गुरुवार, 24 दिसंबर 2009
उत्सव बना झमेला
खुशी अफसोस में बदल गई
मेरे छोटे भाई की शादी तय हो गई थी। 12 फरवरी को शादी और 14 को रिसेप्सन ओ भी बिना लड़की देखे। कि शादी ही तो करनी है। लड़की से करनी है देखना क्या । मुख्य आधार था लड़की का एक सुघड़ भाभी से तुलना। मेरे भाई ने कहा जब लड़की उन भाभी की तरह है तो मैं कर लूँगा। लड़की एमएससी कर के रिसर्च कर रही है और हायर स्टडी के लिए अमेरिका जा रही है। लड़की फरवरी में अमेरिका जा रही है। दोनों की आपस में बात भी शुरू हो गई थी। जिसमें मेरे भाई ने कहा कि तुम अपना केरियर देखो। फिर भी माँ ने कहा कि तुम लड़की एक बार देख लो। शादी के पहले। शायद माँ के मन ने कुछ भाप लिया था। लड़की अपने भाई और पिता के साथ नोयडा आई और मेरा भाई हैदराबाद से आया अपनी भावी पत्नी को देखने।
मुझे छोड़ कर सभी थे। लेकिन जब मेरे भाई ने लड़की को देखा तो जिन भाभी से उस लड़की की तुलना की गई थी वो उसमें दूर-दूर तक नहीं दिखीं। इतना ही नहीं लड़की के कपड़े अस्त-व्यस्त थे साफ नहीं थे। नए नहीं थे। कुछ भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वे लोग लड़की को दिखाने आए हैं। यही नहीं लड़की समेत वे सारे लोग बड़े रिजिड और अड़ियल दिखे। भाई फिर खूब उत्साहित था। सज-धज कर तैयार था आखिर उस लड़की से मिलने जा रहा था जो उसके सपनों से जुड़ रही थी।
मिल कर वह बात-व्यवहार और रंग-ढंग से कपड़े-लत्ते से दुखी हुआ। फिर भी भैया के कहने पर वह शादी के लिए मान गया। कि लड़की को देख कर मना नहीं करते। बात सही दिशा में थोड़ी देर चली तो मामला वेन्यू पर आ कर फिर अटक गया। भाई चाहता था कि शादी इलाहाबाद से हो। लेकिन वे लोग लखनऊ से शादी करने पर अड़े रहे। फिर भी मेरे बड़े भाई ने कहा कि सोच लीजिए अगर इलाहाबाद से हो तो अच्छा रहेगा। हम फिर बात कर लेंगे। अगले दिन लड़की के भाई का फोन आया कि शादी लखनऊ से ही होगी और रिसेप्सन भी यहीं से होगा। उनका यह रवैया भाई को ठीक न लगा। हमारी ओर से इलाहाबाद में शादी करने के अलावा और कोई माँग न थी। इस पर वे लोग असहज रूप से पेश आ रहे थे। जिस बात को बड़ी प्यार से मनवाया जा सकता था उस पर वे लोग कुछ ढ़ीठ की तरह डट गए।
और इस के बाद भाई ने शादी से इनकार कर दिया। माँ अभी भी यह चाहती है कि यही शादी हो जाए। उधर से लड़की मेरे भाई को फोन करने लगी। पूरे प्रकरण से परेशान भाई में पहले तो फोन लेने की हिम्मत न रही। फिर उसने बात किया तो लड़की ने पूछा कि क्या गलती हुई। मेरे भाई ने कहा कि मेरी और आपकी शादी लगता है नहीं लिखी है। आपको और अच्छे जीवन साथी मिलेंगे। यह मेरी दुआ है।
अपने इस निर्णय से भाई और मेरा पूरा घर दुखी है। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी लड़की को देखने के बाद किसी और कारण से शादी से न करना पड़ा है। हम यह सोच कर परेशान हैं कि आखिर लड़की वालों को कैसा लग रहा होगा।
बाद में सोचने समझने पर समझ में आया कि सब गड़बड़ी हड़बड़ी के कारण हुई और परिणाम यह निकला कि एक लड़की और एक लड़का बे वजह परेशान हो रहे हैं। दोनों अनायास ही एक दूसरे की नजर से गिर गए हैं। वे लोग अभी भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि शादी क्यों टूटी। और इधर सो कोई उन्हें साफ-साफ यह नहीं कह पा रहा कि उनके अड़ियल बर्ताव से मामला बिगड़ रहा है। जब मैंने भाई से कहा कि तुम्हें लखनऊ बारात लेकर चलने में क्या दिक्कत है। तो वह बोला कि दिक्कत कुछ भी नहीं। बस उनके बोल बचन अच्छे नहीं लगे।
भाई की दुविधा यह है कि जो लड़की फोटो में बहुत अच्छी दिख रही थी वह सामने से इतनी उलट क्यों है। जो ल़ड़की फोन पर इतनी सहज और मीठी थी वह सामने से इतनी उलझी और कठोर क्यों थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके यहाँ कोई आपसी संकट रहा हो। जिसके कारण लड़की को कोई उलझन रही हो। जो भी रहा हो। खामखा का एक संभावित उत्सव झमेले में बदल गया। 12 और 14 फरवरी 2010 मेरे भाई और उस लड़की के लिए एक मनहूस तारीख की तरह दर्ज हो गए हैं। अब मैंने कहा था तैने कहा था करने से क्या होगा।दोनों पक्षो की फजीहत हो रही है।
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12 टिप्पणियां:
आभा जी, सच कहूं तो आप बच गये, मेरे भाई की शादी भी कुछ ऎसई ही स्थिति मै हुयी, हमारी मां ने लडकी को देखा, ओर लडकी वालो का दिल ना दुखे वही हां भी कर दी, मेरा फ़ेसला था की अगर मुझे शादी मै बुलाना है तो शादी बिना दहेज के हो, ओर लडकी वाले ऎसे ही थे जेसे आप ने इस कहानी मै लिखा,उन की हर शर्त मां ने मानी ओर आज १७ साल से मेरा भाई नरक भोग रहा है, पहले ही सावधान रहो तो अच्छा है एक बार दोनो को बुरा लगेगा, लेकिन दो जिन्दगीया बरवाद होने से बच गई
अव्वल तो जब आपके भाई को लड़की पसंद नहीं आई तो फिर एक दिन की बात तो है नहीं कि बड़े भाई साहब के कहने पर हाँ कर लें. बड़े भाई साहब का सम्मान निश्चित ही अपनी जगह है मगर मात्र इस बिनाह पर कि देखने के बाद मना नहीं करते, बात समझ में नहीं आती. मानिये अगर कहीं और या किसी और ढंग से मिले होते तो भी तो एक दूसरे को पसंद न करते.
