आज
आज महिला दिवस पर पर मन में बहुत कुछ चल रहा है,
क्या लिखूँ क्या न लिखूँ के बीच समय बीत रहा है,
इसी बीतने में हर दिवस हर त्यॊहार की तरह यह भी निकल न जाए.
नही़ नहीं- मैं . मैं लिखूँगी अपनी एक कविता
बहनें
बहनें होती हैं, ,
अनबुझ पहेली सी
जिन्हें समझना या सुलझान इतना आसान नही. हॊता जितना लटों
की तरह उलझी हुई दुनिया को ,
इन्हें समझते और सुलझाते .......में
विदा करने का दिन आ जाता है न जाने कब
इन्हें समझ लिया जाता अगर वो होती ......
कोई बन्द तिजोरी.......
जिन्हे छुपा कर रखते भाई या कोई......
देखते सिर्फ.....
या ....कि होती .....
सांझ का दिया .....
जिनके बिना ......
न होती कहीं रोशनी....
पर नही़
बहने तो पानी होती है
बहती हैं.... इस घर से उस घर
प्यास बुझाती
जी जुड़ाती......किस किस का
किस किस के साथ विदा
हो जाती चुप चाप .....
दूर तक सुनाई देती उनकी
रुलाई......
कुछ दूर तक आती है....माँ
कुछ दूर तक भाई
सखियाँ थोड़ी और दूर तक
चलती हैं रोती धोती
......
फिर वे भी लौट जाती हैं घर
विदा के दिन का
इंतजार करने.....
इन्हें सुलझाने में लग जाते हैं...
भाई या कोई.......।
13 टिप्पणियां:
आपने तो दीदी की याद दिला दी
सुंदर रचना है .दिल को छू गई
आभा जी सच में सुंदर रचना. वाकई बढ़िया
राजेश रोशन
दिल को छू लेने वाली कविता।
bahut sundar bhavuk
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई.
विश्वमहिला दिवस पर हार्दिक बधाई.
हर बहन को याद कराती आपकी कविता सामयिक है बधाई और स्नेह --
- लावण्या
बढ़िया है!
बोधिसत्व के ब्लाग से पता चला कि कविता आपने खुद टाइप की पहली बार। बधाई!सुन्दर कविता लिखी।
खासकर ये पंक्तियां-
बहने तो पानी होती है
बहती हैं.... इस घर से उस घर
प्यास बुझाती
जी जुड़ाती......किस किस का
किस किस के साथ विदा
हो जाती चुप चाप ..
एकदम सही!!
मैं तो सोचता हूं कि घर में बेटी/बहन न हो तो घर घर की तरह नही लगत।
बेटी/बहन ही घर को घर बनाती हैं शायद।
कल पढ़ नही पाया था आज मालूम चला कि यह पोस्ट आपने पूरे तौर पर खुद ही की है, बधाई!!!
ऐसे ही बढ़ती रहें, न रूकें!!
sundar kavita hai.
पहले सोचा कि बोधि भैया के ब्लाग पर कमेण्ट डालूं पर सोचा कि जब मेहनत आपने की है तो यहीं क्यों न लिखूं ... फिलहाल कविता आपने टाइप की है इसके लिये तो बधाई है ही पर आपने एक अच्छी कविता लिखी है इसके लिए ज्यादा .....
aapne sch me ek achchhi kvita likhi hai
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