मेरा शहर, जहाँ शाम के वक्त बच्चे, अपनी अपनी बिल्डिग में खेलते हैं ।उनमे से एक हमारी बिल्ड़िंग भी है। जिसमें चार साल के बच्चों से लेकर बारहवी कक्षा तक के बच्चे
मिल जुल कर टीम बना कर खेलते हैं। इनमे एक पलक नाम की लड़की,जिसमे सुन्दरता के सारे मायने
सही साबित होते हैं ,मतलब आप कह सकते हैअच्छी है। बात यहाँ खत्म नहीं होती .
एक दिन खेल के बीच में ही मैं अपने बेटे मानस को आवाज लगा कर बोली दूध पीकर फिर खेलने जाओं। बेटा यह कह कर थोड़ा रूक गया कि मम्मा आता हूँ.मैने फिर कुछ समय बीतने पर आवाज लगाई , कि आ बेटा दूध ठंड़ा हो रहा है. फिर खाना कब खाओगे।
बेटा ठहाके लगाता हुआ ऊपर आय़ा। मै भी उसको देख स्वाभाविक रूप से खुश हुई ,और
पूछा, क्या हुआ, तो उसने बताया मम्मा खेलने के बाद यह तय हुआ ,कि सब बारी बारी से डाँन्स करेगें.।यह डाँन्स की बात पलक ने कही। जिसपर सीढ़ियों में सब अपनी- अपनी जगह तलाश कर बैठ गए। और लिफ्ट के सामने की जगह नाचने के लिए तय की गई। अब बारी नाचने की थी ,कौन कौन कौन जिस पर 7वी, 8वी 9वी में पढ़ने वाली लड़कियाँ, थोड़ा शर्माने लगी।तब बेटे ने पलक से कहा– अच्छा चल तू पहले नाच के दिखा फिर दूसरों कि बारी ...संकोच करती पलक के सामने मेरे बेटे ने शर्त रख दी । चल नाच, मै तुझे सौ रूपये दूँगा। पलक ने यह कहते हुए शर्त स्वीकार कर ली की तू तो
बड़े बाप का बेटा है ,तेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं, और नाच दिखाया, जम कर। इधर मेरे बार-बार बुलाए जाने पर मानस बिना शर्त पूरा किए लौट आया।
पलक और उसका परिवार बहुत ही सज्जन लोग हैं। शाम के इस बिंदास माहौल में मेरे बेटे का शामिल होना भी एक अजीब तरह से खुशी दे गया । कारण मेरा बेटा कुछ ज्यादा ही सहज और संकोची है। उसका प्रमाण हमारे दोनों पक्षों के नातेदार देते रहते हैं । पिछले दिनों हमारी ही बड़ी दी की बेटी की सगाई की रस्म कलकत्ते में बड़े धूम से हुई ,जिसमें मै नहीं पहँच पाई. और वहाँ नाते दारों ने मेरे मानस की खूब खूब प्रशंसा की ,कि आज के युग में और मुम्बई में रहने वाले बच्चों मे अलग है, उसके स्कूल में मैने उसकी सुपरवाईजर से उसकी जानकारी ली ,उन्होने बताया बहुत अच्छा बच्चा है सादा और कूल माईड ,उसकी ट्यूशन टीचर की भी ऐसी ही राय है।इस शान्त और सोच समझ कर बात करने वाले बच्चे को लेकर मुझे कभी कभी उलझन होती कि यह घोर कलयुग मेरे गाँधी बाबा के लिए ठीक नहीं। बेटा जो बीच के साल दो साल पढ़ाई से मन चुराने लगा था फिर लाईन पर है । और फिलहाल की तारीख में एक परफेक्ट बच्चे की माँ की खुशी महसूस कर खुश हूँ । आगे समय खुद बताएगा, ऐसे भी मानस कर्म पर यकीन करते है। कथनी पर नहीं कम बोलना और काम करते रहना....
मिल जुल कर टीम बना कर खेलते हैं। इनमे एक पलक नाम की लड़की,जिसमे सुन्दरता के सारे मायने
सही साबित होते हैं ,मतलब आप कह सकते हैअच्छी है। बात यहाँ खत्म नहीं होती .
