घर में अकेली हूँ। बच्चे पापा के साथ घूमने गए हैं। मैं न गई। अधकपारी से सिऱ फटा जा रहा है। चाय चढ़ा कर भूल गई। जब जलने की महंक आई तो दौड़ कर किचेन में गई। सब कुछ जल चुका था। चूल्हा बुझा कर लौट आई। चाय पीने का मन है लेकिन बनाने का मन नहीं है। सोच रही हूँ कोई देवरानी जेठानी या सास या बहन भाई साथ में होते तो चाय कब की मिल चुकी होती । शाम हो रही है। अंधेरा शहरों में वैसा गाढ़ा कभी नहीं हो पाता जैसा गाँवों में होता है। यहाँ सूरज के उगने और डूबने का पता ही नहीं चलता। शाम होते ही बत्तियाँ जल पड़ती हैं। बत्तियाँ जला कर बैठी हूँ। कुछ करने का मन है।
एक थका सा उपन्यास पढ़ रही हूँ लेकिन उसकी कहानी ही नहीं खिसक रही है। नहीं लगता कि यह किताब मुझसे पढ़ी जाएगी। आधी अधूरी पढ़ कर छोड़ी गई किताबों में एक किताब और जुड़ने जा रही है। सोच रही हूँ बाहर निकलूँ तो शायद अच्छा लगे। लेकिन अभी घंटी बजेगी। अभी बच्चे लौट आएँगे। अब तो उनके आने के बाद ही कुछ कर पाउँगी। लेकिन उनके आते ही तो धमा चौकड़ी शुरू हो जाएगी। जीवन का मीठा खेल फिर शुरू हो जाएगा। कई पैरों के सीढ़ियों पर चढ़ने की आवाज आ रही है। बेटी कितने जोर से काँय-काँय कर रही है। निर्भय निरदुंद....मैं उनके घंटी बजाने का इंतजार नहीं कर सकती। बच्चे बाहर दरवाजे की तरफ आ रहे हों तो रुका नहीं जा सकता। चलती हूँ...भविष्य का स्वागत करती हूँ।
18 टिप्पणियां:
पता नहीं आपके ब्लौग पर मुझे अपना घर सा क्यों लगता है.. चलिये अब भविष्य आ ही गये होंगे तो भविष्य के पुरोधा जी से कहिये चाय बना देंगे.. :D
भविष्य का स्वागत बहुत खूबसूरती से --
बहुत अच्छा लगा
पीडी की बात दोहरा रहे हैं/आइये हम चाय बना रहे हैं!
पीड़ी भाई
पुरोधा ने चा बना दी है...
एम वर्मा भाई आभारी है
अनूप भाई बनाइए आती हूँ.
बहुत उम्दा चित्रण मनोभावों का..चाय पी की नहीं फिर!!
बहुत सुंदर, बच्चे ही तो है हमारा भविष्य,ओर घर भी इन के बिना अपना नही लगता, चलिये अब कम मीठा डाल कर चाय पीये, सर दर्द ठीक हो जायेगा.
बहुत सुहाना है भविष्य का स्वागत ...मेरी भी आदत है बच्चों के स्कूल से लौटने से कुछ देर पहले ही बाहर खड़े हो कर उनका इन्जार करना ..और चाय ...ये तो बहुत बड़ी कमजोरी है ...चाय का कप रखते ही अगर टीवी पर चाय का विज्ञापन भी दिख जाये तो फिर से पीने की तलब होने लगती है ..बहुत अपनी से लगी आपकी यह प्रविष्टी... !!
ये मन को भला लगा -- आप सभी को विजया दशमी की शुभकामनाएं तथा आगामी दीपावली के त्यौहार भरे दिनों के लिए , भी :)
Please have Tea & hope you feel better soon ........
स - स्नेह,
- लावण्या
परिवार टूटने का संकेत और भविष्य का स्वागत करने की ललक के बीच बेचारी चाय रह गयी। वैसे भी अकेले चाय पीने का कोई तुक भी नहीं है।
काफी दिनों बाद नजर आईं आप ..स्वागत है :-)
स्व -आगतम !
"जीवन का मीठा खेल फिर शुरू हो जाएगा"……अनमना मन फिर - फिर मन सा गया ? :)
आज ही मुझे चूल्हा बुझाना भी न पड़ा । दूध के उफ़ान से लौ बन्द हो चुकी थी , गैस की दुर्गन्ध फैल चुकी थी । यह सब पहले उफ़ान में ही हुआ इसलिए कम ही दूध बहा था । चाय बना सका ।
ek baat to meri aur aapki bhi milti hai...
wo kuch upnaas jo adhpadhe hi reh gaye....
:(
भबिष्य का शानदार स्वागत होना ही चाहिए।
भविष्य के स्वागत में अधकपारी को दबाना ही होता है।
मेरी पत्नी भी इसमें प्रवीण है। शायद सभी स्त्रियां प्रवीण होती हैं।
भविष्य भी आपका स्वागत करने को आतुर होगा बधाई !
आभाजी, बहुत दिनों बाद आपके ब्लाग पर आई हूं, पर आपकी यह बात भी हमेशा की तरह भली लगी कि भविष्य की तरफ देख ऱही हूं, पता नहीं क्यूं औरतें बच्चों की एक आवाज सुनते ही अपने सारे सुख दुख कैसे भूल जाती हैं
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