खून अपना रंग दिखाता है
मेरी बेटी भानी हर हाल में अपनी बात मनवाती है । उसके इस स्वभाव के चलते
हम सब उसे घर का गुण्डा घोषित कर चुके हैं । भानी के भाई मानस स्कूल से या खेल कर लौटे, बहन के न दिखने पर पूछते हैं, कहाँ हैं अपना गुण्डा, ऐसे ही हम दोनों भी, कहाँ है गुण्डा चंद, गून्डू कहते हैं। खैर हम सब एक सीमा के बाद भानी के शरण में आ जाते हैं इस बाबत बहुत सारी बातें हैं क्या क्या बताऊँ और क्या क्या जाने दूँ,......
मै यह सोच समझ कर भी खुश रहती थी कि अच्छा है ऐसा ही होना चाहिए,
पर बड़ी होकर ऐसे ही करती रही तो...... मन उलझन में भी पड़ जाता है ।
भानी की ये दादागीरी घर ही नहीं बाहर भी चलती है ।
पर भानी कल स्कूल से लौट कर आई । एक घंटे बीतने के बाद जो बाते हुईं उसमें मैं खुद के बचपन को देखने लगी कि जब मैं पहली दूसरी मे पढ़ा करती थी, कैसी थी, ऐसे ही जैसे भानी सुना रही है ।
एक कुलदीप नाम का लड़का और आभा नाम की लड़की..या.
जब कभी आभा की टीचर नहीं आती तो उसे कुलदीप के क्लास में जाना पड़ता
आभा की तो जान हथेली पर होती अब क्या क्या होगा, होता भी ।
आभा की टिफिन कुलदीप पढ़ाई के बीच चट कर जाता, टिफिन जब तक खाता ठीक से सीट पर बैठने देता पर अपना का खत्म होते ही खुद सीट पर डट कर बैठता और आभा
बैठी क्या कुरसी पर लटकी होती, ऊपर से कुलदीप यह कह कर डराता कि अगर टीचर से
शिकायत की तो बहुत मारूँगा, आभा डरती क्यों न कुलदीप पढ़ता पहली में लगता ऐसा जैसे पाँचवीं का छात्र । और आभा एक मरियल सी लड़की
जैसा कि अक्सर होता है । देर सबेर टीचर को सारी कहानी पता चल गई.।
उसके बाद जब कभी आभा को कुलदीप के क्लास में जाना होता, आभा खुश होती,
हो भी क्यों न, अब वो टीचर के बगल वाली सीट पर बैठती .....
अब रही बात भानी कि तो उसे मैं टीफिन में सब्जियाँ अलग से नहीं देती ताकि उसके कपडे़ गंदे न हो दूसरे भानी अक्सर सब्जियाँ नहीं खाती सो मैं सब्जी को रोटी, पराठा पूड़ी मे भर कर देती हूँ और सब्जी वाले खाने में पिस्ता, काजू या कोई सेव, नमकीन रख देती हूँ ताकि भानी खुश हो कर खाए । पर आज बात करने पर पता चला वो पिस्ता काजू और भी कुछ भानी नहीं खा रही बल्कि प्रिशा नाम की लड़की रोज खा लेती है
भानी उससे दोस्ती नहीं करना चाहती न ही उसके साथ बैठना ।
एक दूसरी आगे की क्लास में पढ़ने वाली लड़की ने बताया कि आंटी भानी स्कूल में रो रही थी और कह रही थी कि मुझे मम्मी की याद आ रही है, फिर मैने इसे चुप कराया कि मम्मी थोड़ी देर में मिल जाएगी और इसके क्लास की एक लड़की भी चुप करा रही थी ।
मै करूँ क्या सारी बाते सुन कर खीझ भी हुई फिर हँसी भी आई कि प्रिशा भी भानी के तरह की एक बच्ची है ।
कुल मिला कर यही कह सकती हूँ कि भानी की गुण्डागीरी प्रिशा के आगे हवा हो गई है। या फिर यह कि खून आपना रंग दिखाता है।
आप सब की क्या सलाह है......।
13 टिप्पणियां:
भानी बिटिया की बालसुलभ हड़कउअल को गुण्डागीरी का नाम तो मत दिजिये जी..:)
खुद रास्ता खोज लेगी प्रिशा के साथ. वरना एकाध बार बस प्रिशा को बता दिजिये प्यार से कि आपको यह बात पता चल गई है. बच्ची है वो भी. समझ जायेगी.
वरना उसके लिये भी अलग से भिजवाईये और हमारे लिए भी. :)
अच्छा है, भानी सीख रही है और अपने अनुसार दूसरी लड़की की गुण्डई का हल भी ईजाद करेगी।
आप बच्चे की चेतना पर विश्वस करने का यत्न करें।
सीखने की प्रक्रिया रोचक होती है और सर्वदा सीधी सपाट नहीं होती!
