जागो सोने वालों सुनो ......बदलो मेरी कहानी।
मेरी माँ कहती है औरत ही औरत की दुश्मन है। वही मेरी दूसरी माँ(सास)
का कहना है औरत की नाक न हो तो मैला खाए। क्या मेरी दोनों माएँ अपना जिया
अनुभव कहती हैं या सुनी सुनाई बातें । राम जाने । माँ ने जब यह कहा मैं बहुत छोटी थी। मतलब जानने की हैसियत न थी और सास ने जब कहा उनसे बहुत डरती थी सो जवाब तलब न कर सकी पर दोनों वाक्य बहुत परेशान करते हैं, लेकिन मेरा मानना है औरत खुद अपनी ही दुश्मन है – डरपोक हैं आप । पुरूष चाहे तो उसकी खिल्ली उड़ा सकते हैं, डरपोक-डरपोक कह कर या उसका साथ दें सकते हैं क्यों कि सहयोग पर ही घर, समाज, दुनिया उन्नति कर सकती है।
खुशी की बात इतनी है कि हमारी (औरत की ) कहानी । बहुत हद तक बदल चुकी है,
फिर भी औरत अपनी लाज बजाती , किस्मत को कोसती जी रही हैं।
निवेदन है उन लोगों से जो अब भी सो रहे हैं गावों ,कस्बों और तथाकथित
शहरी लोगों से - जागो सुनो और बदलो मेरी कहानी ...................................