खोना पाना जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है इसमें जहाँ हम समय के साथ पुराने लोगों को खोते जाते हैं वहीं नए लोगों को पाते जाते हैं । पाने की खुशी की तरह खोने का दुख भी स्वभाविक है ।
कल 14 .12.09 की शाम मेरी नानी नही रहीं वह 87 वर्ष की थीं। मेरी मौसी ने फोन पर बताया कि उनका खाना पीना कम होता जा रहा था तभी उन्हें लगा इस साल की ठंड पार करना मेरी माँ के लिए बहुत मुश्किल है, वही हुआ भी ।
अपनों के बारे में बताने को बहुत बहुत बातें होती हैं जो कभी खत्म नहीं होतीं ।
अपनी नानी के बारे में कह सकती हूँ कि बिना लाग लपेट के सीधी बात कहतीं थीं।
चौकस निगाह से किसी नए को पढ़तीं थीं। हम सब को ठूँस ठूँस कर खिलाती और खुद भी खाने पीने का ख्याल रखतीं और कहतीं कि रोटी भात ज्यादा ज्यादा नहीं खाना चाहिए । दूध- दही, फल -सब्जी ज्यादा खाना चाहिए जिससे दिमाग तेज रहता है और शरीर चुस्त । जिसका नतीजा नानी में दिखता भी था।
अपनी नानी जी के बारे में यह भी बताना चाहूँगी कि वे मेरी माँ की कहनेभर को सौतेली माँ थीं करने भर में अपनी ही माँ सी प्यारी........।
जब मेरी माँ दो साल की थीं और मेरे मामा पाँच साल के तब मेरी नानी उनको माँ के रूप में मिलीं। माँ बताती रहीं है कि लोगों के बताने, बहकाने पर भी नई माँ में सौतेला पन जैसा कभी कुछ नहीं दिखा। नानी ने माँ को इतना प्यार किया कि हमेशा उन्हें लेकर ही मायके गईं। जब वे पहली बार विदा होकर मायके जाने लगीं तो भी अपने दोनों बच्चों को साथ लेकर ही गईं। हालाकि माँ की ताई जी ने उनसे तब कहा था कि बच्चों को लेकर मायके मत जाओ । यानि मेरे पाँच वर्ष के मामा और 2 साल की मेरी माँ
को। दो बच्चे पहली ही विदाई में अच्छा नही लगेगा । तब मेरी नानी जी ने कहा था कि ये मेरे बच्चे हैं मैं लेकर ही जाऊँगी । मेरी माँ भी नानी से चिपक कर रो रही थीं । नानी ने उन्हें गोद में उठा लिया और तैयार कर अपने साथ ले गईं ।
मेरी नानी ने मेरी माँ और मामा को पाल पोस कर बड़ा किया और शादी की । मेरे मामा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर एच एस सी एल में बतौर इंजीनियर बहाल हुए, मेरी माँ विदा होकर मेरे पिता के पास ससुराल भेज दी गई ।
तब मेरे पिता कोलकाता के सेंटजेवीयर्स में बी एसी के छात्र थे .। मेरे पिता का कारोबार ठीक ठाक रहा तो नानी अपनी बेटी यानि मेरी माँ के भाग्य पर इतरातीं और जब कभी बुरे दिन आए नानी ने मेरे पिता को शंकर जी भोले बाबा की उपाधियाँ भी दी । आखिर मेरी नानी जी को अपनी बेटी की खुशी से ही लेना देना था ।
जब मेरी माँ और मामा जी को बच्चे हुए तब नानी ने अपनी जिम्मेवारियों से मुक्त हो अपना परिवार किया । जिसमें मेरी एक मौसी और दो मामाओं का जन्म हुआ। मेरी मौसी दिल्ली के कमला विहार महाविद्यालय मे एसोसिएट प्रोफेसर हैं। मेरे दूसरे मामा एक्पोर्ट के व्यापार में हैं और तीसरे मामा डॉक्टर हैं ।
मेरे नाना स्वर्गीय राज वल्लभ ओझा जी 14 साल पहले ही 16 जुलाई 1994 को संसार से विदा ले चुके हैं । वे पत्रकार थे और उन्होंने फिरोज गाँधी के साथ काम किया था। अपनी पत्रकारिता और अपनी हिन्दी से अटूट प्यार करते थे । उन्हें विश्व भ्रमण का शौक था और नाना ने देश दुनियाँ का भ्रमण किया भी । अन्त के दिनों में रशियन ऐमबेसी में रहे। हिन्दी के प्रति प्रेम के चलते ही नानाजी को श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी द्दारा भेंट में साकेत प्रेस इन्क्लेव में एक फ्लैट मिला। मेरे नाना जी की तीन-चार किताबें भी प्रकाशित हुईं जिनमें एक है गेटे के देश में और दूसरी है बदलते दृश्य । बाकी के नाम याद नहीं कर पा रही हूँ।
