जागो सोने वालों सुनो ......बदलो मेरी कहानी।
मेरी माँ कहती है औरत ही औरत की दुश्मन है। वही मेरी दूसरी माँ(सास)
का कहना है औरत की नाक न हो तो मैला खाए। क्या मेरी दोनों माएँ अपना जिया
अनुभव कहती हैं या सुनी सुनाई बातें । राम जाने । माँ ने जब यह कहा मैं बहुत छोटी थी। मतलब जानने की हैसियत न थी और सास ने जब कहा उनसे बहुत डरती थी सो जवाब तलब न कर सकी पर दोनों वाक्य बहुत परेशान करते हैं, लेकिन मेरा मानना है औरत खुद अपनी ही दुश्मन है – डरपोक हैं आप । पुरूष चाहे तो उसकी खिल्ली उड़ा सकते हैं, डरपोक-डरपोक कह कर या उसका साथ दें सकते हैं क्यों कि सहयोग पर ही घर, समाज, दुनिया उन्नति कर सकती है।
खुशी की बात इतनी है कि हमारी (औरत की ) कहानी । बहुत हद तक बदल चुकी है,
फिर भी औरत अपनी लाज बजाती , किस्मत को कोसती जी रही हैं।
निवेदन है उन लोगों से जो अब भी सो रहे हैं गावों ,कस्बों और तथाकथित
शहरी लोगों से - जागो सुनो और बदलो मेरी कहानी ...................................
12 टिप्पणियां:
bahut achha lekh,sahi badlav jaruri hai,magar nari ko khud hi apne vicharon mein badlav karnahoga pehle.nari divas mubarak
महिलाएं धीरे धीरे आगे बढ़ रही हैं.
ये नारी ही नारी की दुश्मन है वाली बात काफी हद तक सही लगती है।
पर सही मायने में मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर टिप्पणी करने का हकदार मैं हूं ही नहीं।
सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूंगा कि सिर्फ़ एक नहीं बल्कि हर दिन नारी का हो क्योंकि बेटियां है तो घर है।
शुभकामनाएं
एक सहयोगी पुरुष मिल सकता है शायद। पर कहानी तो खुद बदलनी पड़ती है।
स्त्री की दुश्मन स्त्री कहीँ कहीँ अवश्य हुई है
परँतु जो समझदार हैँ वे जानतीँ हैँ कि,
आगे बढने के लिये सहकार जरुरी है
कई पुरुष भी नारी के पक्षधर हैँ
कामना यही कि, नारी उन्नति पथ पर अग्रसर हो
- लावण्या
अपने आप को खुद जगाने की ज़रूरत है... कहानी भी अपनी खुद ही बदलनी और लिखनी होगी... आपके ब्लॉग पर भानी बिटिया की प्यारी मुस्कान सदा खिली रहे ....नारी दिवस पर शुभकामनाएँ.....
ज्ञान जी भाई ,स्त्री जिसे कुछ करना है वो तो अपनी मुट्रठी में एक वाक्य रख लेती है नारी कभी न हारी समय भले ही लगे ,मिनाक्षी जी मेरा मानना है जिस गाँव घर में औरते सिर्फ बच्चे तो पैदा करती हैं पर उन्हें स्वथ्य कैसे रखें यह सरकार को बताना पड़ता है मसलन पोलियो , टिटनेस डोस फिर बेटी की शिक्षा भी बेटे की तरह ही महत्वपूर्ण है यहभी जब मुहीम चला कर बताना पड़ता है-वह औरत क्याआप को लगता है अपने से ही कोई कदम उठा पाएगी ....मै एक नहीं दो नही हजार नहीं समूल महिला उन्नति के बहाने खास दिन पर बस थोड़ी सी बात हैं ............
बात अधूरी रह गई बस थोड़ी सी बात कही है..
कहानी बदल रही है शहरों में तेज़ी से.. और गाँव में भी धीरे-धीरे.. कहानी बदल रही है बिना किसी पुरुष की इच्छा और अनुमति के भी.. नारी की खुद-मुख्तारी को मेरा सलाम!
ये नारी ही नारी की दुश्मन है 100% सही, अब देखिये हम मियां बीबी यहां इकट्टे रहते है, ना मेरी सास यहां ना मेरी बीबी की सास... को हम मिल जुल कर रहते है कभी लडाई नही हुयी आ तक... फ़िर हम दोनो ही अपनी अपनी जिम्मे दारिया जानते है.
धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये, ओर आप की शिकायत भी दुर
आभाजी
आपने अच्छा लिखा है। आपको एक जानकारी देना चाहता हू। मुम्बई के छगनबापा और दतानीबापा दो पुरुष थे जो ८० रुपया उधार लेकर महिलाओ के लिऐ एक कुटीर उधोग खोला था। आज वो कुटिर उधोग मे ४५००० हजार महिलाऐ कार्यरत है। सालाना ५०० करोड का टर्नऑवर वाली यह उधम दुनिया का एक मात्र उधम है जहा केवल महिलाओ द्वारा सचालित है। नाम शायद आप जानती होगी ? क्यो कि आपकि मुम्बई मे ही है महिला गृह उधोग लिज्जत पापड। (इस बारे मे पुरा पढने के लिऐ मेरे ब्लोग पर पधारे)
यह दोनो पुरुष भाई थे जो महिलाओ कि सामजिक आर्थिक भागिदारी के लिऐ तत्पर थे। कुछ महिलाओ ने अपने मन मे भ्रान्तियो को बैठा दिया है कि पुरुष जाती महिलाओ के लिऐ बाधा है, जो सिर्फ और सिर्फ हमारी बहनो को भ्रमित करती है, वे अपनी रोटी सेकने का काम कर रही है। अन्यथा ना ले।
लेख कुछ अधूरा अधूरा सा लग रहा है ,विस्तार आवश्यक था
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