सोमवार, 3 मार्च 2008

भात एकम् भात

छठी क्लास की गर्मी की छुट्टियों मे गाँव गई ,
खूब खूब मजे किए । फिर न उसके बाद कभी जाना हुआ
न पहले कभी ।...कुल मिला कर वो मीठी यादें जब तक
रहूगीं तब तक न भुला पाऊँगी ....
उसी यात्रा में सीखा था एक पहाड़ा.....भात का पहाड़ा....आप सब भी पढिए वह पहाड़ा......

भात का पहाड़ा


भात एकम् भात
भात दूनी दाल ,
भात तिया तरकारी
भात चौके चटनी.,
भात पंजे पापङ़
भात छक्के छाछ
भात सते सतुआ
भात अट्ठे अचार
भात नवे नमकीन
भत दहाई दही
तब भोजन सही

10 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

ye pahaadaa pehlee hee baar padh kar koi jindagee bhar nahin bhool saktaa.

Sanjeet Tripathi ने कहा…

इतना अच्छा और सही पहाड़ा आपको सिखाया किसने!!
जिसने भी सिखाया हो उसे ही गुरु मान लेना चाहिए!!

बेनामी ने कहा…

bahut khub

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

होटल और केटरिंग मैनेजमेण्ट के कोर्स में होना चाहिये यह भत-हड़ा!
बहुत अच्छा!

mamta ने कहा…

वाह क्या पहाडा है। :)

azdak ने कहा…

भतहड़ा सही है. सतुए का परौठा दबाके खाते हुए याद करना रहता तो ज़्यादा अच्‍छी बात होती.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुते स्वादिष्ट भतुआ पहाडा है जी...

--उड़न्तुलाल समीर :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

इसे कहते हैं विशुध्ध भारतीय उर्जा से रचा गया सुरुचिपूर्ण " भात भोजं" -
- बहुत अनोखा लगा आभा जी !
ऐसी बातें हों तो और बताएं --

स्नेह,

-लावण्या

Anita kumar ने कहा…

बड़िया पहाड़ा है जी हम को तो चार तक ही आता था, खिचड़ी के चार यार- दही, पापड़, घी, अचार्॥चलिए आप से आगे का भी सीख लिया

Unknown ने कहा…

सुंदर. बहुत अच्छा लगा. पर क्या अब भी पहाढ़ पर ऐसा भोजन मिलेगा?