मेरे नाना-नानी जी की ढेरों बातें मेरी समृति में जुड़ी है । उनमें एक है जब मैं मानस के होने के बाद नानी का आशीर्वाद लेने सपरिवार उनके पास गई। बात 1996 की है। मेरा बेटा मानस तब चार-पाँच महीने का ही था। नानी ने लपक कर उसे गोंद में ले लिया और जब तक मैं रही उसे उन्होंने अपने अंक से उतारा नहीं। मानस के साथ खेलतीं दुलरातीं रहीं । कुछ तस्बीरें मौंसी ने खींच ली थीं जो आज भी मेरे पास हैं । आप उपर की तस्वीर में 13 साल पहले मानस को उसकी अपनी परनानी की गोद में देख सकते हैं। उस दिन का वह पल आज मेरे लिए अमूल्य नीधि हैं।
मै अपनी ही उलझन में आज नानी की अन्त्येष्ठि में न जा सकी। मेरी नानी आज शाम को पंच तत्व में लीन हो गईं हैं। मैं उनसे दूर रह कर उनको अपनी श्रद्धांजलि कैसे दूँ सो नानी के बारे में अपनी बातें लिख कर अपने भाव प्रकट कर रही हूँ। भगवान मेरी प्यारी नानी की आत्मा को शांति दें।
12 टिप्पणियां:
बीते हुए बचपन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है नाना,नानी और ननिहाल..बढ़िया संस्मरण..भागदौड़ की जिंदगी में कभी कभी ऐसा पल आ जाता है जब हम चाह कर भी कुछ चीज़ नही कर पाते....नानी जी को सादर श्रदांजलि
नानी जी बहुत शौभाग्यशाली थी जो अपने परनाती-परनातिनी को खेला कर गयी.. उनको सादर श्रद्धांजली..
सब यादें बाकी रह जाती हैं....
भगवान नानी जी की आत्मा को शांति दें.
सादर श्रद्धांजली.
अपने बुजुर्गो की यादे ही रह जाती हैं....जो समय समय पर रास्ता भी दिखाती रहती हैं। नानी जी को हमारी भी सादर श्रद्धांजली..
vaise to main apni dadi ji ke kareeb thi lekin aaj aapka sansmaran padha to apni nani ji yaad aa gai aur unka vah umadata laad dulaar mere liye , bhagyavaan rahi ki dono ka pyaar mila hai fir bhi aaj jane kyon aapka post padh kar unki bahut yaad aa rahi hai,ishwar aapki nani ji ko aseem shanti pradaan kare.
बहुत ही हृदयस्पर्शी विवरण....मुझे अपनी नानी याद आ गयीं...जो ऐसी ही स्नेहिल थीं..शायद' नानी' शब्द ही स्नेह से ओत प्रोत है...
मानस की परनानी को विनम्र श्रधांजलि
नानी पर लिखा यह लेख मन को विह्वल कर रहा है। माँ की याद आ रही है। वे गिरकर कष्ट में हैं। मन उनके पास ही है। बस शरीर भी वहीं जाना चाहता है।
अपने बचपन की डोर जो उनसे बँधी है छूटती सी लग रही है। कितना मोह होता है ना माँ और नानी से!
आपकी नानी ने विमाता शब्द को सुन्दर अर्थ दिए। उनको श्रद्धांजलि।
घुघूती बासूती
श्रद्धांजलि ! प्रेरणादायक थी आपकी नानी जी. भगवान उनकी आत्मा को शांति दें.
घुघूती जी
मेरी नानी ने विमाता शब्द को विशेष माता बना दिया था। अपनी माता जी का खयाल रखिए। उनके पास जा सकें तो जाएँ।
बेहद संवेदनशील और आत्मीय पोस्ट। नानीजी को विनम्र श्रद्धांजलि।
mann k andar se mann ko chhune wala lekhan.
nani koi bhi ho kisi ki bhi pata nahi kyn apni si hi lagti hai, ya kahu nani shaabd ya rishte me hi jyada apanatv hota hai......
bahut din bad aapko padha.....
hamesha ki tarah rishto ki garmahat....
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