शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

इलाहाबाद ब्लॉगर सम्मेलन से क्या मिला



बहुत कुछ खोया बहुत कुछ पाया

यह अक्टूबर का महीना बड़ा अच्छा रहा। इसमें बहुत कुछ खोया बहुत कुछ पाया। खोया यह कि मुंबई के स्कूल रायन इंटर नेशनल में जज बना कर बुलाई गई। हालाकि अचानक खाँसी बुखार से तबियत खराब हो जाने के कारण न जा सकी। खोया यह भी कि मेरे एक कान की बाली कहीं यात्रा की तैयारियों में खो गई। जो एक बची है उसे देख -देख कर दुखी हो रही हूँ। वहीं पाया यह कि इलाहाबाद के ब्लॉगर सम्मेलन में न जाते-जाते पहुँच गई।

मेरा वहाँ पहुचना तो असम्भव था। न मैं बड़ी ब्लॉगर हूँ न लिक्खाड़। यह मेरा पहला ब्लॉगर मीट था जो मेरे लिए एक बड़ी घटना है। वहाँ जो कुछ बोल पाई बोल भी दिया। । उस भाषण में मुझे सबसे अधिक उलझन इस बात की है कि मैंने आयोजकों को किसी भी तरह का आभार वचन नहीं कहा। हालाकि ब्लॉगर बंधुओं ने धीरज से सुन कर मेरा हौसला बढ़ाया और प्रतीक चिह्न सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के कारण मुझे बाद में मिल पाया। मैं उनकी संतोष भदौरिया और अनूप शुक्ल की आभारी हूँ। जिनके चलते मुझे यह सुवसर मिला।

वहाँ कितने ऐसे लोगों से भेट मुलाकात हुई जिन्हें पिछले तीन सालों से ब्लॉग पर देखती- पढ़ती आ रही हूँ। मुझे बचपन से लोगों से मिलना अच्छा लगता रहा है । वह आदत गई नहीं है। सो लोगों से मिल कर खुश हूँ। खुश हूँ कि ज्ञान भाई, अनूप जी, अजित बडनेकर जी, प्रियंकर जी, अफलातून जी, रवी रतलामी जी, मसिजीवी, मनीषा समेत बहुत सारे प्रिय ब्लॉगरों से मिलना हुआ। मैं यहाँ जिनका नाम नहीं ले पा रही हूँ वे मान लें कि मैं उनसे मिल कर खुश हूँ।


इलाहाबाद के इसी सम्मेलन में अपने मुंबई के पड़ोसी युनूस भाई से मिलना अच्छा लगा। वहाँ सोचा था उनके साथ जा कर बतरस वाली ममता जी से मिल लूँगी। लेकिन यह न हो सका । ममता को उनके माता जी के निधन पर केवल फोन से सांत्वना दे पाई हूँ।


इलाहाबाद के इस अधिवेशन को मैं जीवन में कभी भी भूल न पाऊँगी। हालाकि मैं यह ठीक से जानती हूँ कि मैं उतनी प्रतिभाशाली नहीं जितने प्रतिभाशाली ब्लॉगर वहाँ जुटे थे। मुझे इस बात का भी मलाल है कि कई सारे प्रतिभाशाली ब्लॉगर वहाँ न पहुँच सके। वे भी आते तो सुनने और समझने का संयोग होता। लेकिन क्या यह संभव है कि कोई आयोजन बिना सवालों के घेरे में आए पूरा हो सके। यह तो रीति है। सामाजिक आयोजन तो अपनी जगह हैं। लोग तो बेटे-बेटियों के विवाह तक में बहुत सारे अपनों को बुलाना भूल जाते हैं।


इलाहाबाद में जो कुछ विचार मैंने व्यक्त किए उसे छाप कर आप सब को पढ़वाऊँगी।