गुरुवार, 21 अगस्त 2008

कितनी पुरानी साध है यह

कितनी पुरानी साध है यह


कितनी पुरानी है मेरी इच्छा
मैं तुम्हें काजल बनाना चाहती हूँ..

रोज-रोज थोड़ा आँज कर
थोड़ा कजरौटे में बचाए रखना चाहती हूँ....

तुम धूल की तरह धरती पर पड़े हो..

धूल .....

पैरों में ही अच्छी लगती है
आँखों में नहीं जानती हूँ...
फिर भी ..
मैं तुम्हे जलाकर
काजल बनाना चाहती हूँ.....

दीये की लौ से
कपूर की लपट से काजल बनाना बताया था माँ ने
सभी बना लेते हैं काजल..उस तरह ...


मेरे मन पर छाए हो तुम ...
मैं तुम्हें एक बार नहीं हर दिन हर रात
हर साँस हर पल अपनी पलकों में
रखना चाहती हूँ...
चाहती हूँ रोने के बाद भी तुम बहों नहीं...रहो..
एक काली पतली सी रेख...चमकती सी..

तुम रहो मेरी आँखो में
मेरी छोटी-छोटी असुंदर आँखों में...
मेरी धुँधली मटमैली आँखों में रहो...
ऐसी है मेरी पुरातन इच्छा.
अजर अमर इच्छा।

७ जुलाई 2008

14 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत ही प्यारी और सुंदर इच्छा है आपकी यह आभा जी .अच्छी लगी आपकी यह इच्छा इस कविता के रूप में

कुश ने कहा…

मैं तुम्हे जलाकर
काजल बनाना चाहती हूँ.....

आह! कितनी सुंदर बात.. मनभावन

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत अच्छा लगा यह कविता पढ़कर। खासकर ये पंक्तियां:
१.मेरे मन पर छाए हो तुम ...
मैं तुम्हें एक बार नहीं हर दिन हर रात
हर साँस हर पल अपनी पलकों में
रखना चाहती हूँ...
चाहती हूँ रोने के बाद भी तुम बहों नहीं...रहो..
एक काली पतली सी रेख...चमकती सी..
२.तुम रहो मेरी आँखो में
मेरी छोटी-छोटी असुंदर आँखों में...


नियमित लिखा करिये न!

डॉ .अनुराग ने कहा…

bahut khoob......

Abhishek Ojha ने कहा…

'मोरा गोरा अंग लेई ले ... '
बस ऐसे ही इस गाने की याद आ गई... बहुत अच्छी लगी ये कविता.

Udan Tashtari ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दर, बधाई.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बहुत दिनोँ के बाद
आपको पढ रहे हैँ ..
सुँदर भाव हैँ !
प्रेम ऐसे ही उमडता है ..
- लावण्या

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत ही अच्छी कविता।

Nitish Raj ने कहा…

बहुत ही प्यारी कविता और छोटी और सुंदर आंखों में प्यारी सी इच्छा। बहुत खूब

travel30 ने कहा…

Aapki Iksha puri ho jae.. Aisi hamari Iksha hai :-), bahut pyari kavita

New Post :
मेरी पहली कविता...... अधूरा प्रयास

दीपक बरनवाल ने कहा…

estri prem jab bhee kisi se karti hai to purna samarpan ke sath karti hai

samma swaym jal kar parwane ko jalnaa sikhati hai

aapne to kavita ke madhyam se jalaa kar aankon men basaanaa chahate hain

kavita ke bhav achchhe hai
lekhanee nirantar chale yahi dua hai

Arshia Ali ने कहा…

मेरे मन पर छाए हो तुम ...
मैं तुम्हें एक बार नहीं हर दिन हर रात
हर साँस हर पल अपनी पलकों में
रखना चाहती हूँ...
चाहती हूँ रोने के बाद भी तुम बहों नहीं...रहो..
एक काली पतली सी रेख...चमकती सी.

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं। बधाई।

vijay kumar sappatti ने कहा…

Aaj pahli baar aapke blog par aaya hoon , pad kar bahut accha laga.

kavitaayen bahut acchi hai , specially ye lines :

मैं तुम्हे जलाकर
काजल बनाना चाहती हूँ.....

bahut bahut badhai .

main bhi poems likhta hoon , kabhi mere blog par bhi aayiye.
my Blog : http://poemsofvijay.blogspot.com


regards

vijay

vijay kumar sappatti ने कहा…

Aaj pahli baar aapke blog par aaya hoon , pad kar bahut accha laga.

kavitaayen bahut acchi hai , specially ye lines :

मैं तुम्हे जलाकर
काजल बनाना चाहती हूँ.....

bahut bahut badhai .

main bhi poems likhta hoon , kabhi mere blog par bhi aayiye.
my Blog : http://poemsofvijay.blogspot.com


regards

vijay