सोमवार, 26 मई 2008

भाई की फोटो

एक पुरानी कविता

मेरे पास एक फोटो है
मेरे बचपन की पहचान
जब तक रही मैं माँ के साथ
वह अक्सर दिखाती मुझे फोटो
कहती यह तुम हो और यह गुड्डू
तुम्हारा भाई जो नहीं रहा।
माँ अक्सर रोती इस फोटो देख कर
जबकि फोटो में हम भाई-बहन
हँसते थे बेहिसाब,
हालांकि भाई के साथ होने या हँसने की
मुझे कोई याद नही है।

यह फोटो मैं ले आई मायके से ससुराल
छिपा कर सबसे,
विदा होने के पहले रखा मैंने इसे किसी-किसी तरह
अपने बक्से में,
जब घर के लोग मुझे लेकर भावुक होकर रो-रो पड़ते थे।

बाद में माँ ने मुझसे पूछा कि
वह गुड्डूवाली फोटो है क्या तुम्हारे पास,
यहाँ मिल नहीं रही है।
मैं चुप रही
फिर बोली
नहीं है वह फोटो मेरे पास ।

माँ ढूँढती है
अब भी घर का एक एक संदूक और हर एक एलबम
पर यह फोटो नहीं मिलती उसे।
२३ जुलाई 2001

नोट- पिछले कई दिनों से घर में खोज रही हूँ.....पर में भाई वह फोटो कहीं नहीं मिल रही है...

गुरुवार, 15 मई 2008

गिलास को भी पसीना आता है

वैसे तो भानी को गर्मी बिलकुल पसंन्द नहीं और मैं भी उसे दोपहर को हाल यानी लीविंग रूम मे नहीं रहने देती हाल से अंदर के कमरे में ले जाने का तरीका है लसीब.....
मैंने उसे लस्सी पीने के लिए दिया ,हाँ भानी लस्सी को लसीब बोलती है और हम सब उसके मुहँ से लसीब ही सुनना चाहते है...भानी का गुल्लक रसगुल्ला है...वो पैसे रसगुल्ले में रखती हैं...कंटाप मारने को कंटाल मारना कहती हैं...उनकी बात न मानी जाए तो सच में कंटाल मारने लगी हैं...
कल की लसीब कुछ ज्यादा ही ठंन्डी थी ।
मैं.उसको लसीब देकर अन्दर के कमरे मे चली गई यह कह कर कि तुम रहो गरमी में, मैं अन्दर आराम से सोऊँगी दरवाजा स्भाविक रूप से बिना लाक के ही था ताकि भानी जब चाहे अन्दर आ जाएँ.... ।
भानी अन्दर तो नहीं आई बल्कि जोर जोर से आवाज लगाने लगीं मुझे लगा क्या हुआ मेरी .बेटी को मैं दौड़ कर उसके पास आई क्या हुआ
भानी कहने लगी मम्मा मुझे तो खाली गरमी लग रही है और ग्लास इतनी
ठंडी है फिर इसे पसीना क्यों आ रहा है......
मानस को जब पानी पीना होता है भानी से गिलास का पसीना दिखाने को कहता है और भानी दौड़ कर कई गिलास भर लाती हैं...मानस का काम हो जाता है
भानी कई दिनों से गिलास के पसीने का आनंद ले रही हैं... और सब को दिखा रही हैं....देखो गिलास का पसीना ।

बुधवार, 14 मई 2008

कहाँ हो खुदा...

तालस्ताय की कहानी ‘खुदा कौन’ में तीन यात्री खुदा कौन है और वो कहाँ हैं ,इस बाबत बहस करते हैं
एक यात्री कहता है कि उसका खुदा उसके तलवार में है दूसरा कहता है उसका खुदा गिरिजा घर में है
तीसरा कहता है कि खुदा किसी उपासना गृह मे नही रहता उसे

सिर्फ महसूस किया जा सकता है कुल मिला कर कहानी यह है कि खुदा द्वारा बनाई गई यह दुनिया ही एक
उपासना गृह है जहाँ सब को प्रेम से रहना चाहिए जहाँ जाति धर्म क्षूद्रों की सी बात है

