अम्बेडकर , गाँधी और आज के नेताओं का जात -पात
1933 में अम्बेडकर कहते है कि “अछूत जाति प्रथा की उपज है,जब तक जातियाँ
कायम रहेगी तब तक अछूत भी रहेगे “आगे अम्बेडकर साफ कहते हैं कि जाति प्रथा के विनाश के अलावा और किसी भी तरह से अछूतो का उद्दार असम्भव है।
गाँधी जी कहते हैं अछूतों के कारण जाति प्रथा को नष्ट कर देना उतना ही गलत है
जितना शरीर पर किसी फोड़े -फुन्सी के उठ आने पर शरीर को नष्ट कर देना ।या घास-पात के कारण फसल को नष्ट कर देना ।इसलिए अछूत को हम जिस रूप में समझते हैं , समूल नष्ट करना होगा अगर पूरी व्यवस्था को नष्ठ नहीं होने देना है, तो एक फोड़े की तरह ही इसे हटाना होगा ।
अस्पृश्यता जाति प्रथा की उपज नहीं, बल्कि ऊँच- नीच की उस भावना कीपज है, जो हिन्दू धर्म में घुस आई है और उसे भीतर से खोखला बना रही है।
गाँधी जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे इस्लाम, ईसाई ,जैन और बौध धर्म ने उन पर गहरा प्रभाव डाला था ।पर उनका मूल दृटिकोड़ हिन्दू धर्म से प्रभावित था ।1)गाँधी कहते है मै मूल रूप से अपने को सनातनी हिन्दू कहता हूँ मैं –वेदो ,उपनिषदों , पुराणों तथा सभी हिन्दू धर्म ग्रन्थों में विश्वास करता हूँ 2) मैं वर्णाश्रम धर्म में विश्वास रखता हूँ-उसके विशुद्द रूप में न कि आज के प्रचलित भोंड़े रूप में 3) मै गौ रक्षा में विश्वास करता हूँ –लोकप्रिय अर्थो में जो समझा जाता है उसके कही अधिक व्यापक अर्थों में। 4)–मैं मूर्ति पूजा में अविश्वास नहीं करता ।
गाँधी जी जात- पात और धार्मिक भेद –भाव के उन्मूलन के ही विरोध नहीं थे , वह
अन्तर्जातीय भोज और अन्तर्जातीय विवाह का विरोध भी करते थे ।
उन्होंने ने स्वीकार किया मैं दावा करता हूँ कि मैनें कभी किसी मुसनमान या ईसाई से झगड़ा नहीं किया है, परन्तु वर्षों तक मैनें किसी मुसलमान या ईसाई के धर में सिवा फलों के कुछ और नहीं खाया है,इस आचरण को न्याय संगत ठहराते हुए उन्होंने लिखा
मेरे मतानुसार यह विचार कि अन्तर्जातीय विवाह और अन्तर्जातीय भोज राष्टीय उन्नति के लिए आवश्यक है , पशिचम से उधार लिया गया एक अंधविश्वास है।भोजन करना भी उतना ही महत्वर्पूण प्रक्रिया है, जितनी की सफाई संम्बधी जीवन की अन्य आवश्यक क्रियाएँ ।यदि मानव जाति ने स्वंय को हानि पहुँचाते हुए, भोजन को एक प्रतीक तथा अतिसेवन नहीं बना लिया होता तो हम भोजन भी एकान्त में बैठ कर करते।जैसे जीवन के दूसरे काम जरूरी काम हम अलग बैठ कर करते हैं
अपनी आस्था के सम्बन्ध में मोहन दास के दावे उस परम्परागत , मध्ययुगीन हिन्दू धर्म को प्रकट करते हैं जिनसे अंशतह उनके दृष्टिकोण को प्रभावित किया था।तो भी,उनकी हिन्दू धर्म समझ उन प्रतिक्रिया वादी विचारों से भिन्न थी , जिनका ऱूढिवादी हिन्दूप्रचार करते थे।रूढिवादी हिन्दू संाती व्यवस्था काप्रतिन्धित्वकरते.गाँधी जी का हिन्दू धर्म कोई कुंठित धर्म नहीं था ,वरन एक गतिशील धर्म था ।।
धर्म ग्रंथों तक की कोई शाश्वत पवित्रता नहीं थी ,गाँधी जी कहते है वेदों पुराणों का और इतिहास का उदय एक ही समय में नहीं हुआ। प्रत्येक का उदय एक काल विशेष की आवश्यकताओं के फलस्वरूप हुआ है । इसलिए वे एक दूसरे से टकराते दिखाई देते हैं ।ये ग्रंथ शाश्वत सत्यों को नये सिरे से प्रतिपादित नहीं करते ,वरन यह दिखाते हैं ,कि जिस काल में इन ग्रंथों की रचना की गई , उस काल में इन सत्यों पर किस प्रकार का आचरण किया जाता था।एक प्रकार का आचरण यदि एक विशेष काल मे ंअच्छा था, तो उसे आँख बंद कर दूसरे काल में भी ज्यों का त्यों लागू किया गया ,तो जनता को निराशा के दलदल में डुबा सकता है। वे हिन्दू धर्म के उन स्व नियुक्त संरक्षको , रूढ़िवादी और प्रतिक्रिया वादी पंडितों की सत्ता को चुनौती देते थे , जो हर प्रकार के धार्मिक अंधानुकरण ,अन्धविश्वास और रूढ कर्मकांड़ो को न्याय संगत ठहराते नहीं थकते थें।
आज का समय गाँधी के समय से बहुत बदल चूका है, धर्म और नेता की बात में स्वाभाविक है कि हम आज के नेताओं का धर्म भी जानना चाहेगें ।आज की जनता थोड़ी मुर्ख थोड़ी समझदार को ,ससमझना मुश्किल हो गया है ,कि इनका धर्म आखिर है क्या । आज के नेताओं काधर्म क्या है वह ही जानें आजकुछ,-कलकुछ में,ठीठ और हेहरकी तरह लगें हैं । इनका सब का धर्म है अपना घर भरों धन से ।और जन से भरने के लिए जाति जनगणना बोट बैक ।स्वार्थ सिद्द जाति धर्म ।.........
4 टिप्पणियां:
बड़े दिनों के बाद लौटीं आप। और बहुत गंभीर विषय लेकर। सचमुच यह सोचना तो हमारा शाश्वत धर्म बनता। जा रहा है कि आखिर आज के इन तथाकथित नेताओं का धर्म क्या है।
अपना घर के दरवाजे जल्दी जल्दी खुलें तो अच्छा लगेगा
विचारणीय स्थिति।
जात पात का नाम तो हमे अपने कर्मो के हिसाब से मिलता है जो दुनिया है हर जगह मोजूद है... लेकिन यह नीच ऊंच ओर छूत अछूत सिर्फ़ हमारे धर्म मै ही मिलता है बस इसे हटाना है हमे, कोई अछुत नही कोई नीच नही सब बराबर है... बहुत सुंदर विचार
धर्म/जाति का इस्तेमाल होता ही रहा है अपना मतलब निकलने के लिए. फिर ये नेता भी तो वही कर रहे हैं.
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