देश की आजादी को एक झटका और दो.
1990 का दौर याद है जब बहुत से पढ़े लिखे लोग कांग्रेस छोड़,
बीजेपी में शामिल होने लगे थे। वे पढ़े लिखे लोग पार्टी बदलते ही क्षूद्र
दिखने लिखे। लगे भी क्यों न जो मंदिर- मंस्जिद के नाम पर जनता को बाटे वह
क्षूद्र नहीx तो और क्या है।
पर अफसोस यह कांग्रेस जो अपनी मनमानी डट कर करती रही कि
इनके आगे रास्ते में ज्यादा छोटे लोग खड़े हैं। मतलब मै यूपीए सरकार
जो भी करूँ मेरी मर्जी। पर देश ऐसे तो नहीं चलता।यह देश हैं- स्वत्तंत्र भारत- लोकतंत्र
लोक जो देख रही है, उस परतरह तरह से आवाजें उठी लेकिन अन्ना की आवाज में एक इमानदार नेतृत्वकर्ता दिखा। जनता उनके पीछे है तो बहान ढूढना भी एक तरह से बैमानी है। वैसे कपिल सिब्बल बहुत होशियार आत्मा हैं क्या कहें, चतुराई से बतियाना खूब जानते हैं। पर चोरी पर सीनाजोरी अच्छी नहीं लगती।
यहाँ भारत की जनता भी सब देख सुन तय करती है सही क्या है गलत क्या।
और जब जनता ने आपा खोया तो बेमानी से हताश आदमी आपा खो सकता है।
आखिर आपा खोने की नौबत क्यों आई ही।कि अन्ना को कहना पड़े की गाँधी जी की
भाषा नहीं समझ आती तो हम शिवाजी की भाषा जानते हैं। अगर सिनेमा हाल में
सिनेमा देख रहे होते, इस बेईमानी के खिलाफ तो अन्ना के इस गाँधी नहीं तो शिवाजी वाले डायलॉग पर ताली बजाते पर नहीं घर में बैठे बैठे मैने कहा बहुत सही।
आप अंधे नही हैं लेकिन आँख खराब होना भी एक ऐब है ।ये ऐबदार साशन किस
किस इमानदार के गले का फाँस बनी है। किसी को रोटी नहीं किसी की जय जय. वो भी
जनता की रोटी छीन। ऊपर से बड़े बोल जादू की छड़ी नहीं मँहगाई रोकने के लिए. तो क्या जादू की छड़ी नही बेमानी रोकने के लिए। एक इमानदार इंसान पर खोजा खोजी की तोहमत लगाना कहाँ का न्याय है। बाज आओ यूपीए सरकार .हम तुम्हें बहुत चाहते थे।
हम बहुत दुखी हैं।आजाद देश को कितने कितने झटके दोगे तुम सब.
या अभी अन्ना को ही कटघरे में खड़ा कर एक झटका और दोगे, उससे क्या तुम्हारी
सरकार के बेइमान सांसद इमानदार हो जाएगे,. यही है समस्या और उसका समाधान।
अफसोस में मुँह से उफ्फ ही निकलती है कि अन्ना बाबा, गांधी बाबा जितने पढ़े लिखे होते, ये दुनियावी इमानदार आदमी हैं, इन्हें कपील सिब्बल जैसे चतुर सुजान से निपटने के लिए। अभी अपने इमान की लड़ाई भी लड़नी होगीं। जनता भी देख रही हैं.....