शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

क्या हमारी जिन्दगी का स्क्रीन प्ले नेता और आतंक वादियों के हाथ में है ?

हर बार एक नई परत खुल रही है । हर परत के नीचे दबता आम हिन्दुस्तानी दमघोटू माहौल में जी रहा है। राजनेताओं ने अपनी रोटिय़ाँ सेंकी,इतनी सेंकी की आम जनता इनकी रोटियों के नीचे दबती गई । मूढ जनता भी समझ रही है साफ साफ । जिसे भुगत रही आम जनता, हमारे जवान ,हमारे अधिकारी।
इस वोट की राजनीति ने वैमनस्यता की इतनी दीवारे खड़ी कर दी हैं जिन्हें मिटाना
नामुमकिन सा दिख रहा है , इन्हीं परिस्थितियों का लाभ उठाया इन आतंकी संगठनों ने । इस छलावे की राजनीति में आतंकी अजमल के हाथ पर बधी रोली भी नित नई उलझन नित नई गुत्थी जो हमेशा की तरह उलझी की उलझी रहेगी । हर दिन हम सभी अपने अपने घरों में न्यूज पेपर और खबरी चैनल देखते हैं इस उत्साह के साथ की कुछ तो सही सही सबूत सामने आएगा पर वही ढाक के तीन पात ।
भावुकता इन्सानियत का गला घोटती है और धसाती जाती है दलदल में । भारतीय जनता सचमुच दलदल में फस गई है ,इससे कैसे ऊबरा जाए सोचना होगा । या फिर वही बयान और जूलूस के बाद फिर किसी भी दिन सौ दो सौ का अकाल काल के गाल में चले जाना जारी रहेगा ।
छब्बीस ग्यारह के सदमे से हर भारतीय सदमें का गुबार लिए जी रहा है पर क्या लगभग सवा अरब जनता का साथ देगें ये मुट्ठी भर नेता ? देखिए देखिए नेता जी को आप बरबस कहेगे भुख्खड़ नेता कैसा हो नारायण राणे जैसा हो । कैसे बच्चे हैं ये नेता जिन्हें कुर्सी चाकलेट की तरह अच्छी लगती है नहीं मिली तो लोट पोट शुरू ।
इस राजनीति और आतंकवाद पर कहने को बहुत बहुत कुछ हर जनमानस के मन में है ।फिलहाल बचपन की पढ़ी एक एक कविता जनता, नेता और मातम पसारने वाले चेहरों के लिए।
जनता के लिए
वीर तुम बढ़े चलों
धीर तुम बढे चलो,
सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो।
तुम निडर हटो नहीं
तुम निडर डटो वहीं,
प्रात हो की रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो
चंद्र से बढ़े चलो ,
वीर.......
नेताओं को समर्पित
उठो लाल अब आखें खोलो
पानी लाई हूँ मुहँ धोलो,।
बीती रात कमल दल फूले,
उनके ऊपर भौरे झूले।
चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर,
बहने लगी हवा अति सुन्दर।
नभ में न्यारी लाली छाई ,
धरती ने प्यारी छवि पाई ।

भोर हुआ सूरज उग आया ,
जल में पड़ी सुनहरी छाया।
ऐसा सुन्दर समय न खोओ,
मेरे प्यारे अब मत सोओ।
आतंक के सौदागरों से
तु्म्हें भी किसी माँ ने जनम दिया है
वह तुम जैसों को
जन्म देने से पहले मर क्यों न गई
कम से कम अपनी जननी की खातिर बन्द करो खूनी खेल।
खुद जिओ औरों को भी जीने दो
यही तो है जिन्दगी का रास्ता
तुम्हें अमन का शान्ति का वास्ता
यही तो लिखा गीता और कुरान में
यही तो वाणी नानक और कबीर की
इसी लिए तो गाँधी जी नें जान दी
की समझे दुनिया बात उस फकीर की
खुद जिओ...

6 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बहुत सुँदर और सार्थक कविताओँ सहित सामयिक आलेख लिखा है आपने ~~

Udan Tashtari ने कहा…

सभी के मन में ऐसे ही कुछ भाव उठ रहे हैं...


ये न खुद जियेंगे और न जीने देंगे!!

कौन और कैसे समझाये इन्हे!!

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बड़ी जबरदस्त पंच लाइन है - हमारी जिन्दगी का स्क्रीनप्ले फलाने के हाथ!
सच में नाटक के पात्र या कठपुतलियों से बहुत बेहतर नहीं लगती जिन्दगी कभी कभी।
बहुत सुन्दर पोस्ट।

अफ़लातून ने कहा…

पुनर्जागरण पर हार्दिक शुभ कामनाएं ।

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

इस तरह का रोष अमुमन सभी का है। सभी ने राजनेताओ कि मानसिकता कि जमकर घुनाई भी अपने अपने लेखो मे कि। आतकवादियो को आपने भी कोसा हमने भी वही किया। आपने अपने उदगारो से लोगो कि सोई हुई मानसिकता को झन्झोर कर जगाने का प्रयास किया है। मुझे अच्छा लगा। किन्तु मुझे ऐसा लगता है लोग निन्द से उठना ही नही चाहते है। कही न कही आम जनता भी अपने अघिकारो के प्रति उदासिन है और जाने अनजाने ऐसे नेताओ या समुहो का समर्थन करके अपराध कर रही है। देश के नागरिको को अब "मेरा" छोडकर "हमारा" पर आना होगा। कठोर रवैयॉ अपनाना ही होगा तभी आप जैसे लेखको कि लेखनी फलिभूत हो सकेगी।

Alpana Verma ने कहा…

abha ji namastey,
mere blog tak aapne aur badhyeeyon ka shukriya.
aap ke blog par pahli baar aana hua.

bahut achcha lekha hai..aap ke vicharon se main bhi sahmat hun..jald hi koi na koi solution to nikalana hi hoga.