शनिवार, 7 मार्च 2009

सुनों कहानी.......

जागो सोने वालों सुनो ......बदलो मेरी कहानी।
मेरी माँ कहती है औरत ही औरत की दुश्मन है। वही मेरी दूसरी माँ(सास)
का कहना है औरत की नाक न हो तो मैला खाए। क्या मेरी दोनों माएँ अपना जिया
अनुभव कहती हैं या सुनी सुनाई बातें । राम जाने । माँ ने जब यह कहा मैं बहुत छोटी थी। मतलब जानने की हैसियत न थी और सास ने जब कहा उनसे बहुत डरती थी सो जवाब तलब न कर सकी पर दोनों वाक्य बहुत परेशान करते हैं, लेकिन मेरा मानना है औरत खुद अपनी ही दुश्मन है – डरपोक हैं आप । पुरूष चाहे तो उसकी खिल्ली उड़ा सकते हैं, डरपोक-डरपोक कह कर या उसका साथ दें सकते हैं क्यों कि सहयोग पर ही घर, समाज, दुनिया उन्नति कर सकती है।
खुशी की बात इतनी है कि हमारी (औरत की ) कहानी । बहुत हद तक बदल चुकी है,
फिर भी औरत अपनी लाज बजाती , किस्मत को कोसती जी रही हैं।
निवेदन है उन लोगों से जो अब भी सो रहे हैं गावों ,कस्बों और तथाकथित
शहरी लोगों से - जागो सुनो और बदलो मेरी कहानी ...................................