मंगलवार, 15 जून 2010

भानी के ग्यारह रूप...... देखिए

ये ग्यारह रूप हैं मेरी दुलारी के। बहुत दिनों से सोच रही थी।

































































पिछले बहुत दिनों से मैंने भानी के बारे में न कुछ लिखा न कोई चर्चा की। आज भानी की पसंद की कुछ तसवीरें छाप रही हूँ। देखिए और मेरी इस प्यारी बेटी को अपना आशीष दीजिए











सोमवार, 14 जून 2010

लीजिए भई –प्रेमचंद, महादेवी, हरिऔध, पंत सब मर गए

मै स्त्रीवादी हूँ, सदियों से लानत मलामत झेलती स्त्री के किसी गलत निर्णय पर कई बार मेरा रिएक्शन भी अजीब बेतुकाना हो जाता हैं, साथ ही उस गलत स्त्री को कुल्टा, कंलंकिनी, कुलबोरनी कहने के बजाय मैं भावावेश मे कह बैठती हूँ कि ठीक किया फलाँ ने..जरूरत से ज्यादा दबाब का कहीं-कहीं यहीं नतीजा निकलता है.. जब कि सही क्या है गलत क्या है, यह तो मन समझ ही रहा होता है ठीक ठीक। मैं यहाँ किसी स्त्री का नाम नहीं लेना चाहती, क्यों कि जैसे मुझे मेरी इज्जत प्यारी है, वैसे ही हर स्त्री की ....
हाँ यह जरूर है कि आज के परिवेश में स्त्री को इमेजकाशश नहीं होना चाहिए वर्ना स्त्री मर्यादा का बोझ ढ़ोती हर रोज मरती है तो कहीं मनचली बालाएँ ऊचाईयाँ छूती जिन्दगी को आज के परिवेश में अपने हिसाब से जीती है। .

सारे विरोधों अन्तर्विरोधों के वावजूद मैं स्त्री के साथ हूँ चाहे गलबहियाँ देकर, चाहे हिकारत के साथ ..खैर जीवन है तो दुखड़ा सुखड़ा लगा ही रहता है, यहाँ मुद्दा तो कुछ और ही है।

कल भवन्स कालेज अंधेरी में पुष्पा भारती यानि धर्मवीर भारती जी की पत्नि पु्ष्पा भारती जी का 75वाँ ज्न्म दिन मनाया गया। किस्मत की धनी पुष्पा जी के हिस्से भारती जी का किया धरा आया वर्ना इतनी बड़ी माया नगरी में बहुत सी लेखिकाएँ हैं। कौन जन्म दिन मनाता है। बहुत सी कवयित्रियाँ उस समय की ऐसी भी होंगी जो पति की पेन्शन
पर गुजारा कर रही होंगी। उन्हें कौन जानता है। बेचारी। लेकिन पुष्पा जी के पास भारती जी की घर परिवार रायल्टी सब का सुख भोग रही हैं, सार्थक जीवन जी रही हैं, जो कि उनका स्वाभाविक अधिकार है।

कल वहाँ भारती जी के शुभचिंतकों का जमावड़ा था। मैं गई थी पुष्पा जी को बधाई देने। कुछ सार्थक सुनने और बीच में ही उठकर निकल आई। क्योंकि जो वहाँ सुनने को मिल रहा था वह न तो सार्थक था न सुनने लायक। बीच में बोलना पुष्पा जी के प्रति उचित न था। क्योंकि मौका जन्म दिन का था। दिल्ली से खास तौर पर आईं भारती जी की मुँह बोली बेटी सुनीता बुद्धिराजा ने कमाल कर दिया। उन्होंने भारती जी की महिमा बखानते-बखानते यह तक कह दिया कि “हरिऔध, प्रेमचंद, पंत, प्रसाद, महादेवी सब मरते ही मर गए, लेकिन भारती जी को मरने के बाद भी जिंदा रखा है पुष्पा जी ने ।”
मुझे सुनिता बुद्धिराजा की बुद्धि पर तरस आता है कि कब और कैसे उन्होंने जान लिया कि “हरिऔध, प्रेमचंद, पंत, प्रसाद, महादेवी सब मरते ही मर गए। मैंने अपने पति और बच्चों से कहा कि उठो मैं अब नहीं सुन सकती। और मैं “हरिऔध, प्रेमचंद, पंत, प्रसाद, महादेवी सब का स्यापा छोड़ कर घर आ गई।


इस बात से कौन इन्कार करेगा कि धर्मवीर भारती हिंदी के बड़े लेखक हैं। अंधायुग, कनुप्रिया, सूरज का सातवाँ घोड़ा, गुनाहों का देवता जैसी किताबें उनकी हिंदी की देन है। मैं खुद उनकी पाठिका और प्रशंसक रही हूँ। और यह भी सच है कि पुष्पा जी ने हर प्रकार से भारती जी को सहेजा समेटा है। उनके लिए चिंतित रहती है। किंतु पुष्पा जी के जन्मोत्सव पर अपने पुराने धरोहरों की शव क्रिया नहीं देख पाई।

मैं यह सोच रही थी कि कोई संचालक या वक्ता इस घोर अनर्थकारी टिप्पणी पर एतराज करेगा। लेकिन नहीं। किसी ने कुछ नहीं कहा। बस सब एक दूसरे की वाह-वाह करते। “हरिऔध, प्रेमचंद, पंत, प्रसाद, महादेवी का अपमान करते बैठे रहे।

मैं पुष्पा जी को उनके जन्म दिन की हार्दिक बधाई देते हुए आप सब से यह पूँछना चाहूँगी क्या “हरिऔध, प्रेमचंद, पंत, प्रसाद, महादेवी सब मरते ही मर गए ? क्या ऐसी निर्बुद्दि बुद्धि राजाओं के इस प्रकार के कथनों का कोई प्रतिकार नहीं होना चाहिए।