एक दिन खेल के बीच में ही मैं अपने बेटे मानस को आवाज लगा कर बोली दूध पीकर फिर खेलने जाओं। बेटा यह कह कर थोड़ा रूक गया कि मम्मा आता हूँ.मैने फिर कुछ समय बीतने पर आवाज लगाई , कि आ बेटा दूध ठंड़ा हो रहा है. फिर खाना कब खाओगे।
बेटा ठहाके लगाता हुआ ऊपर आय़ा। मै भी उसको देख स्वाभाविक रूप से खुश हुई ,और
पूछा, क्या हुआ, तो उसने बताया मम्मा खेलने के बाद यह तय हुआ ,कि सब बारी बारी से डाँन्स करेगें.।यह डाँन्स की बात पलक ने कही। जिसपर सीढ़ियों में सब अपनी- अपनी जगह तलाश कर बैठ गए। और लिफ्ट के सामने की जगह नाचने के लिए तय की गई। अब बारी नाचने की थी ,कौन कौन कौन जिस पर 7वी, 8वी 9वी में पढ़ने वाली लड़कियाँ, थोड़ा शर्माने लगी।तब बेटे ने पलक से कहा– अच्छा चल तू पहले नाच के दिखा फिर दूसरों कि बारी ...संकोच करती पलक के सामने मेरे बेटे ने शर्त रख दी । चल नाच, मै तुझे सौ रूपये दूँगा। पलक ने यह कहते हुए शर्त स्वीकार कर ली की तू तो
बड़े बाप का बेटा है ,तेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं, और नाच दिखाया, जम कर। इधर मेरे बार-बार बुलाए जाने पर मानस बिना शर्त पूरा किए लौट आया।
पलक और उसका परिवार बहुत ही सज्जन लोग हैं। शाम के इस बिंदास माहौल में मेरे बेटे का शामिल होना भी एक अजीब तरह से खुशी दे गया । कारण मेरा बेटा कुछ ज्यादा ही सहज और संकोची है। उसका प्रमाण हमारे दोनों पक्षों के नातेदार देते रहते हैं । पिछले दिनों हमारी ही बड़ी दी की बेटी की सगाई की रस्म कलकत्ते में बड़े धूम से हुई ,जिसमें मै नहीं पहँच पाई. और वहाँ नाते दारों ने मेरे मानस की खूब खूब प्रशंसा की ,कि आज के युग में और मुम्बई में रहने वाले बच्चों मे अलग है, उसके स्कूल में मैने उसकी सुपरवाईजर से उसकी जानकारी ली ,उन्होने बताया बहुत अच्छा बच्चा है सादा और कूल माईड ,उसकी ट्यूशन टीचर की भी ऐसी ही राय है।इस शान्त और सोच समझ कर बात करने वाले बच्चे को लेकर मुझे कभी कभी उलझन होती कि यह घोर कलयुग मेरे गाँधी बाबा के लिए ठीक नहीं। बेटा जो बीच के साल दो साल पढ़ाई से मन चुराने लगा था फिर लाईन पर है । और फिलहाल की तारीख में एक परफेक्ट बच्चे की माँ की खुशी महसूस कर खुश हूँ । आगे समय खुद बताएगा, ऐसे भी मानस कर्म पर यकीन करते है। कथनी पर नहीं कम बोलना और काम करते रहना....
नोट- मानस की कुछ छवियाँ, साथ में हैं उसकी बहन भानी।
22 टिप्पणियां:
प्रतिभावान मानस को ढेर शुभकामनायें उज्जवल भविष्य के लिये।
मानस को बहुत बहुत शुभकामनाएं....अब तो यकीन हो गया बेटा सर्व-गुण संपन्न है, मुंबई में कोई उसे बुद्धू नहीं बना पायेगा...दरअसल संतुलन जरूरी है...और वो मानस में है. बहुत सुन्दर तस्वीरें हैं मानस की अलग अलग रूप में. आशीर्वाद
काफ़ी बचपन में देखा था मानस को। अब तो ख़ासा बड़ा हो गया है। मानस को उसके उज्जवल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएँ। ........ और भाभी आपने बहुत अच्छा लिखा भी है।
मेरा फ़ेवरिट बच्चा है मानस!
प्रवीण जी ,रश्मी जी , अभय जी आप सब का आभार , फरीद आप का ,खास आभार कि आप पहली बार अपना घर तक आए तो सहीं। आप के उत्साह वर्धन का भी आभार..।फरीद आप मान ले की मानस से मिल लिए..आज कहीं भी हो इसी को मिलना करते हैं..
इश्टाईल तो बोधि भाई वाली है…बाकी सीधा है तो आप पे गया होगा :-)
वैसे एक उम्र होती है…जब शर्म अपनेआप आकर घेर लेती है…फिर धीरे-धीरे सब सामान्य हो जाता है…मानस के बारे में पढ़के लगा कि उसके भीतर अभी कस्बा बचा हुआ है थोड़ा सा…काश वह हमेशा बचा रहे…चाहे क़ीमत कुछ धोखे ही क्यूं न हों…ढेरो आशीष और भानी को प्यार
ख़ूब ख़ुशी हो रही है पढ़कर ...
