रविवार, 24 जून 2007

आभा की कविता

बड़े भाई से बातें
( उन तमाम भाइयों के लिए जो जीवन में असफल रहे)

भाई तुम ईश्वर नहीं
भाई हो
भाई तुम पानी नहीं भाई हो
बल्कि कह सकती हूँ साफ-साफ
कि पिता कि कोई जगह नहीं तुम्हारे आगे।

लेकिन भाई तुम ही बताओ
उस भाई का क्या करें
जो तुम्हारी ही तरह भाई है हमारा
जो खोटे सिक्के सा फिर रहा है
इस मुट्ठी से उस गल्ले तक
मारा-मारा।

जब कि
उस भाई ने
किया है छल कहीं ना कहीं खुद के साथ ही
तो क्या उसकी सजा कहें भाई को
या कि

सिर्फ गाहे-ब-गाहे
गलबहियाँ दे कर सिर्फ भाई कहें उस
भाई को।

भाई जो मर्यादा है मुकुट है किसी का
उस भाई का क्या करें
उसे रहने दें यूँ ही
गुजरने दें ।

माँ-बाप तो सिर्फ जन्म देते हैं
युद्ध में तो भाई ही भाई को हथियार देता है
सो युद्ध के संगी रहे भाई को हथियार दो
युद्ध के गुर सिखाओ भाई को ।


तुम तो जानते हो
कि उस भाई ने हमेशा मुंह की खाई है
जिया है तिल-तिल कर
भाई तुम तो
सब कुछ जानते ही नहीं पहचानते भी हो कि
जब भी आएगी दुख की घड़ी
भाई ही तुम्हारा संगी होगा
जूझने के गुर सिखाओ उस भाई को ।

अब क्या –क्या कहूँ तुमसे
पर जी होता है
कि एक टिमकना लगाऊँ तुम्हारे माथे पर
ताकि दुनिया-जहान की नजर ना लगे तुम्हें।

भाई तुम ईश्वर नहीं
भाई हो
भाई तुम पानी नहीं भाई हो
बल्कि कह सकती हूँ साफ-साफ
कि पिता कि कोई जगह नहीं रही
तुम्हारे आगे।