आभा जी,
आपके बचपन की बातेँ सुनकर मजा आया :-)
-
प्रिय भानी का खाना चट करनेवाली प्रिशा को एकबारी आप अवश्य डाँट लगायेँ --
ताकि आगे से वो भानी का टीफीन साफ ना करे ..
घर पर तो बच्चोँ को भरपूर हिम्मत और प्रोत्साहन के साथ सही वक्त पर अनुशाशन मिलते रहना चाहीये --
ऐसा मेरा ख्याल है आप सभी को स्नेह,
- लावन्या
अरे!.. ऐसा कैसे चलेगा? नहीं-नहीं.. ये नहीं चलेगा..!भानी तुम संघर्ष करो.. हम तुम्हारे साथ हैं!
बोधिजी की बिटिया है, ऐसी ना होती, तो चिंता का विषय होता जी। अब तो नार्मल है जी।
अच्छा लगा और मजा भी आया भानी का बचपन के बारे में जानकर..
अब जबकी अभय जी ने कह ही दिया है कि भानी तुम आगे बढो हम तुम्हारे साथ हैं तो अब आगे हम क्या कहें जी.. ;)
वैसे आपकी बिटिया बहुत प्यारी है.. :)
आभा जी अब वो जमाना नही रहा कि भानी का खाना कोई और खाए।भानी ख़ुद ही उससे निपटने का अपना निकाल लेगी।
और आपने शीर्षक बहुत सही दिया है। :)
थोड़े दिनों बाद भानी प्रिशा को समझा लेगी. बिना किसी गुंडागर्दी के.
और जानती हैं भानी क्या कहेगी प्रिशा से? कहेगी; " प्रिशा, मैंने कई बार टिपण्णी करके कई ब्लॉगर को ठीक कर दिया है. एक बार पोस्ट भी लिख डाली थी. संभल जाओ नहीं तो तुम्हारे बारे में एक टिपण्णी टीचर आंटी को और दूसरी टिपण्णी तुम्हारी मम्मी को दे दूँगी".....:-)
खून का तो पता नहीं लेकिन आप जब भी बचपन की बातें लिखती हैं.. बहुत अच्छी लगती हैं. मासूमियत लिए हुए... और बाकी इतने सुझाव तो आ ही गए हैं :-)
maza aata hai bhani ki baaten sunkar....dekhiyega wo prisha se khud hi nipat legi. chhote gunde ko bada gunda mil hi gaya...:)
Bhani bitiya ki kahani sun kar achchha laga.
अगली पोस्ट का इंतजार है।
आभा जी, वैसे मै इस मामले मे उदण्ड हुँ, स्कुल टाईम मे बेवजह किसी से मार-पीट नही की, पर मुझे अगर किसी ने परेशान किया हो तो... बेचारा बच्चा, याद आती है वो बाते तो हँसी आ जाती है, मेरे बाद २ बहने एक छोटा भाई है, बहनो कि फ़िक्र मुझे नही होती, क्योंकि अगर मै शेर थी तो वो सवा-शेर हैं। भाई अभी क्लास १ मे है और जाने क्यों उसमे हम बहनो के ये लक्षण नही आये.. इसलिये मै भाई के स्कुल ख्याल रखती हुँ, ऐसा नही कि हर बार मै शिकायत लेकर पहुँच जाती हुँ, पर हाँ मेरे भाई को कोई भी बच्चा बार-बार परेशान करें तो उसको सबक मिलता है, माना कि दोनो ही बच्चे हैं, पर इसका मतलब ये नही हुआ कि किसी की गलती को बार बार नजर-अन्दाज किया जाये, अगर मै नजर अन्दाज करूँ भी तो मेरा यह अनुभव है कि मेरे भाई जैसे बच्चो के मानसिक विकास पर असर पडता है। इसलिये आपको कोई ठोस कदम उठाना ही चाहिये, ऐसा नही की आप भानी के लिये हर बात मे स्कुल जाईये, पर हाँ उसे ऐसा भी महसुस ना हो कि स्कुल मे मेरी दादागीरी नही चलती, अगर आप प्रिशा के खिलाफ़ कोई कदम नही लेती हैं तो भानी धीरे-धीरे स्कुल से ही कतरा सकती है, उसका मानसिक विकास भी रूक सकता है, इसलिये मेरी राय मे आपको भानी के क्लास टीचर से बात कर लेनी चाहिये, और भानी को भी विश्वास मे लिजिये कि वो इस तरह के व्यवहार के खिलाफ़ खुद ही आवाज उठाये।
और हाँ बेटीयों को आजकल उदण्ड बनाने मे कोई बुराई नही है, समाजिक हालात ही ऐसे हैं कि सुरक्षा के नजरिये से, समाज मे खडे होने से हर नजरिये से, लडकी को दिल-दिमाग, शारिरिक रूप से मजबुत ही होना चाहिये, एक दम गुण्डा टाईप।
एक टिप्पणी भेजें