बुधवार, 12 दिसंबर 2007

बुद्ध की निगाह में पत्नियों के प्रकार और मेरी उलझन

जातक कालीन भारतीय संस्कृति पढ़ते हुए मैं एक जगह रुक गई। जहाँ भगवान बुद्ध पत्नी यानी भार्या के प्रकार गिनाते है। उनकी निगाह में पत्नियाँ सात तरह की होती है। उनका यह विभाजन कितना उचित है कितना नहीं इसके मूल्यांकन का कोई इरादा नहीं है। यह जरूर है कि उनका विभाजन मुझे बहुत रोचक लगा।

1- वधक भार्या- जो दुष्ट चित्तवाली, अहित करनेवाली दया रहित, दूसरे को चाहनेवाली, अपने पति का तिरस्कार करनेवाली, धन से खरीदे गए दास-दासियों का अपमान करनेवाली पत्नी को बुद्ध वधक भार्या मानते हैं।
2- चोर भार्या- पति का धन चुरा कर अपने पास रखनेवाली चोर भार्या होती है

3- आर्या भार्या- अधिक खाऊ , क्रूर स्वभाव , कटु बचन बोलनेवाली और आलसी होती है।

4- माता भार्या- हमेशा दया करनेवाली, माँ की तरह पति की रक्षा करनेवाली, पति की कमाई की भी रक्षा करनेवाली, को बुद्ध माता भार्या मानते हैं।

5- भगिनी भार्या-लज्जा शील, गौरवशील, पति के वश में रहनेवाली भगिनी भार्या है।

6- दासी भार्या-मार पिटाई और अपमान सहनेवाली और क्रोध को पी जानेवाली शांत स्वभाव वाली पत्नी दासी भार्या है।
7- सखी भार्या – वह है जो कुल शीलवाली कुळ की मर्यादा का ध्यान रखनेवाली, पतिब्रता और पति को देखते ही इस तरह खुश होनेवाली कि जैसे बहुत दिनों का बिछुड़ा गहरा दोस्त मिल गया हो।

आप सब समझदार है खुद देखें और जाँचे कि बुद्ध का विभाजन कितना सही है । यह बंटवारा स्त्री जाति के मान अपमान के लिए किया गया है या गृहस्थों की निगाह में पत्नी के प्रति उलझन या शंका उत्पन्न करने के लिए या पतियों को घर से भाग कर भिक्षु बनने के लिए। खुद अपने जीवन में अपनी सोती हुई पत्नी यशोधरा को छोड़ कर निकल जाने वाले बुद्ध की निगाह में यशोधरा किस तरह की पत्नी थी यह सवाल भी मेरे मन के दुखी किए है। में उलझन में हूँ...आप भी सोचें और बताएँ..। आप यदि पत्नी हैं तो बुद्ध के इस पैमाने पर कहाँ ठहरती हैं और यदि आप पति हैं तो आप अपनी पत्नी को कहाँ पाते हैं..।
नोट-अधिक जानकारी के लिए पढ़े जातक कालीन भारतीय संस्कृति नाम की पोथी जिसके लेखक हैं पंडित मोहनलाल महतो वियोगी जी।

सोमवार, 10 दिसंबर 2007

पूरब वाले घर में पैदा हुए थे बोधिसत्व




आज बोधि का जन्म दिन है। वैसे बोधि 11 दिसंबर 1968 की रात में 2 बज कर 15 मिनट पर अपने गाँव भिखारी राम पुर के पूरब वाले घर में जन्में थे। ऐसा मुझे मेरी सासू मां ने बताया था। इस हिसाब से उनका जन्म दिन बारह दिसंबर भी हो सकता है. । अपने जन्म प्रसंग को बोधि ने अपनी एक कविता में कुछ ऐसे लिखा है-
मैं सोता हूँ किन्हीं पसलियों की ठंड़ में
या अपने पूरब वाले घर में
जिसमें मैं पैदा हुआ था
जाड़ों की भोर में कभी
मुझे और कहीं कल नहीं।

सच में बोधि को और कहीं कल नहीं है। पर समय के हिसाब से हर कोई घर से निकलता ही है।मैं पिछले सोलह सालों से बोधिसत्व को जानती हूँ और हर जन्म दिन पर बोधि अपने पूरबवाले घर के लिए छटपटाते हैं। इलाहाबाद में रहते थे तो पूरब के घर तक हर जन्मदिन में पहुंच पाते थे पर मुंबई के बाद सब कुछ सपना सा हो गया है। उनके लिए भी और हम सब के लिए भी।

आज सुबह होते ही मानस ने उन्हें जनम दिन की शुभकामनाएँ दे दीं हैं भानी का कहना है कि आज पापा का नहीं उनका ही हैप्पी बर्थडे है। बोधि के मित्रों और घर वालों के बधाई वाले फोन आ रहे है । बोधि खुश है। अपने हर जनम दिन पर यह बंदा लगभग बच्चों सा हो जाता हैं...भोला, जिद्दी और भावुक।

ऊपर की फोटो में बोधि गोवा के समुद्र में तन और मन को स्फूर्ति से भर रहे हैं। अपने जिद्दी बंदे को जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएँ

शनिवार, 1 दिसंबर 2007

यहाँ निराला


हिंदी के सूर्य निराला को तो आप सब ने पढ़ा ही होगा। उनकी बहुत सी छवियाँ भी देखीं होंगी। निराला जी की एक छवि यह भी देखें। यह चित्र उन्होंने स्वयं सरस्वती संपादक को दी थी। निराला का जन्म 1896 की बसंत पंचमी पर बंगाल के महिसादल में हुआ था। उनकी मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 को सुबह 9 बज कर 23 मिनट पर इलाहाबाद के दारागंज में हुई । यह छवि उनके युवा अवस्था यानी 1939 की है। तब वे 43-44 साल के थे। यह चित्र सरस्वती पत्रिका के 1961 के दीपावली अंक से साभार है। उनको समर्पित मेरी यह कविता भी पढ़ें।


यहाँ

यहाँ नदी किनारे मेरा घर है
घर की परछाई बनती है नदी में ।

रोज जाती हूँ सुबह शाम नहाने गंगा में
गंगा से माँगती हूँ मनौती
एक बार देख पाऊँ तुम्हें फिर
एक बार छू पाऊँ तुम्हें फिर ।

एक बार पूछ पाऊँ तुमसे
कि कभी मेरी सुधि आती है

गंगा कब सुनेंगी मेरी बातें
कब पूरी होगी मेरी कामना
ऐसी कुछ कठिन माँग तो नहीं है यह सब

यदि कठिन है तो माँगती हूँ कुछ आसान
कि किसी जनम हम तुम
एक ही खेत में दूब बन कर उगें
तुम्हारी भी कोई इच्छा हो अधूरी
तो मैं गंगा से माँग लूँ
मनौती,
गंगा मेरी सुनती हैं।

15 सितंबर 2004