बहुत बहुत शुभकामनाएं मानस को
God bless him!!
मानस को खूब आशीष।
इन तस्वीरों में तो बच्चे अब बड़े नज़र आ रहे हैं।
संस्कार भी कही छूटते हैं?
मानस को ढेर सारा आशीर्वाद !
अब हम भी आशीर्वाद देने लायक हो गए हैं :)
बड़ा अच्छा लगा मानस के बारे में पढ़कर। अभय का फ़ेवरिट बच्चा है तो और भी खास है। लेकिन बच्चा सौ रुपये का हिसाब-किताब कैसे करेगा। पलक आगे उसकी बात का भरोसा करेगी अगर उसका निपटारा न हुआ? दोस्तों के बीच में बड़े बाप कहां से घुस गये?
बहुत प्यारी पोस्ट है।
मानस की तस्वीरें बहुत सुन्दर हैं :)
god bless him :)
अशोक जी,पारूल जी,राज जी, अजीत जी, अनूप जी पंकज, अभिषेक ,अभि , आप सब का आर्शीवाद ही मानस को काम आएगा ।अनूप जी वो सौ रूपय़े वाली बात आपसी सामजस्य में नाच के बाद ही खत्म हो गई , यह बच्चे भी अपने हिसाब से बतियाते हैं ,जैसे हम भी कभी..., अभिषेक आप सात समंदर पार आ जा रहे है तो सही ही है आप मानस को आर्शीवाद दें सकते हैं. जरूरत पड़ी तो सलाह भी दें, भविष्य में, मानस को... आप सब का बहुत बहुत आभार।
अरे वाह ऐसा बिंदास होना बहुत जरुरी है, और छबि तो बिल्कुल बोधिभैया की है, छोटे बोधिभैया :) बहुत सारी शुभकामनाएँ उज्जवल भविष्य के लिये
बोधीसत्व जी की फेसबुक पोस्ट से इस ब्लॉग पर आया.
मानस और बोधी को प्यार (आशीर्वाद देने की अभी मेरी उम्र नहीं है)
बच्चे अपना संस्कार बचाए रखें, यही उम्मीद और प्रार्थना है..
shubhkamnayein manas v bhaani dono ko. yun hi hasnte rahein muskurate rahein...
भानी को तो आपकी पहले की पोस्ट के जरिए देखा है, लेकिन आपका मानस भी बहुत ही प्यारा है, गॉड ब्लैस हिम!
मानस और पलक का किस्सा पढ़कर बहुत आत्मसंतोष हुआ। पलक ने बिलकुल सही बात कही। सच है कही तो होगी दोस्तों के बीच ही। कई बच्चों के लिए अभी भी सौ रूपए बहुत बड़ी रकम है। और कईयों के लिए वह केवल दो आइसक्रीम के दाम। मुझे नहीं पता मानस के लिए वह किस तरह की है। पर हमें बच्चों की इन बातों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जैसे किसी ने कहा कि बच्चों की दोस्ती के बीच बड़े बाप की बात कहां से आ गई। आभा जी मुझे तो लगता है आपकी इस पोस्ट में वह एक पंक्ति ही सारा परिदृश्य सामने रख देती है।
दूसरी बात बहुत आदर के साथ। मुझे अभी तक नहीं पता था कि अपना घर में बोधिसत्व जी भी रहते हैं। पर मुझे आपकी यह पोस्ट पढ़ते हुए या इसके पहले की पोस्ट पढ़ते हुए भी कभी किसी और की झलक नहीं दिखाई दी।
यह बहुत महत्वपूर्ण बात है कि आप उनकी छाया से अपने को अलग रख पाईं हैं या रख पा रही हैं। मेरे लिए तो बहुत सम्मान की बात है।
मैं यहां भी यह कहना चाहता हूं कि हम मानस को मानस बनने दें, उसे उसी नजर से देखें। अन्यथा असमय ही हम उसका मूल्यांकन आभाजी और बोधिसत्व की छाया में करने लगेंगे जो एक विकसित होते बच्चे के लिए शायद अच्छा नहीं है।
Pyare ghar pariwar ka manbhawan chitran kiya hai aapne... behad achha laga... Bache sabse achhe, man ka sachhe.sachhe...
Manas ko bahut bahut haardik shubhkamnayne.
बहुत अच्छा लगा मानस के बारे में पढ़कर |दीर्घायु भव|
बहुत बहुत आशीष मानस को!!
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