जब मन बहुत सी समस्याओ से उलझ जाता है तो स्वाभाविक सी बात है ऐसी रचनाएँ याद आती हैं
जहाँ राज ठाकरे या उनके जैसा कोई भी राजनेता मूढ जैसा दिखता है जो किसी के नहीं होते अपनों के भी नहीं यह बात भी
किसी से छुपी नही और यदि राज वास्तव मे नेता है या मान ले दिखावा ही सही तो कहाँ हैं राज ठाकरे
जिन्होंने जयपुर दुर्घटना पर खेद नहीं जताया।

कहाँ हम इस बढती हुई महगाई को लेकर उलझन में थे कि बहुतों का पेट कैसे भरेगा ....और कुछ भी कर पाने
जैसा नहीं लग रहा था सिवाय दुखी और परेशान होने के वही जयपुर की घटना यह सोचने को बाध्य कर रही है
कि रोटी की समस्या तब होगी जब हम जिएँगे... यहाँ...तो अपनी जिन्दगी का ही भरोसा नहीं

ऐसी परिस्थितयों मे मन बारबार खुदा को ही याद कर रहा है कहाँ हो कहाँ हो....
कहाँ हो अल्लाह
कहाँ हो ईशू
कहाँ हो ईश्वर
कहाँ हो खुदा
करो कुछ....
...... ....।

शनिवार, 10 मई 2008

पराई हो जाती हैं बेटियाँ


आज मदर्स डे है तो स्वाभाविक सी बात है कि माँ सिद्दत से याद आ रही है।
याद आ रही है –माँ जो मुझे...बेबी बेबी बुलाती जिसे मै अनसुना करती माँ फिर बड़े
मीठे सुर मे बुलाती बेबा..बेटी और मैं दौड़ती उसके पास क्या माँ क्या माँ ..करती पहुँच जाती......
आज याद आ रही है - माँ जब
मै विदा हो रही थी उसके घर से, चाचा ने कहा छोड़ो भाभी विदा करो.....। और माँ ने मुझे भर लिया था अपनी बाहों में
देख रही हूँ माँ को जो मुझे विदा कर रोती रही पागल सी...... दो तीन दिनों तक
,ऐसा बड़ी दी ने बताया मुझे ,बहुत कुछ याद आ रहा है. जो यहाँ लिखना फिलहाल सम्भव नहीं
, सम्भव है सिर्फ यह कि आज हर बेटी ऐसे ही याद कर रही होगी अपनी माँ को.. दूर जो हो जाती हैं बेटियाँ
दूर हूँ तो क्या हुआ सुनूँगी माँ की बातें सुनाउँगी उसे अपनी बातें जिसे सुन खुश हो
वो स्वस्थ्य हो माँ.....।
आजकल माँ देर से जागती है...कुछ देर में माँ को और अपनी सासू माँ सब को फोन कर के आशीर्वाद लूँगी....
मेरी माँ अभी 66 साल की हैं...यह उम्र बहुत नहीं है लेकिन वह बहुत बीमार रहती है...जब वो सोती है तो उसके दिमाग में खून का बहाव रुक जाता है और अक्सर उठने पर चक्कर खा कर गिर पड़ती है...और वह अपने गिरने को समझ भी नहीं पाती है...गिरने के काफी देर बाद उसे पता चलता है कि वह गिरी थी...और उसे चोट भी लगी है...डॉक्टरों का कहना है कि बिस्तर से अचानक न उठें..वह इस बात का खयाल भी रख रही है...
ऐसी हालत में भी माँ किसी को परेशान नहीं करना चाहती है... फिलहाल वह अपने बड़े बेटे यानी मेरे भाई के साथ रहती है....जो कि उसका बहुत खयाल रखते है...मैं बेटा होती हो शायद माँ मेरे पास होती...अभी कहती भी हूँ कि माँ को यहाँ मुंबई भेज दो तो भाई कहता है कि तुम्हारी बच्ची अभी छोटी है ...और माँ को सम्हालना भी एक बच्चे को सम्हालने जैसा ही है...अभी....
माँ के पिछले दिन याद करती हूँ तो एक सुघड़, व्यवस्थित माँ याद आती है...जिसके शांत चेहरे को देख कर हम भाई बहन जीने का सलीका पाते थे....
आज मैं उससे दूर हूँ.....और दुआ कर रही हूँ कि वह ठीक हो जाए.....।
सारे ब्लॉगर्स को मदर्स डे की मंगल कामना॥
नोट- माँ के साथ मेरा बेटा मानस और मैं