जाड़ा चाहिए
उत्तर भारत ठंड की चपेट में है। लोग मर रहे हैं। इस कड़ाके की ठंड को देखते हुए मैं रात 10 के बाद किसी संबंधी, किसी दोस्त मित्र को फोन नहीं कर रही हूँ। क्या पता वो रजाई में घुस चुका हो। पर यहाँ मुंबई में स्वेटर सिर्फ निकले हैं और हम सोच रहे हैं कि काश और ठंड पड़ती और हम स्वेटर पहनते। याद कर रहे हैं धूप में भी रजाई ओढ़ कर सोना।
रात गए मुंगफली तोड़ कर खाना। बाजरे की रोटी और गुड़ खा रही हूँ पर वह स्वाद नहीं मिल रहा है। याद आ रही है ओ ठंड जब हम स्कूल कॉलेज या विश्वविद्यालय जाया करते थे और ठंड से मेरी नाक आँख लाल हो जाया करती थी । ऐसा लगता था कि मैं रो रही हूँ। सहेलियाँ पूछती थी कि क्या हुआ क्यो रो रही हो। मैं बताती की ठंड लग रही है। रो नहीं रही हूँ।
जब क्लास नहीं होती हम सब धूप खोजते कि कहाँ बैठा जाए। और मुह से खूब भाप निकालते। गरम-गरम भाप। हम लेक्चर रूम में जाने से बचते। दुआ करते कि आज पढ़ाई न हो और हम घर जा कर रजाई में दुबक जाएँ। और घर में काम न करने के लिए बहाने खोजते थे। कैसे भी किचेन में अपनी जगह किसी और को फसाने का जुगाड़ बिठाते थे। और अगर खुद जाना हुआ तो खिचड़ी या तहरी बना कर छुट्टी पा लेते थे।
आज दोपहर में अपनी सासू माँ से बात की तो पता चला कि गाँव में 1 बजे दोपहर में भी धूप नहीं है। वे सब आग ताप रहे हैं। गोल बंद गोष्ठियाँ चल रही हैं। मन आया कि वहाँ पहुँच जाऊँ।
जाड़ा कथा जारी है.....
12 टिप्पणियां:
आपने अच्छा याद दिलाया, हम तो भूल गए थे कि धूप भी तापी जाती है। अब तो केवल उससे बचा ही जाता है। जमाने बीत गए धूप में बैठे हुए।
घुघूत बासूती
अरे हमारे यहां आज -१२ c ताप मान है ओर एक दो दिन मै -२० से भी नीचे जाने वाला है, आप धुप की बात कर रही है, अजी यहां तो बाहर जाने से पहले १० से भी ज्यादा कपडे, जुते, टोपी, मोजे यानि आधा घन्टा तो तेयार होने मै लग जाता है,
लेकिन आप की पोस्ट ने बचपन याद दिला दिया.
धन्यवाद
बढ़िया लेख, सर्दियों का मज़ा तो गुनगुनाती धूप में ही है
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
कल हम भी यादों में डूब-उतर रहे थे.. आज आप भी.. लगता है यादों का मौसम लौट आया है..
आइये आइये यहाँ तो धूप को तरस रहे हैं हम :).सर्दी का अपना ही मजा है .
स्कूल में गुरुजनों से आग्रह कर धूप में ही क्लास लगवाते थे । गुरुजी को हम से ज्यादा लगती होगी ठण्ड !
एक-एक शब्द अपने साथ भी हो रहा है... रात की जगह दोपहर में फ़ोन करता हूँ. सुबह ही घर पे बात हुई धुप नहीं निकल रही. पिछले सप्ताह मुंबई में था, वैसे पुणे में भी मुंबई की तरह ही ठण्ड नहीं है.
घर पर सर्दी में आग के पास बैठकर घंटो बात...
हॉस्टल में रजाई के अन्दर पड़े रहना और रजाई के अन्दर धीमे-धीमे पहुचती जगजीत सिंह की गजलें...
बढ़िया लेख
अरे नहीं, इस ओरी मत आइयेगा अभी। हाल बुरा है। ट्रेन लेट आने की पूरी गारंटी है कोहरे में! :)
आप ने सही कहा मुंबई में रह कर जाड़े का पता ही नहीं चलता...आजकल जयपुर अपने घर आया हुआ हूँ और उस ठण्ड का भरपूर मजा लेरहा हूँ जो मुंबई में दुर्लभ है...गुड और बाजरे मक्की की रोटी, गजक और मूंगफली खाना और धुप में बैठ कर मीठी गाजर मूली कुतरना...वाह...लगता है अगर कहीं जन्नत है तो यहीं है....
नीरज
आप मुंबई मे बैठकर सरदी को याद कर रही हैं यहां दिलली में मैं सरदी से जलदी जाने के लिए चिरौरी कर रहा हूं। जरा पढ़कर तो देखिए मेरा ब्लाग- http://babloobachpan.blogspot.com/
तहरी ये कौन सा व्यँजन है आभा जी ? बता दीजिये -
पहली दफे नाम सुन रही हूँ :)
बम्बई की सर्दी तो ऐसी ही होतीँ हैँ -स्वेटर भी शरमा जाये ~~
स स्नेह,
लावण्या
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