रविवार, 14 अगस्त 2011

देश की आजादी को एक झटका और दो.

देश की आजादी को एक झटका और दो.

1990 का दौर याद है जब बहुत से पढ़े लिखे लोग कांग्रेस छोड़,

बीजेपी में शामिल होने लगे थे। वे पढ़े लिखे लोग पार्टी बदलते ही क्षूद्र

दिखने लिखे। लगे भी क्यों न जो मंदिर- मंस्जिद के नाम पर जनता को बाटे वह

क्षूद्र नहीx तो और क्या है।

पर अफसोस यह कांग्रेस जो अपनी मनमानी डट कर करती रही कि

इनके आगे रास्ते में ज्यादा छोटे लोग खड़े हैं। मतलब मै यूपीए सरकार

जो भी करूँ मेरी मर्जी। पर देश ऐसे तो नहीं चलता।यह देश हैं- स्वत्तंत्र भारत- लोकतंत्र

लोक जो देख रही है, उस परतरह तरह से आवाजें उठी लेकिन अन्ना की आवाज में एक इमानदार नेतृत्वकर्ता दिखा। जनता उनके पीछे है तो बहान ढूढना भी एक तरह से बैमानी है। वैसे कपिल सिब्बल बहुत होशियार आत्मा हैं क्या कहें, चतुराई से बतियाना खूब जानते हैं। पर चोरी पर सीनाजोरी अच्छी नहीं लगती।

यहाँ भारत की जनता भी सब देख सुन तय करती है सही क्या है गलत क्या।

और जब जनता ने आपा खोया तो बेमानी से हताश आदमी आपा खो सकता है।

आखिर आपा खोने की नौबत क्यों आई ही।कि अन्ना को कहना पड़े की गाँधी जी की

भाषा नहीं समझ आती तो हम शिवाजी की भाषा जानते हैं। अगर सिनेमा हाल में

सिनेमा देख रहे होते, इस बेईमानी के खिलाफ तो अन्ना के इस गाँधी नहीं तो शिवाजी वाले डायलॉग पर ताली बजाते पर नहीं घर में बैठे बैठे मैने कहा बहुत सही।

आप अंधे नही हैं लेकिन आँख खराब होना भी एक ऐब है ।ये ऐबदार साशन किस

किस इमानदार के गले का फाँस बनी है। किसी को रोटी नहीं किसी की जय जय. वो भी

जनता की रोटी छीन। ऊपर से बड़े बोल जादू की छड़ी नहीं मँहगाई रोकने के लिए. तो क्या जादू की छड़ी नही बेमानी रोकने के लिए। एक इमानदार इंसान पर खोजा खोजी की तोहमत लगाना कहाँ का न्याय है। बाज आओ यूपीए सरकार .हम तुम्हें बहुत चाहते थे।

हम बहुत दुखी हैं।आजाद देश को कितने कितने झटके दोगे तुम सब.

या अभी अन्ना को ही कटघरे में खड़ा कर एक झटका और दोगे, उससे क्या तुम्हारी

सरकार के बेइमान सांसद इमानदार हो जाएगे,. यही है समस्या और उसका समाधान।

अफसोस में मुँह से उफ्फ ही निकलती है कि अन्ना बाबा, गांधी बाबा जितने पढ़े लिखे होते, ये दुनियावी इमानदार आदमी हैं, इन्हें कपील सिब्बल जैसे चतुर सुजान से निपटने के लिए। अभी अपने इमान की लड़ाई भी लड़नी होगीं। जनता भी देख रही हैं.....

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

आभा का पत्र मित्रों को - सादर

ब्लॉगर मित्रों.

मुंबई से देवमणि पांडेय जी के संपादन में संस्कृति संगम नाम की सांस्कृतिक निर्देशिका

क्षपती रही हैं। उसमें एक और अध्याय साहित्यकार ब्लॉगर्स का भी जोड़ा गया है। जिसका संपादन और छप कर पा लेने की योजना हिंदी दिवस तक तय की गई है,यदि आप सहयोग करें।

आप सब का सहयोग इस संपादन में आप के नाम पते के रूप में दर्ज होगा।. इसमें मेल आई ड़ी सहित

आप क्या लिखते/ लिखती हैं। आपका निवास, शहर पिन कोड़ पता दर्ज करें ताकि आप की खोज जब भी हो, आप सहज ही मिल सकें।

यह फर्ज अदायगी मुझे सौपी गई है। आप भी अपना फर्ज अदा करें।

सादर ..

आप सब की आभा

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

फोटो मय हो उठता ब्लॉग



































अभिषेक ओझा आए, लेकिन हम उन्हें घर में रखे होने के बाद भी कौड़ी नहीं दिखा पाए। और ये अपने कोलकाता वाले शिव कुमार मिश्र जी हैं जिनसे मुन्नी की बदनामी देखी नहीं जाती। प्रमोद जी कैमरे से दूर रह गए। बेटे मानस ने शिव जी कम-कम देर की दो मुलाकातें कीं। इम्तहान के झमेले में थे वे। लेकिन भानी वहीं मडराती रहीं।
अनिता कुमार जी पढ़ाने में लगीं थीं सो नहीं आ पाईं। युनूस भाई ममता के साथ आए और अक्सर विविधभारती की ओर देखते रहे। उधर देखते समय की एक फोटो यहाँ है। घुघूती जी घर बदलने में उलझी थीं। बोधिसत्व और अभिषेक ने कंधवत फोटो खिंचाई। हम तीन अर्थात मैं, ममता जी और रवीजा जी ने भी एक ग्रुप बना कर अलग थोड़ी गप्प की। वहाँ हुई बहसें यहाँ नही छाप रही हूँ। कि किसने किसे कैसा कवि लेखक माना किसे नहीं माना। यह अपनी पसंद का मामला है।







गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

गाड़ी बंगला सही न सही न सही....

