बुधवार, 14 मई 2008

कहाँ हो खुदा...

तालस्ताय की कहानी ‘खुदा कौन’ में तीन यात्री खुदा कौन है और वो कहाँ हैं ,इस बाबत बहस करते हैं
एक यात्री कहता है कि उसका खुदा उसके तलवार में है दूसरा कहता है उसका खुदा गिरिजा घर में है
तीसरा कहता है कि खुदा किसी उपासना गृह मे नही रहता उसे

सिर्फ महसूस किया जा सकता है कुल मिला कर कहानी यह है कि खुदा द्वारा बनाई गई यह दुनिया ही एक
उपासना गृह है जहाँ सब को प्रेम से रहना चाहिए जहाँ जाति धर्म क्षूद्रों की सी बात है

जब मन बहुत सी समस्याओ से उलझ जाता है तो स्वाभाविक सी बात है ऐसी रचनाएँ याद आती हैं
जहाँ राज ठाकरे या उनके जैसा कोई भी राजनेता मूढ जैसा दिखता है जो किसी के नहीं होते अपनों के भी नहीं यह बात भी
किसी से छुपी नही और यदि राज वास्तव मे नेता है या मान ले दिखावा ही सही तो कहाँ हैं राज ठाकरे
जिन्होंने जयपुर दुर्घटना पर खेद नहीं जताया।

कहाँ हम इस बढती हुई महगाई को लेकर उलझन में थे कि बहुतों का पेट कैसे भरेगा ....और कुछ भी कर पाने
जैसा नहीं लग रहा था सिवाय दुखी और परेशान होने के वही जयपुर की घटना यह सोचने को बाध्य कर रही है
कि रोटी की समस्या तब होगी जब हम जिएँगे... यहाँ...तो अपनी जिन्दगी का ही भरोसा नहीं

ऐसी परिस्थितयों मे मन बारबार खुदा को ही याद कर रहा है कहाँ हो कहाँ हो....
कहाँ हो अल्लाह
कहाँ हो ईशू
कहाँ हो ईश्वर
कहाँ हो खुदा
करो कुछ....
...... ....।

6 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

हाँ न जाने क्यूँ वो किसी की सुन ही नही रहे -

Udan Tashtari ने कहा…

अति निन्दनीय एवं दुखद घटना.

--सचमुच लगता तो है कि कहाँ हो खुदा!! बहुत अच्छी तरह घुटन की अभिव्यक्ति की है इस त्रासदी पर.

mamta ने कहा…

जयपुर का हादसा एक बहुत ही दुखद घटना है।

mamta ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कुश ने कहा…

जब कुछ इंसान मर जाते है
तो बहुत सारे इंसान मारे जाते है..

जयपुर जैसे शांतिप्रिय शहर में ऐसी घटना की उम्मीद नही की थी.. अभी तक मन विचलित है..

ईश्वर से प्रार्थना है हादसे के शिकार लोगो को शांति मिले और दोषियो को सज़ा

डॉ .अनुराग ने कहा…

जाहिर सी बात है जब ४ साल की दो मासूम बच्चिया अकाल मौत मे चली जाए ,तीन किताबे खरीदने निकली बहने बम की भेट चढ़ जाए ...तब ये सवाल उठने वाजिब है.....