सोमवार, 28 जुलाई 2008

दादी की सीख

यह पाठ मुझे मेरी दादी ने पढ़ाया था। वे अक्सर ड. तक पढ़ाने के बाद रोने लगती थी....और मैं उनको रोता छोड़ कर बाहर निकल जाती खेलने । दादी तो आज नहीं हैं लेकिन उनकी पढ़ाई आज भी मेरे पास है । आप भी पढ़ें उनका यह पाठ।

माइ री माइ कितबिया दे स्कूल में जायेके

माइ री माई खाना पकायेदे स्कूल में खायेके।

हम स्कूल गए और पढ़े.................

क कबूतर पकड़ के लाया

ख खटिया पर बैठा है

ग गधे को कभी न छेड़ो

घ घड़ी को देखता है

ड. बेचारा पड़ा अकेला

आओ बच्चो खेलें खेला।।

बचपन तो हमारा ऐसे ही गया ....अभी भी यही पाठ चल रहा है। सिर्फ ड. और दादी ही नहीं हम सब अकेले छूटते है ........।

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

नेताओं की नंगई देखेगी जनता जल्द


नेताओं की नंगई देखेगी जनता जल्द .....
कुछ ही महीनों मे देश में आम चुनाव होगें, हमेशा की तरह जनता-नेता की कुर्सी पोछ- पाछ कर बैठाती आई है वैसे ही सही गलत का फैसला होने पर उतारती भी है। जहाँ तक
सीपीएम का सवाल है उसने अपना चेहरा ठीक से दिखा दिया । सोमनाथ जी को
पार्टी से निष्कासित करने के उनके फैसले के बाद अब उनकी यानि लेफ्ट की बात करना कोई मायने नहीं रखता
हाँ.. जिन्हें करना हो करें ।
बीजेपी जनता को गुमरगह करने की कोशिश में माहिर है इसका सबूत हमारे पास 92 का 6 दिसम्बर है...जिसे हम या कोई जिसने सिर्फ समाचार में देखा-सुना पर जिन घरों , जिन लोगों को उस खूनी खेल ने भुगता उनके घर वाले ही बीजेपी की राजनीति को समझ सकते हैं ठीक से.... यह अलग बात है कि किसी के लिए देश भक्त हो सकती है यह पार्टी....
यह देश भक्ति फिर दिखी जब नोटों की गड्डियाँ वे संसद मे लहरा रहे थे, और हम शर्मिंदा हो रहे थे अपने -अपने घरों में, साथ ही अपने को समझा रहे थे कि यदि खरीद फरोख्त जैसा कुछ हुआ भी था तो इन्हें स्पीकर सर को खबर करनी थी और साथ ही यह भी समझ आ रहा था कि यह इनकी 6 दिसम्बर की चाल तो नहीं, खैर जो कुछ हुआ ठीक नहीं रहा पर हम जनता हैं हम सही – सही और गलत - गलत साफ जानना चाहते हैं ।
वैसे ही जैसे आरूषी हत्या काण्ड का सबूत साबित हुआ, यह अलग बात है कि आरूषी की हत्या जिसे मेरी साढ़े तीन साल की बेटी भानी अरूषी दीदी कहने लगी .... लोगों के मन में अब भी सवाल लिए खड़ी है, दूसरी ओर देश की सबसे बड़ी जाँच व्यवस्था पर सवाल उठाता गलत है ऐसा मन कहता है । भरोसे पर दुनिया कायम है तो हमें इस बड़ी और सच के आखिरी सबूत वाली जाँच व्यवस्था को मानना ही होगा, हमने मान लिया और शान्ति भी मिली है - मन को, क्यों न मिले भी आखिर एक पिता की मर्यादा कलंकित होते होते बची है....
यह अलग बात है कि अरूषी की मौत ने भरोसे को झकझोर दिया है ....
अब वैसे ही हम जानना चाहते है इस खरीदी सांसद को, क्या सही है क्या गलत समझाना होगा हम जनता को, आगे सब जनता तय करेगी हमेशा की तरह.......
भरोसा
भरोसा किसी चिड़िया का नाम
होता तो अच्छा था......
फिर हम बच्चों से
,या

...,

हम कहते, वो देखो वो
कितनी कितनी ऊपर
ऊड़ती भरोसा चिड़िया,
फिर बच्चे खुश होते ,
देख देख हम खुश होते इन
बच्चो को ...देख देख,
हम कहते
बच्चो से, देखो यह भरोसा चिड़िया
कैसे दाना चुगते चुगते फुर्र हो जाती है।
या नाम होता किसी इन्सान का ,
हम पूछते नाम और कोई कहता मेरा नाम भरोसा....,
हा सुना भी है नाम- जैसे राम भरोसे
हो सकता है, पूर्वजों ने रखा हो नाम, कि राम ही
करेगें उद्धार ......

