वह पलम्बर कौन था जो हम सब के लिए भगवान बन कर आया था। आया तो था वह घर का नल ठीक करने के लिए पर मेरी माँ को जीवन दान दे गया। वह मेरी बीमार माँ को आग में झुलसने से बचा गया। उसका आना महज एक संयोग था या और कुछ।
माँ भाई और भाभी के साथ नोयडा में रहती हैं। भैया भाभी दोनों सुबह ही ऑफिस निकल गये थे। उनकी दोनों बेटियाँ भी पढ़ने स्कूल चली गईँ थीं। घर में काम करनेवाली लड़की किरन ही थी उस समय माँ के साथ, लेकिन वह काम में लगी थी । माँ बीमारी के बाद भी बिना पूजा किए नहीं रहतीं। कल वह पूजा करने जा रही थी कि तभी वह प्लम्बर आया । नल ठीक करने। किरन दरवाजा खोल कर काम में लग गई। माँ हर दिन की तरह पूजा कर रही थी कि उसकी साड़ी का पल्लू दीये की लौ से लिपट गया और उसमें आग लग गई। पर माँ को खुद कुछ पता नहीं था और वह आरती और पूजा में मगन थी। उस प्लम्बर ने माँ के पल्लू को जलते देखा और लपक कर उसने आग बुझाई। माँ एक बड़े हादशे का शिकार होने से बच गई। माँ इस समय पैंसठ छाछठ साल के आस-पास की है और उसका बायाँ पक्ष लकवे का शिकार है इस कारण उसमें वह पुरानी तेजी नहीं रह गई है। अगर वो जल जाती तो बहुत बुरा होता उसके साथ। और हम उसकी छाया से वंचित हो जाते। उम्र और बीमारी आदमी को कैसे बदल देते हैं जबकि मेरी माँ बड़ी समझदार पढ़ाकू और ज्ञानी महिला है। वो कौन है माँ के अलावा उसके गुन फिर कभी गाऊँगी।
फिलहाल तो यही सोच कर मन को शांति है कि मेरे भैया एक बड़ी मानसिक सामाजिक और कानूनी तकलीफ में पड़ने से बच गए। जब कि वो माँ का अपने बच्चो से बढ़ कर ध्यान रखते हैं साथ ही मेरी भाभी भी । आज मेरे दोनों पिता नहीं है यानी मेरे बच्चों के नाना और दादा। मेरी दोनों माएँ स्वस्थ रहे और उनका आशीष बना रहे यही इच्छा है।
मैं माँ से बहुत दूर हूँ । हालाकि सुबह उससे बात हो गई है और वह ठीक है। पर सोच रही हूँ कि अगर वह प्लम्बर न आया होता तो पता नहीं क्या होता। आज तो उस प्लम्बर का ही गुन गाने का मन है जिसने मेरी माँ को जलने से बचाया। भगवान उसका भला करें। जिसका नाम तक हमें नहीं पता ।