गाड़ी बंगला सही न सही न सही....
1911 में जन्मे कवि शमशेर की एक प्रेम कविता
यह कविता शमशेर जी ने 1937 38 मे लिखी
प्रेम
द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मै करता हूँ प्यार
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मै करता हूँ प्यार
सांसारिक व्यवहार न ज्ञान
फिर भी मै करता हूँ प्यार
शक्ति न यौवन पर अभिमान
फिर भी मै करता हूँ प्यार
कुशल कलाविद्र हूँ न प्रवीण
फिर भी मै करता हूँ प्यार
केवल भावुक दीन मलीन
फिर भी मै करता हूँ प्यार
मैने कितने किए उपाय
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
सब विधि था जीवन असहाय
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
सब कुछ साधा जप तप मौन
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
कितना घुमा देश विदेश
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
तरह तरह के बदले वेष
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
उसकी बात बात में छल है
फिर भी वह अनुपम सुंदर
माया ही उसका संबल है
फिर भी वह अनुपम सुंदर
वह वियोग का बादल मेरा
फिर भी वह अनुपम सुंदर
छाया जीवन आकुल मेरा
फिर भी वह अनुपम सुंदर
केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी
फिर भी वह अनुपम सुंदर
वह अंतिमभय –सी विस्मय- सी
फिर भी कितनी अनुपम सुंदर