शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

ब्लॉग की हिंदी भविष्य की हिंदी हो के रहेगी


इलाहाबाद ब्लॉगर सम्मेलन में बहुत कुछ पाया

इलाहाबाद ब्लॉगिंग संगोष्ठी में जाने से पहले ही हमारी बनारस की घरेलू यात्रा तय हुई थी, यात्रा सुनिश्चित होना ही था कारण यहाँ मुम्बई मे दीवाली की पंद्रह दिन की बच्चों की छुट्टियाँ, फिर उधर यूपी में न सर्दी होगी न गर्मी। बच्चे सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित की स्थिति बन गई । तभी पता चला कि इलाहाबाद में ब्लॉगिंग संगोष्ठी भी उन्हीं दिनों तय की गई है । कुल मिला कर मुझे निमंत्रण मेल मिला और मैं संगोष्ठी की भागीदार बनीं।
मुझे खुशी इस बात की थी कि क्या अच्छा मौसम है, बच्चों की छुट्टी और संगोष्ठी साथ-सा। लेकिन इतना तो तय है यदि छुट्टी न होती तो मैं इस ब्लॉगिंग संगोष्ठी में चाह कर भी न होती । खैर बुलाया तो बुलाया, गई तो गई ।

अब बात मुद्दे की । इलाबाद पहुँचने के पहले मैने मेल में मिले आठ मुद्दों में से एक
आखिरी या आठवाँ अभिव्यति की उन्मुक्तता पर बोलना तय किया। और बिंदास होकर अपने प्रयाग राज में दो दिनों के लिए पैर जमाया ताकि जम कर अपनी बात कहूँ और यह मौका न चूकने के जोश के साथ के साथ बातों को रखूँ।
लेकिन इलाहाबाद पहुँच कर बोलना पड़ा ब्लॉग पर बहस के मुद्दे और भाषा । इस अचानक तय मुद्दे पर बरबस बोल गई अई हो दादा...क्या करूँ । फिर जवाब भी खुद ब खुद मिला करूँ क्या डटूँ बहस के मुद्दे पर। जो जँचे
लिख डालूँ
पढ़ डालूँ या
मुझे जो लगा किया अब जिसे जो लगे सो करे
पढ़े या कहे धत्त जाने दे ...
फिर वहाँ ऐसा भी माहौल बनने लगा जैसे अक्सर एक दूसरे की पोस्ट पर बेवजह विपरीत माहौल बन जाता है, पर जो कहना था सो कहा।

मैंने अपना वक्तव्य इन शव्दो मे रखा
मित्रों अभिव्यति की स्वतन्त्रता राजा राम के समय से है तभी किसी एक के कहने पर जनक-दुलारी सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी, सो मुझे भी अपनी बात कहने दें । बाद में टोका टाकी करें । और मुझे लगेगा कि उत्तर देना उचित है तो दूँगी वर्ना आप सब मुझे माफ करेगें, सचमुच सभी ब्लॉगर मित्रों ने धैर्य से सुना इसके लिए उनकी आभारी हूँ

