शनिवार, 8 मार्च 2008

बहनें

आज

आज महिला दिवस पर पर मन में बहुत कुछ चल रहा है,
क्या लिखूँ क्या न लिखूँ के बीच समय बीत रहा है,
इसी बीतने में हर दिवस हर त्यॊहार की तरह यह भी निकल न जाए.
नही़ नहीं- मैं . मैं लिखूँगी अपनी एक कविता


बहनें

बहनें होती हैं, ,
अनबुझ पहेली सी
जिन्हें समझना या सुलझान इतना आसान नही. हॊता जितना लटों
की तरह उलझी हुई दुनिया को ,

इन्हें समझते और सुलझाते .......में
विदा करने का दिन आ जाता है न जाने कब
इन्हें समझ लिया जाता अगर वो होती ......
कोई बन्द तिजोरी.......
जिन्हे छुपा कर रखते भाई या कोई......
देखते सिर्फ.....
या ....कि होती .....
सांझ का दिया .....
जिनके बिना ......
न होती कहीं रोशनी....

पर नही़
बहने तो पानी होती है
बहती हैं.... इस घर से उस घर
प्यास बुझाती
जी जुड़ाती......किस किस का
किस किस के साथ विदा
हो जाती चुप चाप .....

दूर तक सुनाई देती उनकी
रुलाई......
कुछ दूर तक आती है....माँ
कुछ दूर तक भाई
सखियाँ थोड़ी और दूर तक
चलती हैं रोती धोती
......
फिर वे भी लौट जाती हैं घर
विदा के दिन का
इंतजार करने.....
इन्हें सुलझाने में लग जाते हैं...
भाई या कोई.......।

13 टिप्‍पणियां:

Ashish Maharishi ने कहा…

आपने तो दीदी की याद दिला दी

रंजू भाटिया ने कहा…

सुंदर रचना है .दिल को छू गई

Rajesh Roshan ने कहा…

आभा जी सच में सुंदर रचना. वाकई बढ़िया

राजेश रोशन

anuradha srivastav ने कहा…

दिल को छू लेने वाली कविता।

mehek ने कहा…

bahut sundar bhavuk

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई.

विश्वमहिला दिवस पर हार्दिक बधाई.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

हर बहन को याद कराती आपकी कविता सामयिक है बधाई और स्नेह --

- लावण्या

अभय तिवारी ने कहा…

बढ़िया है!

अनूप शुक्ल ने कहा…

बोधिसत्व के ब्लाग से पता चला कि कविता आपने खुद टाइप की पहली बार। बधाई!सुन्दर कविता लिखी।
खासकर ये पंक्तियां-
बहने तो पानी होती है
बहती हैं.... इस घर से उस घर
प्यास बुझाती
जी जुड़ाती......किस किस का
किस किस के साथ विदा
हो जाती चुप चाप ..

Sanjeet Tripathi ने कहा…

एकदम सही!!
मैं तो सोचता हूं कि घर में बेटी/बहन न हो तो घर घर की तरह नही लगत।
बेटी/बहन ही घर को घर बनाती हैं शायद।
कल पढ़ नही पाया था आज मालूम चला कि यह पोस्ट आपने पूरे तौर पर खुद ही की है, बधाई!!!
ऐसे ही बढ़ती रहें, न रूकें!!

vikas pandey ने कहा…

sundar kavita hai.

विशाल श्रीवास्तव ने कहा…

पहले सोचा कि बोधि भैया के ब्लाग पर कमेण्ट डालूं पर सोचा कि जब मेहनत आपने की है तो यहीं क्यों न लिखूं ... फिलहाल कविता आपने टाइप की है इसके लिये तो बधाई है ही पर आपने एक अच्छी कविता लिखी है इसके लिए ज्यादा .....

Unknown ने कहा…

aapne sch me ek achchhi kvita likhi hai