गाड़ी बंगला सही न सही न सही....

1911 में जन्मे कवि शमशेर की एक प्रेम कविता

यह कविता शमशेर जी ने 1937 38 मे लिखी

प्रेम

द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास

फिर भी मै करता हूँ प्यार

रूप नहीं कुछ मेरे पास

फिर भी मै करता हूँ प्यार

सांसारिक व्यवहार न ज्ञान

फिर भी मै करता हूँ प्यार

शक्ति न यौवन पर अभिमान

फिर भी मै करता हूँ प्यार

कुशल कलाविद्र हूँ न प्रवीण

फिर भी मै करता हूँ प्यार

केवल भावुक दीन मलीन

फिर भी मै करता हूँ प्यार

मैने कितने किए उपाय

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

सब विधि था जीवन असहाय

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

सब कुछ साधा जप तप मौन

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

कितना घुमा देश विदेश

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

तरह तरह के बदले वेष

किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम

उसकी बात बात में छल है

फिर भी वह अनुपम सुंदर

माया ही उसका संबल है

फिर भी वह अनुपम सुंदर

वह वियोग का बादल मेरा

फिर भी वह अनुपम सुंदर

छाया जीवन आकुल मेरा

फिर भी वह अनुपम सुंदर

केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी

फिर भी वह अनुपम सुंदर

वह अंतिमभय सी विस्मय- सी

फिर भी कितनी अनुपम सुंदर

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

बस थोड़ा आस्था वाद

बस थोड़ा आस्था वाद। संयम भारतीय संस्कृति की आत्मा है।यदि पेड़ कहे कि मै जमीन पर क्यों बधा हूँ मुझेउड़ने दो तब तो वह पेड़ मर जाएगा।पेड़ भी जड़ों से बधा है तभी जीवित है।नही तो उसका अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा।अगर पहाड़ों का पानी सभी दिशाओं में बहने लगे तो बहाव असम्भव हैपानी एक खास बहाव पर ही बहता है।नदी दो किनारो से बधी है यदि वह कहे मुझे बंधन मुक्त करो, तो पानी और नदी कुछ न रह जाएगा सब सूख जाएगा।

संयम को तुच्छ मत समझो। नदी अपनी गहराई और गभीरता के कारण ही, बंधन के कारण ही हमारे लिए पूज्य है. संयम समाज , परिवार सब के लिए सही राह है।

पर समय इतना बुरा है कि किसी को मान दो तो भी वह बदले में अपमान देकर खुश हो लेता है। दंभी जीव के ढ़ग निराले मेरे भैया। ऐसा सोचने के सीवा कुछ सोचना भी उस दंभी के दंभ को बढ़ावा देना है।

पर शुक्र है सृष्टि का की सूरज प्रकाश देता है,बादल पानी देता है, पेड़ फल देते है, स्कूल शिक्षा देते हैं । अपना जीवन इन्ही की सेवा में रहना ही हमारा धर्म है।

बहुत से कम बुध्दि, संयम का मजाक उड़ाते हैं और यह कहते पाए जाते है कि मुझे बंघन में नही रहना. पर सच तो यह है की जीवन का सुख बंधन में ही है ।

जैसे नदी संयम में रह कर समुद्र मे मिल जाती है वैसे ही संयम और, बघन में रह कर मनुष्य भी बड़ा बन जाता है।

बापू के देश में

सारे जग से न्यारे बापू ,ने एक घर बनाया जिसका नाम रखा गणतंत्र ,इस घर में बापू के चार बच्चे रहते हैं -हिन्दू, मुस्लिम, सिख,ईसाइ। 30 सितम्बर को दो भाइयों के झगड़े खत्म हुए ,ऐसा ही ,माना है जनता ने। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड आगे सुप्रीप कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएगी , फिर भी. बापू के देश में सबसे पहले न्यायमूर्ति खान को सलाम ... ...। आगे -लगते तो थे दुबले बापू, थे ताकत के पूतले बापू। कभी न हिम्मत हारे बापू, अच्छी राह दिखाते बा। सब को गले लगाते बापू, सत्य अहिसा और धर्म का हमको पाठ पढ़ाते बापू। बापू के देश में -गणतंत्र के वेश में,चारों भाईयों को गाँधी जंयती की शुभकामनाएँ...।

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

बहुत दूर आ गई हूँ

बहुत दूर आ गई हूँ

बहुत दूर

बहुत दूर

इतनी दूर की नींद में भी

सपने में भी वहाँ नहीं पहुँच सकती।


एक अंधेरी छोटी सी गली

एक अंधेरा छोटा सा मोड़

एक कम रौशन छोटी सी दुनिया

सब पीछे रह गए

मैं इतने उजाले में हूँ कि

आँख तक नहीं झपकती अब तो।


सब इतना चकाचौंध है कि

भ्रम सा होता है

परछाइयाँ धूल हो गई हैं

आराम के लिए कोई विराम नहीं यहाँ

दूर-दूर तक

कोई दर नहीं जहाँ ठहर सकूँ

सब पीछे

बहुत पीछे छूट गया है।