पुनः, जब बातचीत में आपसी सामान्य सामनजस्य भी नहीं जैसे कि विवाह स्थल आदि तो आगे भी अनेक परेशानियाँ आ सकती हैं. मैं यह नहीं कहता कि लड़की वाले है तो बात माने ही माने या लड़के वाले डिक्टेट करें, मगर एक दूसरे की सहूलियत पर तो विचार करना ही चाहिये. आखिर दो परिवार एक होने जा रहे हैं, कहीं भी किसी के अड़ जाने से तो बात नहीं बनती.
फिर, शादी विवाह तो जहाँ होना लिखा होता है वहाँ ही होता है, इस धारणा पर मेरा अटूट विश्वास है और कई बार कई घटनाओं से पुख्ता हुआ है.(पुरातन सोच का मानें, तो भी कोई हर्जा नहीं) खैर, यह मात्र व्यक्तिगत धारणा है किन्तु प्रयास तो करने ही होते हैं.
उपरोक्त सभी मेरी सोच है. आपकी सोच और मत इसके विपरीत हो सकते हैं, कोई बहस का विषय नहीं. सभी के विचारों का स्वागत है.
Abha ji,
Yehi sochiye koyi ghatna jab ees tarah aaker mod leti hai , tub yehi
hona hoga.........
Aapke Bhai ko himmat dijiyea . Shayad kuch aur hee likha ho unke bhagy mei .Mayoos na hon .
Snehashish sahit,
- Lavanya
दुखद...मगर शायद किस्मत को यही मंजूर रहा होगा...
जोड़ियाँ आसमान में बनती हैं ...यूँ ही तो नहीं कहा जाता है ...!!
यह तो आपके तरफ का पक्ष है -मगर मुझे लगता है जो हुआ ठीक हुआ है -शादी के बाद झमेले बढ़ते तो जीवन और नारकीय हो उठता लड़के और लडकी का !
इसी लिए ये मिलने मिलाने का काम पहले कर लेना चाहिए,बिचोलियों का क्या काम?आखिर जिंदगी भर का सवाल है..
समीर जी की बात से काफी हद तक सहमति रखता हूँ। राज जी ने भी कुछ बातें खुल कर कह दी हैं। बहरहाल लडकी वालों की ओर से भी कुछ मजबूरी रही होगी उसे भी समझना होगा और तभी कोई प्रतिक्रिया देना उचित होगा।
वैसे मेरी शादी भी बिना देखे ताके तय हो गई थी....शुरू शुरू में कुढने के बाद अब हाल ये है कि तीन तीन चुन्नू मुन्नू टाईप के साथ हंस खेल रहा हूँ :)
वैसे इसी मुद्दे को लेकर मेरी देखौवा छेकौआ पोस्ट भी है कि कैसे मंदिर के आसपास ही कमरे अब लडका लडकी को देखने के लिये और विवाह के लिये उपयोग में आने लगे हैं औऱ कैसे ये स्थल एक तरह के दहेज स्थली के रूप में बदलते जा रहे हैं।
ये रहा लिंक - दीवाल पर लिखी इबारत का सच
http://safedghar.blogspot.com/2009/02/blog-post.html
लगता है। शादी का यह तरीका पुराना पड़ गया है। भावी पति-पत्नी को एक दूसरे को ठीक से समझा हुआ होना चाहिए और दोनों की संस्कृति में अधिक अंतर नहीं होना चाहिए हो तो दोनों में उस अंतर को समेटने का माद्दा भी होना चाहिए। विवाह नहीं हुआ। कोई बात नहीं। यदि बाद में सामंजस्य न बैठता तो वह और बुरा होता।
दिनेश जी से सहमत हूँ..वैसे पढ़ कर लगा कोई बात तो रही होगी उनके परिवार के इस रवैये के पीछे.
इतनी जल्दी (सिर्फ एक बार देख/मिल कर) शादी के लिए हाँ कहना भी मुझे सही नही लगता ..थोडा वक्त मिलना ही चाहिए.
किसी भी स्तर पर असहमत्ति होने पर जबरन सहमति उलझने बढाने वाली ही होती हैं. शायद जो कुछ हुआ अच्छा ही हुआ.
इश्वर: यत्करोति, शोभन्ं करोति।
आलेख के माध्यम से आपने जो बात कही वो बहुत लोगों के लिए सीख हो सकती है. अभी ऐसा कुछ नहीं हुआ था इसलिए "खुशी अफसोस में बदल गई" ऐसा सोचना ठीक नहीं है.
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