ब्लॉग पर बहस के मुद्दे और भाषा

1-मेरा मानना है कि ब्लॉग बहस की दुनियाँ नही है,वास्तविकता यह है कि हिन्दी समाज में बहस एक सीरे से गायब है लोग बहस नहीं करते बल्कि अपने फैसले सुनाते हैं साथ ही इस अंदाज में पेश आते हैं कि मै महान तू नादान , मैं सही तू गलत। ऐसे माहौल में क्या किसी समाज में चाहे वह ब्लॉग ही क्यों न हो बहस कैसे हो पाएगी और जो बहस होगी भी वह एक तरफा होगी। पूर्वाग्रह से ग्रस्त होगी, और जो थोड़ी बहुत बहस है भी वह बेनामी ब्लॉगर्स की वजह से हमेशा एक गलत दिशा ले लेती है। यह छुपे हुए लोग अपनी दुश्मनियाँ अपनी खुन्नस निकालते हैं
2- मेरा मानना है कि अगर बहस करनी हो तो एक खास ब्लॉग बने, मुद्दे तय किए जाएँ मुद्दे सुझाए जाएँ फिर बहस एक मुकाम पर जाए ताकि ब्लॉग को एक खास पहचान मिले।
3-वैसे भी ब्लॉग अब पहचान का मोहताज नहीं इसका प्रमाण यह इतना बड़ा आयोजन ही है । लेकिन अफसोस है कि ब्लॉग पर बड़े से बड़ा मुद्दा पुराना और उबाऊ हो जाता है। लोग हर दिन नई बात ढ़ूँढते हैं । एक ही बात को लेकर चलना ब्लॉग का स्वभाव नहीं है।
4- ब्लॉग बोले तो बहता पानी । हर पल चढ़ाई गई पोस्ट किसी भी बहस को धूमिल करती जाती है ।
5- जो लोग बहस करते भी हैं वह बेसिकली सामने वाले ब्लॉगर के संहार और सामाजिक हत्या के प्रयास में लगे रहते हैं । न तो उनके यहाँ बहस की गुंजाइश है और न भाषा और कोई लोकतांत्रिक दबाव ही रहता है ।
6- ब्लॉग खेमेबाजी का शिकार होता दिख रहा है । यह गुटबाजी ब्लॉग भविष्य के लिए ठीक नहीं । यह खेमेबाजी बहसों को खत्म करने या गलत दिशा देने में अपनी खास भूमिका अदा करती है।
7- ब्लॉग के रूप को देखते हुए आप सभी समझ सकते हैं कि लिखने और खुद को उजागर करने कि ऐसी आजादी न कभी देखी-सुनी न ही पाई गई है। आप किसी भी मुद्दे को लिखने और प्रकाशित करने को स्वतन्त्र हैं। किसी भी भाषा, किसी भी शब्दावली में लिखने को आजाद हैं । और यही आजादी ब्लॉग जगत की भाषा को कभी कभी असंयत, गैरजिम्मेदार बना देती है । क्यों कि आप अपने ब्लॉग के लेखक, प्रकाशक और संपादक खुद होते हैं । इसलिए आप हम अपने संपादकीय अधिकारों का दुरूपयोग कर पाते हैं। जिसके चलते अच्छे-अच्छे मुद्दे में भी चौक चौबारे की अर्मयादित भाषा का बोल बाला हो जाता है.
8- इन सारी विसंगतियों के बावजूद ब्लॉग बहस का और अभिव्य़ति का सबसे बड़ा मंच बनेगा, बन भी रहा है। इस आधार पर कह सकती हूँ कि ब्लॉग का भविष्य बहुत अच्छा है। आज जो हिंदी ब्लॉगर्स की संख्या हजारों में है वो कल लाखों में और परसों करोड़ों में पहुँचेगी और ब्लॉगिंग हिन्दी भाषा और साहित्य को भी एक नया मुकाम देगी । साथ ही ब्लॉग की हिन्दी भविष्य की हिन्दी हो के रहेगी । अच्छी और सार्थक बहसें भी हो पाएँगी इसकी पूरी उम्मीद दिख रही है। बस इन्हीं शब्दों के साथ अपनी बात खत्म करती हूँ । मै हिन्दुस्तानी एकेडमी, महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविधालय, सिद्धार्थ त्रिपाठी, संतोष भदौरियाँ, अनूप शुक्ल, ज्ञान जी इन सब को धन्यवाद देती हूँ जिनकी वजह से मैं एक अदना ब्लॉगर अपने विचार यहाँ रख पाई और आप सब ब्लागर्स का भी जिन्होनें मुझे धैर्य से सुना, धन्यवाद।

22 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अच्छा लेख। यह दुर्भाग्य है कि ब्लाग जगत खेमेबाज़ी में बंट जाय क्योंकि यहां किसी गुटबाज़ी की आबश्यकता ही नहीं है। ब्लागजगत में सब के लिए स्पेस है तो गुटबाज़ी कैसी॥ यदि है तो मात्र अपनी टीआरपी के लिए है। यदि कोई भी ब्लागर ईमानदारी से अपना काम करे [टिप्पणियों और चटकों की परवाह किए बगैर, तो कोई कारण नहीं कि गुट पनपे। पर सवाल है कि क्या इस ईमानदारी के लिए तैयार है???

लोकेश Lokesh ने कहा…

जरा हमें बताईये कि इन बिन्दुयो पर हमारा ब्लॉग कहाँ है?

लोकेश Lokesh ने कहा…

टिप्पणियों और चटकों की परवाह किए बगैर बिना अदालत का भविष्य कैसा लगता है?

आभा ने कहा…

लोकेश आप मेरे ब्लॉग तक आए , अपनी टीप दी अच्छा लगा । मै कोन हूँ आप के ब्लॉग को वर्ग देने बाली , जो मुद्दा मिला उस पर दिया वक्तय छापी हूँ बस, फिर खुद को कहा रखते है आप ज्यादा सही बता सकते हैं । आभार
कमप्रेस्ड जी आप ने ,लेख को अच्छा कहा , मुझे खुशी हुई ... आप सही कह रहे हैं ब्लॉग जगत में सब के लिए स्पेश है। मुद्दा होगा तो समझ के हिसाब से बात होगी .आभार

आभा ने कहा…

cmpershad चंद्रमौलि प्रसाद जी जल्दी में आपका नाम गलत लिख दिया....माफ करिएगा।
आप जैसे सजग सहयोगियों के चलते ही लिखना सम्भव हो पा रहा है।

