इन्तजार
जिसने खो दी आँखें वह भी एक बार
झाड़ता है अपनी किताबें
बादल गरजते हैं उसके लिए भी
जो सुन नहीं सकता
जो चल नहीं सकता उसके सिरहाने भी
रखा है एटलस
जिसने कभी किसी से साँस नहीं बदली
उसे भी इन्तजार है शाम का।
नोट- यह कविता उनके चौथे संकलन पुतली में संसार से यहाँ लिया गया है। संकलन वाणी प्रकाशन नई दिल्ली से छपा है।
6 टिप्पणियां:
अरमानों का क्या कहना
आपकी पसंद अच्छी एवं बौद्धिक है. कविता का अर्थ सारगर्भित है -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार !!
अच्छी कविता पढ़ाने के लिए धन्यवाद ।
अच्छी लगी कविता। आपका प्रोफ़ाइल देखा तो यह जानकर अच्छा लगा कि परसाई जी आपके पसंदीदा लेखक हैं और खूंटियों पर लोग पसंदीदा किताब।
स्वागत है. आभार इस प्रस्तुति का.
आप सब का मेरा हौसला बढाने के लिए आभार,
अनूप जी मैं आगे सर्वेश्वर जी की कुछ कविताएँ छापूँगी।
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