ट्यूशन जैसी बातों को लेकर मानस के साथ ही हम दोनों भी उलझन में रहते हैं...वहीं जो मानस पिछले साल तक ट्यूशन लगाने का विरोध करते थे और ट्यूटर के आने की बात पर रोने लगे थे आज ट्यूटर लगाने की बात कर रहे हैं.....।

इस बाबत मैं सोच रही हूँ कि यदि मानस संयुक्त परिवार में रह रहे होते यानी कि उनके सारे ताऊ ताई बड़े भाई बहन सब एक साथ रह रहे होते तो तो शायद उनकी समस्या का हल निकल जाता उन्हे भानी के सोने का इंतजार न करना पड़ता....और भानी भी कभी दादी के साथ तो कभी ताई के साथ खेलती....। हमें वो दिन याद हैं जब हम पढ़ाई में कहीं फंसते थे...और माँ और पिता कहीं व्यस्त होते थे तो हमारी समस्याएँ कभी बाबा दादी सुलटाते थे थे तो कभी चाचा-चाची या घर में आया गया कोई और मेहमान भी...हमारा तारण हार बन जाता था....।

मानस का कहना है कि भानी के कारण उसका मन ही पढ़ाई से हट जाता है...और हमें उसकी बातों में सच्चाई दिख भी रही है....मैं अक्सर सोचती हूँ कि अकेले रहने के जितने फायदे नहीं हैं उससे कहीं अधिक झमेला है । यह अकेले का कुनबा हमारा अकेला नहीं है....करोड़ों लोग हैं जो कि इस समस्या के शिकार हैं...और दादा-दादी केवल दीवारों पर लटक कर रह गए हैं....या एलबम और वीडियों में बंद हैं....और बच्चे परेशान हैं.....और ट्यूटर की राह देख रहे हैं...। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा। मानस को ट्यूटर के हाथ में छोड़ने का मन नही है...पर सोच रही हूँ कि उनकी समस्या अगले दिन पर अँटकी न रह जाए इस लिए एक ट्यूटर रख ही दूँ.....क्या करूँ...
मानस अभी सातवी में गए हैं और भानी अभी केजी में यानी मॉन्ट टू में हैं । चित्र मानस और भानी का है ।


गुरुवार, 10 अप्रैल 2008

साथी की तारीफ करें

सुख-दुख

अक्सर ऐसा होता है जब हम बहुत खुश होते हैं और फिर अचानक हम दुखी भी हो जाते हैं....दुख सुख के बीच अजीब घालमेल हो जाता है.... गडमड्ड हो जाता है.....ऐसा ही कल भी हुआ...सुबह मेरे बोधिसत्व अपने काम से कम्प्यूटर पर थे और मैं घर के काम निपटा कर कुछ पढ़ रही थी...तभी बोधि उठ कर आए और मेरी तारीफ करने लगे....वो कहने लगे आभा तुम बहुत कुछ जानती हो बस बच्चों को बड़ा होने दो हम तुम मिल कर काम करेंगे....बहुत कुछ करना है....मैं तुम्हारे साथ हूँ...थोड़ा इंतजार और करो.....वह दिन भी आएगा जब तुम अपने मन का काम कर पाओगी...।

मैं बहुत खुश हुई .....ऐसा लगा जैसे मैंने जो चाहा था पा लिया.... बोधि चले गए और मैं खुशी के मारे रोने लगी.....मैं और जोश में आकर किताब के बाकी के 80 पेज भी पढ़ गई....दिन बहुत अच्छा बीता....पति की एक तारीफ ने मुझे नई ऊर्जा से भर दिया....।
लेकिन देर रात गए जब ब्लॉग पर बैठी तो नीलिमा और सुजाता के पोस्ट ने मन को फिर उदास कर दिया...कि यह क्या है....।

मैंने माना यही है जीवन यही है जीवन की सच्चाई...यही है सुख दुख का संघर्ष...जिसमें एक कैसी भी तारीफ एक उत्साह का शब्द भी आपको मैदान में लड़ने के लिए शक्ति दे सकता है और एक दुत्कार भरा संबोधन आपको हताशा और कुंठा से भर सकता है...।

मैं सभी ब्लॉगरों से यही कहना चाहूँगीं कि यह नारी-नर वाद और बटन न टाँकने जैसी सस्ती बातें छोड़ कर एक दूसरे का सहयोग करें॥अपनी शक्ति को और हुनर को तो पहचाने ही साथ वाले के गुणों को भी तरजीह दें... उसे बढ़ावा दें न कि सपना की डायरी के पन्नों को हताशा से भरें.......बल्कि उसे डायरी के पन्नों में सुख के लिए भी जगह छोड़ें।

मंगलवार, 1 अप्रैल 2008

कहानीकारा भानी के बारे में

भानी की कहानी
आजकल सभी बच्चे अद्भुत क्षमता से भरे होते हैं उनमें से एक मेरी बेटी भानी भी है। भानी की तरह ही सभी बच्चे खाने पीने में भी बहुत आना कानी करते हैं। भानी लगभग एक महीने से खाने पीने के मामले में बहुत परेशान कर रही हैं। कल रात मैंने भानी से कहा कि नहीं खाओगी तो भूत आएगा और खूब डराएगा ......हा।हा।हा......करके और भरपेट खाओगी तो भगवान जी आएँगे....विद्या बुद्धि देंगे....ताकत देंगे.....। भानी ने थोड़ा बहुत खाया और सो गईं।
सुबह उठ कर भानी ने कहा...मम्मी भगवान जी भी आए थे और भूत भी आया था। भगवान जी ने कहा कि खाना खाओ और भूत ने कहा कि पानी पियो मैंने पूछा बस इतनी ही बात हुई। भानी ने कहा कि नही....भूत ने मुझे डराया भी नहीं और बोला कि बुक में काचा कूची काचा कूची करके बुक उड़ा दो...और भगवान जी ने कहा कि तुम नीट- नीट लिखो बुक में । सुबह से भानी की कहानी जारी है....। तो हुई न भानी कहानीकारा ।
भानी बिल्डिंग में पीटी उषा पार्ट टू के नाम से जानी जाती हैं...वो उम्र में अपने से तीन-चार साल बड़े बच्चों को भी दौड़ में हरा देती हैं...और हारे हुए बच्चों के माँ -बाप ने भानी को यह नाम दिया है...।
भानी आज कल बिल्डिंग में सब को समझाने का काम भी करती हैं...कोई किसी पर चिल्लाए नहीं...डाँटे नहीं...सब शांत रहें...एक दम शांत। और बड़े बच्चे भी भानी से शांति का पाठ सुन कर खुश रहते हैं...।
भानी की बातें हजार हैं जो खत्म न हों...कभी....इतनी बातें....आगे बताएँगे भानी और बातें....
भानी अभी साढ़े तीन साल की हैं....।