पर यह भरोसा न कोई चिड़िया है
न है कोई इन्सान या फिर
जानवर भी
यह तो है एक व्यवस्था का नाम
जिस पर कायम होता है
हमारा...
बहुत कुछ या सब कुछ ....

बुधवार, 9 जुलाई 2008

सब सच सच कह दूँ....

सब सच सच कह दूँ , ठीक है . ..

इस संसार मे आया कोई भी माया से बच नहीं सकता जब तक की संसार न छूट जाए,।
नहीं कह सकती कि ब्लॉग माया कब तक साथ देगी । यह जरूर है कि जब कभी मन यह सोचता है माई री मै का से कहूँ अपने जिया कि.. फिर खुद ही जवाब भी मिल जाता है कि कहो न ब्लॉग पर, यह अलग बात है कि बिसर भी जाता है बहुत कुछ कई कई बार ......

साल भर पहले बोधि ने अभय से मेरा भी एक ब्लॉग हो, इस बाबत सलाह किया,
और 24 जून 2007 को अभय ने मेरा ब्लॉग अपना घर बनाया।
तय सी बात है कि जो अक्सर घर पर आते है वो अपनों से हो जाते-बड़े छोटे हम उम्र सभी.... इन अपनों से वाद-संवाद के लिए निर्मल आनन्द के अभय तिवारी की आभारी हूँ । अनूप शुक्ल फुरसतिया जो टिप्पणी तो करते ही हैं साथ ही कभी कभार बातचीत में अपनापा और बड़प्पन जता जाते हैं इधर मैं भावुक होने लगती हूँ, समीर भाई जैसे समझदार और व्यवहारिक लोग भी बड़ी खुशकिशमत जन को मिलते हैं तो मानिए पूरा ब्लॉग जगत भाग्य का धनी है। अनुज संजीत त्रिपाठी कहाँ व्यस्त हैं, किसी को पता हो तो मुझे भी बताएँ या हमारी याद उन तक पहुचाएँ ।

ज्ञान भैया ऐसी सीख भरी टीप देकर उत्साह बढ़ाते रहते हैं...शिव जी ...कभी-कभार अपना घर तक आए हैं पर मुझे कोई शिकायत नहीं ये तो अपनी, सहूलियत और समय मिलने की बात है, अनिल रघुराज जी को क्या कहें वो जैसे कभी-कभार टीप देते हैं वैसे ही कभी-कभार उनकी पोस्ट पढ़ कर बरबस कह देती हूँ देखो अनिल जी ने मेरी बात कह दी यह जरूर है कि बोधि बताते हैं कि अनिल भाई बहुत पढ़े लिखे सहज सरल हैं, प्रमोद भाई का जिस दिन काली काफी पीकर रजाई मे मुँह ढक कर रोने का मन कर रहा था उस दिन लगा यह है न मेरा भाई जिसने मेरा संग्रह छपने छपाने की बात की थी, काकेश की कतरने मैं भले ही हमेशा न पढ़ पाऊँ पर पाऱूली की शादी तो मन में बस गई है, ....अफलातून जी की मेरी पोस्ट पर वेलकम टीप नहीं भूल सकती...। बहुत सारे मेरे भाई जिनका नाम भूल रही हूँ क्या करूँ आशा है क्षमा करेगें
इधर आए अरूण आदित्य भी रवानी भरी दिल की बातें लिखते है तो अच्छा लगता है, ..
अभिषेख ओझा गणितीय पोस्ट भर लिखते हैं, उन्हें महगाई को ध्यान में रखते हुए बचत
करना चाहिए ताकि आने वाली के लिए हीरे का नेकलेस ,रिंग वगैरा.......ले जाएं ये सिर्फ सलाह है......आखिर बड़ी हूँ ..। सुभाष निरव मेल करते हैं अच्छा लगता है ...

बहनें तो अपनी है ही जिनमें बड़ी दी लावण्या जी के स्नेह और सीख भरी टीप मीठी लगती है, इंतजार भी। अनिता जी सहित रंजू ,रचना आप सब के मेल का जवाब नहीं दे पाई कारण–मेरे सहित मेरे कम्प्यूटर की तबीयत भी ठीक नहीं थी इस वास्ते मैंने दस
बारी कान पकड़ कर उट्ठक–बैठक कर ली आप सब ने देखा नहीं पर पढ़ तो लिया ही आशा है माफ करेगीं .....करेगीं न .. । रंजू आप अमृता प्रीतम और मीना कुमारी को पसंन्द करती हैं, मै भी और ब्लॉग पर यदि किसी से मीठी जलन है तो वो आप से इतना ही कहूँ की और कुछ ..... । ममता आप की रीटा आइस्क्रीम पोस्ट बाकी खबरिया पोस्ट पढ़ती हूँ ...। बेजी अचानक कहा व्यस्त हो गई..। घुघूती जी उससे भी पहले से ..कहा है आप का इंतजार..। मीनाक्षी मान जाइए नही तो मैं आकर मनाऊँगी...चोखेरबालियाँ तो अपनी सी हैं ही.................