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मंगलवार, 15 जून 2010
भानी के ग्यारह रूप...... देखिए
ये ग्यारह रूप हैं मेरी दुलारी के। बहुत दिनों से सोच रही थी।
पिछले बहुत दिनों से मैंने भानी के बारे में न कुछ लिखा न कोई चर्चा की। आज भानी की पसंद की कुछ तसवीरें छाप रही हूँ। देखिए और मेरी इस प्यारी बेटी को अपना आशीष दीजिए
वाह आभा जी आपकी आभा देखकर मन बहुत खिल उठा। भानी के ये ग्यारह रूप देखकर मैं यह कविता कर बैठा। बहुत बहुत आशीष और प्यार के साथ भानी बिटिया के लिए- भाविनी हैं कि भानी हैं, लगती तो गुड़-धानी हैं।
चेहरे से टपके मासूमी, लगतीं हमको नानी हैं।
कभी बनें जोकर जैसी, कभी कभी तो रानी हैं।
पहन टोपी रास्ता रोकें, इनकी ये मनमानी है।
बिना झप्पी जानें न दें, बिटिया बड़ी सयानी है। 0 राजेश उत्सांही
आशीर्वाद के रूप में दुष्यंत जी एक कविता याद आ रही है जो मुझे बहुत पसन्द है:
-- जा तेरे स्वप्न बड़े हों। भावना की गोद से उतर कर जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें। चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये रूठना मचलना सीखें। हँसें मुस्कुराऐं गाऐं। हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें उँगली जलायें। अपने पाँव पर खड़े हों। जा तेरे स्वप्न बड़े हों। ---
भानी के स्वप्नों के बड़े होने और उन के साकार होने की कामना के साथ ......
26 टिप्पणियां:
वाह आभा जी आपकी आभा देखकर मन बहुत खिल उठा। भानी के ये ग्यारह रूप देखकर मैं यह कविता कर बैठा। बहुत बहुत आशीष और प्यार के साथ भानी बिटिया के लिए-
भाविनी हैं कि भानी हैं,
लगती तो गुड़-धानी हैं।
चेहरे से टपके मासूमी,
लगतीं हमको नानी हैं।
कभी बनें जोकर जैसी,
कभी कभी तो रानी हैं।
पहन टोपी रास्ता रोकें,
इनकी ये मनमानी है।
बिना झप्पी जानें न दें,
बिटिया बड़ी सयानी है।
0 राजेश उत्सांही
अरे ये तो बहुत स्वीट है, बहुत क्यूट...:)
बहुत अच्छी लग रही है...सारे ग्यारह रूप बहुत पसंद आये :)
इन सभी फोटो में भानी बहुत ही प्यारी गुडिया सी लग रही है ...बहुत ही प्यारी बच्ची है आपकी..
अह हा!
बहुत प्यारे रूप...
प्यारी भानी के सारे रूप मन को बहुत भाए .. मेरी ओर से बहुत बहुत स्नेहाशीष !!
आस्था और आशावादिता से भरपूर स्वर इन चित्रों में मुखरित हुए हैं।
बहुत प्यारी हो गई है भानी!! अच्छा लगा इतने रुपों में देखकर. :)
स्नेहाशीष !
राजेश जी ,भानी पर कविता रचने के लिए बहुत बहुत आभार,यह एक माँ के लिए सुखद हैं .कविता बहुत अच्छी है...
भानी में झलक रही है
आपकी आभा की धूप
मुझे तो लगता है
लौटा है आपका बचपन।
आभा आई भा, बनी देखो भानी
मनभावन सुंदर कविता-कहानी की वाणी।
इस प्यारी भानी बिटिया को अपना स्नेह और आशीष!
wah wah, bhani sahiba to khoob pyari lag rahi hai sabhi roopo mein...
भानी ,बहुत ही प्यारी लग रही हैं...हर रूप में अद्वितीय...:)
ढेरों आशीर्वाद...आसमान की बुलंदियां छुए
वाह आभा जी एक से बढ कर एक सुन्दर रूप हैं। बिटिया को बहुत बहुत आशीर्वाद।
सुन्दर बिटिया को ढेर सारा प्यार ।
अविनाश जी ,आप ने बेटी के साथ साथ मुझे भी खूब कहाँ है ,आप की खास कविता-टिप्पणी से आन्नदित हूँ..
बहुत सुन्दर।
आशीर्वाद के रूप में दुष्यंत जी एक कविता याद आ रही है जो मुझे बहुत पसन्द है:
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जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।
हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
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भानी के स्वप्नों के बड़े होने और उन के साकार होने की कामना के साथ ......
भार्गव जी
आपका आशीष पाकर भानी का जीवन उज्जवल होगा....आपकी आभारी हूँ
wah wah.. bahut sunder
भानी को ढेर सारा प्यार!!
अरे वा ! भानी से तो अब मिलने आना ही पड़ेगा ।
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God Bless You Bhani!
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कल 11/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सुन्दर... और प्यारी...
बधाईयाँ... शुभकामनाएं...
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