गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

गाड़ी बंगला सही न सही न सही....

गाड़ी बंगला सही न सही न सही....

1911 में जन्मे कवि शमशेर की एक प्रेम कविता

यह कविता शमशेर जी ने 1937 38 मे लिखी

प्रेम

द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास

फिर भी मै करता हूँ प्यार

रूप नहीं कुछ मेरे पास

फिर भी मै करता हूँ प्यार

सांसारिक व्यवहार न ज्ञान

फिर भी मै करता हूँ प्यार

शक्ति न यौवन पर अभिमान

फिर भी मै करता हूँ प्यार

कुशल कलाविद्र हूँ न प्रवीण

फिर भी मै करता हूँ प्यार

केवल भावुक दीन मलीन

फिर भी मै करता हूँ प्यार

मैने कितने किए उपाय

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

सब विधि था जीवन असहाय

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

सब कुछ साधा जप तप मौन

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

कितना घुमा देश विदेश

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

तरह तरह के बदले वेष

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

उसकी बात बात में छल है

फिर भी वह अनुपम सुंदर

माया ही उसका संबल है

फिर भी वह अनुपम सुंदर

वह वियोग का बादल मेरा

फिर भी वह अनुपम सुंदर

छाया जीवन आकुल मेरा

फिर भी वह अनुपम सुंदर

केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी

फिर भी वह अनुपम सुंदर

वह अंतिमभय सी विस्मय- सी

फिर भी कितनी अनुपम सुंदर

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

बस थोड़ा आस्था वाद

बस थोड़ा आस्था वाद। संयम भारतीय संस्कृति की आत्मा है।यदि पेड़ कहे कि मै जमीन पर क्यों बधा हूँ मुझेउड़ने दो तब तो वह पेड़ मर जाएगा।पेड़ भी जड़ों से बधा है तभी जीवित है।नही तो उसका अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा।अगर पहाड़ों का पानी सभी दिशाओं में बहने लगे तो बहाव असम्भव हैपानी एक खास बहाव पर ही बहता है।नदी दो किनारो से बधी है यदि वह कहे मुझे बंधन मुक्त करो, तो पानी और नदी कुछ न रह जाएगा सब सूख जाएगा।

संयम को तुच्छ मत समझो। नदी अपनी गहराई और गभीरता के कारण ही, बंधन के कारण ही हमारे लिए पूज्य है. संयम समाज , परिवार सब के लिए सही राह है।

पर समय इतना बुरा है कि किसी को मान दो तो भी वह बदले में अपमान देकर खुश हो लेता है। दंभी जीव के ढ़ग निराले मेरे भैया। ऐसा सोचने के सीवा कुछ सोचना भी उस दंभी के दंभ को बढ़ावा देना है।

पर शुक्र है सृष्टि का की सूरज प्रकाश देता है,बादल पानी देता है, पेड़ फल देते है, स्कूल शिक्षा देते हैं । अपना जीवन इन्ही की सेवा में रहना ही हमारा धर्म है।

बहुत से कम बुध्दि, संयम का मजाक उड़ाते हैं और यह कहते पाए जाते है कि मुझे बंघन में नही रहना. पर सच तो यह है की जीवन का सुख बंधन में ही है ।

जैसे नदी संयम में रह कर समुद्र मे मिल जाती है वैसे ही संयम और, बघन में रह कर मनुष्य भी बड़ा बन जाता है।

बापू के देश में

सारे जग से न्यारे बापू ,ने एक घर बनाया जिसका नाम रखा गणतंत्र ,इस घर में बापू के चार बच्चे रहते हैं -हिन्दू, मुस्लिम, सिख,ईसाइ। 30 सितम्बर को दो भाइयों के झगड़े खत्म हुए ,ऐसा ही ,माना है जनता ने। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड आगे सुप्रीप कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएगी , फिर भी. बापू के देश में सबसे पहले न्यायमूर्ति खान को सलाम ... ...। आगे -लगते तो थे दुबले बापू, थे ताकत के पूतले बापू। कभी न हिम्मत हारे बापू, अच्छी राह दिखाते बा। सब को गले लगाते बापू, सत्य अहिसा और धर्म का हमको पाठ पढ़ाते बापू। बापू के देश में -गणतंत्र के वेश में,चारों भाईयों को गाँधी जंयती की शुभकामनाएँ...।