गाड़ी बंगला सही न सही न सही....
1911 में जन्मे कवि शमशेर की एक प्रेम कविता
यह कविता शमशेर जी ने 1937 38 मे लिखी
प्रेम
द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मै करता हूँ प्यार
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मै करता हूँ प्यार
सांसारिक व्यवहार न ज्ञान
फिर भी मै करता हूँ प्यार
शक्ति न यौवन पर अभिमान
फिर भी मै करता हूँ प्यार
कुशल कलाविद्र हूँ न प्रवीण
फिर भी मै करता हूँ प्यार
केवल भावुक दीन मलीन
फिर भी मै करता हूँ प्यार
मैने कितने किए उपाय
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
सब विधि था जीवन असहाय
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
सब कुछ साधा जप तप मौन
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
कितना घुमा देश विदेश
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
तरह तरह के बदले वेष
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
उसकी बात बात में छल है
फिर भी वह अनुपम सुंदर
माया ही उसका संबल है
फिर भी वह अनुपम सुंदर
वह वियोग का बादल मेरा
फिर भी वह अनुपम सुंदर
छाया जीवन आकुल मेरा
फिर भी वह अनुपम सुंदर
केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी
फिर भी वह अनुपम सुंदर
वह अंतिमभय –सी विस्मय- सी
फिर भी कितनी अनुपम सुंदर
14 टिप्पणियां:
प्रेम तो सचमुच अनुपम ही होता है।
पता नहीं क्यों... बहुत ही अच्छी लगी ये कविता.
बहुत ही सुंदर कविता ..... पढवाने के लिए आभार आभाजी....
प्रेम के अनुपम भावो से सजी है ये रचना .....
जीवन की साधारण सी अभिधा को शमशेर ही इतनी काव्यात्मक ऊंचाई दे सकते थे!! अच्छा लगा.
अनुपम कृति।
प्रेम के लिये इन सब की जरुरत नही जी बहुत सुंदर कविता धन्यवाद
अति सुन्दर कविता!
ानुपम प्रेम और अनुपम कृ्ति। धन्यवाद इसे पढवाने के लिये।
आप सब का बहुत बहुत आभार...
शमशेर जी की यह अद्भुत कविता है । मैने शमशेर जी के कविता का एक पोस्टर फेसबुक पर लगाया है देखियेगा ।
You are Writing very good Kept up..... God bless u & your family..
आभा जी,
नमस्कारम्!
आपकी गुणग्राही वृत्ति को सलाम...!
आपने शमशेर जी की एक अच्छी रचना प्रस्तुत की, इसके लिए धन्यवाद!
प्यार काम सच्चा रूप प्रकट किया है
बिना प्रेम के तो सुना है देश विदेश
फिर भी में करती हूँ |
हमने तो देखे प्रेम में बहुत भेद ...
फिर भी में करती हूँ |
बहुत ही खुबसूरत एहसासों को दर्शाती रचना |
शुक्रिया दोस्त |
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