मंगलवार, 31 जुलाई 2007

सर दर्द का आनन्द

बच्चों के साथ

न दवा न चम्पी किसी भी तरह से आराम नहीं मिल रहा था . सबेरे से सिर फट रहा था. सो भी नहीं सकती थी, क्यों कि बेटी के आने का समय हो चला था. तभी वह मेरी ढाई बरस की रानी स्कूल से वापस आ गई और उसने
अपनी ही तरह से अपनी बात रखी ! मसलन मुझे गोद मे लो
फिर इस कमरे से उस कमरे ,कीचन मे घुमाती रही यह नहीं
वो चाहिए, नहीं नहीं आईस्क्रीम चाहिए. उसकी मांगें पूरी होतीं कि तब तक बेटा भी स्कूल से आ गया, और बोला, मम्मा जल्दी से सत्तू के पराठे बनाओ , बनाया, बेटी ने अपना दुख भैया को सुनाया,कि उसे मम्मी ने आइसक्रीम नहीं दिलाया, भैया ने कहा मे दिलाऊंगा
हालाकि भैया अभी कुल बारह बरस के ही हैं। मेरा आज का दिन सर दर्द के बावजूद बच्चों के साथ आनन्द से बीता.ये दोनो ना होते तो दर्द तो होता पर यह आनन्द नहीं.

रविवार, 15 जुलाई 2007

कविता

स्त्रियां

स्त्रियां घरों में रह कर बदल रही हैं
पदवियां .पीढी दर पीढी .स्त्रियां बना रही हैं
उस्ताद फिर गुरु, अपने ही दो चार बुझे-अनबुझे
शव्दों से ,

दे रही हैं ढांढस, बन रही हैं ढाल,
सदियों से सह रही हैं मान -अपमान घर और बाहर.
स्त्रियां बढा रही हैं मर्यादा कुल की खुद अपनी ही
म्रर्यादा खोकर,

भागमभाग में बराबरी कर जाने के लिये
दौड रही हैं पीछे-पीछे,

कहीं खो रही हैं
कहीं अपनापन,
कहीं सर्वस्व.

सोमवार, 9 जुलाई 2007

आभा की दूसरी कविता

बन्धन

हेनरी फ़ोर्ट ने कहा-
बन्धन मनुष्यता का कलंक है,
दादी ने कहा-
जो सह गया समझो लह गया,
बुआ ने किस्से सुनाएँ
मर्यादा पुरुषोत्तम राम और सीता के,
तो मां ने
नइहर और सासुर के गहनों से फ़ीस भरी
कभी दो दो रुपये तो
कभी पचास- पचास भी।
मैने बन्धन के बारे मे बहुत सोचा
फिर-फिर सोचा
मै जल्दी जल्दी एक नोट लिखती हूँ,
बेटा नीद मे बोलता है,
मां मुझे प्यास लगी है।