Asha Joglekar ने कहा…

अच्छा लेख, और जब प्रिंट मीडिया के दिन लद जायेंगे तो ब्लॉग और नेट ही होगा प्रकाशन का माध्यम । दखल तो लेनी ही पडेगी । गुट बाजी से तो बुराई ही पनपेगी ।

आभा ने कहा…

आशा जी प्रिट मिडिया के दिन कभी नहीं लदने वाले क्यों कि गावों में बिजली की व्यवस्था आज भी न के बराबर है वहाँ अखबार और पत्रिकाएँ ही सूचना ठीक से सूचना पहुचा पाती हैं।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अभी अभी लोक भारती में १०३४ रुपये खर्च कर आ रहे हैं हम। सो कैसे कहें कि किताब के दिन गये! :)

बाकी ब्लॉगजगत कोई होमोजीनस (homogeneous) वर्ग नहीं है। लोग समूह में बंटते हैं अपनी सामाजिकता के आधार पर। वही इसमें भी होगा/हो रहा है। उसमें क्या परेशानी है?

आभा ने कहा…

ज्ञान जी भाई अभी अभी मैनें भी नेशनल पब्लिशिंग हाउस से आए पैकेट को 1343 देकर
रजीस्ट्री छुड़वाई है ... :[खेमे बाजी यदि पूर्वाग्रह ग्रस्त न होतो बुराई नहीं है....

arun prakash ने कहा…

आपने बड़ी सटीक बाते उठाई थी वहां का माहौल देख कर उन्मुक्तता पर नियंत्रण का अपना आलेख जो बड़ी मेहनत से तैयार किया गया था मैंने पढ़ना उचित ही नही समझा क्योंकि माहौल बेनामी कुंठासुर आदि बहसों में उलझ गया था आपका लेख मैंने सुना अच्छा था और आज पढ़ कर फिर यादे तजा हो गयी

राज भाटिय़ा ने कहा…

खेमेबाज़ी ओर तांग खिचाई से हमे तो बोरियत होती है जी, हमारे लिये सब बराबर है, आप ने बहुत सुंदर लेख लिखा.

धन्यवाद

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सही मुद्दों पर बोली आप वहां ..भविष्य ब्लॉग जगत का उज्जवल हो यही उम्मीद कर सकते हैं ..

पंकज ने कहा…

अच्छी बहस. प्रिंट मीडिया के दिन लदने की बात तो टी वी के आगमन पर भी की गईं थी. पर प्रिंट आज भी उत्तरोत्तर बढता ही जा रहा है.

कुछ भी कहा जाये, रात को पढते पढते ब्लाग को तकिये की नीचे रख कर सो नहीं सकते, उसके लिये तो किताब ही चाहिये.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

ये इलाहबाद मीत की काफी चर्चा रही है ब्लॉग जगत में ....आपने भी भाग लिया ...बधाई .... ...अब अगर मौका पे मुद्दा बदल दिया जाये तो वक्तव्य सही शब्दों में नहीं रख पाते....फिर भी आपका वक्तव्य बहुत अच्छा लगा ....!!

शोभना चौरे ने कहा…

आपका वक्तव्य बहुत अच्छा लगा सीधा सपाट |गुटबाजी ही अलगाव का कारण बनती है और इसके चलते मोलिकता से दूर हो जाते है कितु ब्लॉग पर अपनी बात हम अपनी इच्छा से कह सकते है |

Asha Joglekar ने कहा…

आभा जी वैसे आपकी बात सही है प्रिंट मीडिया एकदम से तो कभी खत्म नही होगा और किताबें तो स्क्रीन पर पढना मुश्किल है ही पर ब्लॉग और नेट का तेजी से बढता प्रसार इसे एक टक्कर का माध्यम तो बना ही रहे हैं । ऐसे में विबिन्न ब्लॉग एग्रीगेटर्स को चाहिये कि वे मुद्दों के ऊपर सामुहिक चर्चा करें और उलझने सुलझायें न कि सम्मेलनों को अखाडा बनायें ।

निर्मला कपिला ने कहा…

पहली बार आपका ब्लाग देखा बेबाकी पसंद आयी शुभकामनायें

sandhyagupta ने कहा…

Aapke vicharon ne sochne ko majboor kiya.Shubkamnayen.

ज्योति सिंह ने कहा…

aap illahabad goshthi me shaamil hokar waha ki gatividhiyon ko itne kareeb se dekh paayi yah behad khushi ki baat hai ,aur hame bhi wahan ki jaankariya di iske liye shukriya

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आया. विचारोत्तेजक लेख के लिए बधाई!!

हिंदी ब्लॉगजगत में कोई गुटबाजी नहीं है अगर है भी तो यह एक स्वाभाविक परिणति है.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

सटीक एवं सार्थक पोस्ट.... साधुवाद..

neera ने कहा…

रोचक!