बहुत कुछ खोया बहुत कुछ पाया
यह अक्टूबर का महीना बड़ा अच्छा रहा। इसमें बहुत कुछ खोया बहुत कुछ पाया। खोया यह कि मुंबई के स्कूल रायन इंटर नेशनल में जज बना कर बुलाई गई। हालाकि अचानक खाँसी बुखार से तबियत खराब हो जाने के कारण न जा सकी। खोया यह भी कि मेरे एक कान की बाली कहीं यात्रा की तैयारियों में खो गई। जो एक बची है उसे देख -देख कर दुखी हो रही हूँ। वहीं पाया यह कि इलाहाबाद के ब्लॉगर सम्मेलन में न जाते-जाते पहुँच गई।
मेरा वहाँ पहुचना तो असम्भव था। न मैं बड़ी ब्लॉगर हूँ न लिक्खाड़। यह मेरा पहला ब्लॉगर मीट था जो मेरे लिए एक बड़ी घटना है। वहाँ जो कुछ बोल पाई बोल भी दिया। । उस भाषण में मुझे सबसे अधिक उलझन इस बात की है कि मैंने आयोजकों को किसी भी तरह का आभार वचन नहीं कहा। हालाकि ब्लॉगर बंधुओं ने धीरज से सुन कर मेरा हौसला बढ़ाया और प्रतीक चिह्न सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के कारण मुझे बाद में मिल पाया। मैं उनकी संतोष भदौरिया और अनूप शुक्ल की आभारी हूँ। जिनके चलते मुझे यह सुवसर मिला।
वहाँ कितने ऐसे लोगों से भेट मुलाकात हुई जिन्हें पिछले तीन सालों से ब्लॉग पर देखती- पढ़ती आ रही हूँ। मुझे बचपन से लोगों से मिलना अच्छा लगता रहा है । वह आदत गई नहीं है। सो लोगों से मिल कर खुश हूँ। खुश हूँ कि ज्ञान भाई, अनूप जी, अजित बडनेकर जी, प्रियंकर जी, अफलातून जी, रवी रतलामी जी, मसिजीवी, मनीषा समेत बहुत सारे प्रिय ब्लॉगरों से मिलना हुआ। मैं यहाँ जिनका नाम नहीं ले पा रही हूँ वे मान लें कि मैं उनसे मिल कर खुश हूँ।
इलाहाबाद के इसी सम्मेलन में अपने मुंबई के पड़ोसी युनूस भाई से मिलना अच्छा लगा। वहाँ सोचा था उनके साथ जा कर बतरस वाली ममता जी से मिल लूँगी। लेकिन यह न हो सका । ममता को उनके माता जी के निधन पर केवल फोन से सांत्वना दे पाई हूँ।
इलाहाबाद के इस अधिवेशन को मैं जीवन में कभी भी भूल न पाऊँगी। हालाकि मैं यह ठीक से जानती हूँ कि मैं उतनी प्रतिभाशाली नहीं जितने प्रतिभाशाली ब्लॉगर वहाँ जुटे थे। मुझे इस बात का भी मलाल है कि कई सारे प्रतिभाशाली ब्लॉगर वहाँ न पहुँच सके। वे भी आते तो सुनने और समझने का संयोग होता। लेकिन क्या यह संभव है कि कोई आयोजन बिना सवालों के घेरे में आए पूरा हो सके। यह तो रीति है। सामाजिक आयोजन तो अपनी जगह हैं। लोग तो बेटे-बेटियों के विवाह तक में बहुत सारे अपनों को बुलाना भूल जाते हैं।
इलाहाबाद में जो कुछ विचार मैंने व्यक्त किए उसे छाप कर आप सब को पढ़वाऊँगी।
18 टिप्पणियां:
अरे आभा जी , आपकी बाली खो गयी ? ;-(
खैर ! अब क्या हो ...
चलिए सबों से मिलना तो हो गया रिपोर्ट अच्छी लगी..
बहुत स्नेह के साथ
- लावण्या
जो खोया उसके लिये सहानुभूति तथा जो पाया उसके लिये बधाई.
आयोजन हमेशा से विवादों और सहमति असहमति के चपेट में आते ही हैं.
आपको याद होगा आप मुझसे भी मिली थीं -संस्मरण के लिए आभार !
चलिए सब से मिल लिए, बाकी भी कभी टकरा ही जाएँगे.
और ब्लॉगर होने के लिए बड़ा भारी लिक्खाड़ होना जरूरी नहीं है. ब्लॉगिंग तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है :-)
यह तो रीति है। सामाजिक आयोजन तो अपनी जगह हैं। लोग तो बेटे-बेटियों के विवाह तक में बहुत सारे अपनों को बुलाना भूल जाते हैं। nice
कुछ बाते कुछ एहसास दिलो पर ऐसी अमिट छाप छोड़ जाती है कि उसे भुला पाना कठिन होता है। ऐसा ही कुछ आपकी इस पोस्ट का पढ़ कर लगा।
साफगोई से पेश किया है आपने अपने विचार को। आगे भी इन्तजार रहेगा।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
मुझे भी आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा।
मुझे भी आप से आखिरकार मिल पाना बहुत अच्छा लगा।
हम तो आपसे मुंबई में ही आकर मिलेंगे.. भानी और मानस के बिना आपसे और बोधी भाई से मिलना वैसे भी अधूरा ही रहेगा.. :)
हा पीडी यह अच्छा रहेगा.....आओ.
आपको यह भी याद होगा
मुझसे नहीं मिली थीं
मिलतीं भी कैसे
मैं वहां गया ही नहीं था।
पर इंटरनेट ने दुनिया छोटी कर दी है
शायद मुंबई में हो मुलाकात
दिसम्बर में मैं मुंबई आ रहा हूं।
आपकी चर्चा पढकर अच्छा लगा, आपने संतुलित ढंग से समीक्षा की है।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।
लगे हाथ संगम पर नहा के आ गए !
हम न तो वंहा पहुंच पाये, आपसे और बहुत से साथियों से मिल भी नही पाये इसलिये कह सकते है कि हमने तो सिर्फ़ खोया ही खोया है पाया तो कुछ भी नही।
चलिये, अच्छा रहा सबसे मुलाकात हो गई.
ममता जी की माता के निधन का समाचार सुनकर दुख हुआ. श्रृद्धांजलि!!
जी हां। आपको प्रत्यक्ष देखा था, बहुत अच्छा लगा था।
हमें भी आपसे और बोधिभाई से मिलकर अच्छा लगा था।
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