स्त्रियां
स्त्रियां घरों में रह कर बदल रही हैं
पदवियां .पीढी दर पीढी .स्त्रियां बना रही हैं
उस्ताद फिर गुरु, अपने ही दो चार बुझे-अनबुझे
शव्दों से ,
दे रही हैं ढांढस, बन रही हैं ढाल,
सदियों से सह रही हैं मान -अपमान घर और बाहर.
स्त्रियां बढा रही हैं मर्यादा कुल की खुद अपनी ही
म्रर्यादा खोकर,
भागमभाग में बराबरी कर जाने के लिये
दौड रही हैं पीछे-पीछे,
कहीं खो रही हैं
कहीं अपनापन,
कहीं सर्वस्व.
3 टिप्पणियां:
अच्छी रचना पढवाने के लिए शुक्रिया
बहुत बढिया!
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