गुरुवार, 24 जनवरी 2008

बिन कहे भी रहा नही जाए

अपनी बात

पहला भाग..

पिछने दिनों ब्लाग पर लिख्नने की चाहत से मन बहुत सी बातें आईं और गुम भी हो गई .
इसे आलस या व्यस्ततता भी मान सकते है । ब्लॉग तक पहुचने के लिए वैसे ही रास्ता देखती
रही जैसे बच्चे की स्कूल बस लेट होने पर बार बार घड़ी की सुई और गेट पर निगाह टिकी रह्ती है. ....

हाँ न लिख पाने का कारण था बेटी भानी की चंचलता ...उसने कभी भी टाइप करने ही न दिया...और कभी लिखने बैठे तो मानस के कमेंट ने रोक लिया...एक दिन वह स्कूल से लौटा और मैं अपनी पोस्ट को खतम करने में लगी थी...मैंने उससे दो मिनट रुकने को कहा...बेटे ने कहा हमारा ...घर बर्बाद हो गया है मुझे लगा जिस घ्रर की बर्बदी का कारण मेरा बेटा समझ रहा है मुझे भी ....
जानना चाहिए ....मैने पूछा भी ,बेटे ने कहा तुम दोनो बारी बारी से ब्लाग पर बने रह्ते हो ,हम दोनो को
खाना दे देते हो देखते भी नहीं.... हमने खाया कि नहीं नाश्ता दे दिया बस ....पूछा देखा नही । मैने माना हाँ यह सच है ...
बाद में मन ही मन मंथन शुरू....... कौन खास....कौन बड़ा मेरे बच्चे या मेरा ब्लाग कौन ज्यादा जरुरी ..मेरा घर या मेरा ब्लाग अपना घर ..

फिर मन ने माना यह कोई विकट समस्या नही... ,फिर क्या बेटी को गोद और बेटे को पास बिठा... गाने
लगी प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यू डरता है दिल.......,हा..मुझे ब्लाग से प्यार है पर चाह्ती हूँ... एक अच्छी माँ बनना। एक गुम न हुई ब्लागऱ भी ......सो आई हूं एक औरत की तरह दुखड़ा और सुखडा कहने...

आगे जारी है...