जातक कालीन भारतीय संस्कृति पढ़ते हुए मैं एक जगह रुक गई। जहाँ भगवान बुद्ध पत्नी यानी भार्या के प्रकार गिनाते है। उनकी निगाह में पत्नियाँ सात तरह की होती है। उनका यह विभाजन कितना उचित है कितना नहीं इसके मूल्यांकन का कोई इरादा नहीं है। यह जरूर है कि उनका विभाजन मुझे बहुत रोचक लगा।
1- वधक भार्या- जो दुष्ट चित्तवाली, अहित करनेवाली दया रहित, दूसरे को चाहनेवाली, अपने पति का तिरस्कार करनेवाली, धन से खरीदे गए दास-दासियों का अपमान करनेवाली पत्नी को बुद्ध वधक भार्या मानते हैं।
2- चोर भार्या- पति का धन चुरा कर अपने पास रखनेवाली चोर भार्या होती है
3- आर्या भार्या- अधिक खाऊ , क्रूर स्वभाव , कटु बचन बोलनेवाली और आलसी होती है।
4- माता भार्या- हमेशा दया करनेवाली, माँ की तरह पति की रक्षा करनेवाली, पति की कमाई की भी रक्षा करनेवाली, को बुद्ध माता भार्या मानते हैं।
5- भगिनी भार्या-लज्जा शील, गौरवशील, पति के वश में रहनेवाली भगिनी भार्या है।
6- दासी भार्या-मार पिटाई और अपमान सहनेवाली और क्रोध को पी जानेवाली शांत स्वभाव वाली पत्नी दासी भार्या है।
7- सखी भार्या – वह है जो कुल शीलवाली कुळ की मर्यादा का ध्यान रखनेवाली, पतिब्रता और पति को देखते ही इस तरह खुश होनेवाली कि जैसे बहुत दिनों का बिछुड़ा गहरा दोस्त मिल गया हो।
आप सब समझदार है खुद देखें और जाँचे कि बुद्ध का विभाजन कितना सही है । यह बंटवारा स्त्री जाति के मान अपमान के लिए किया गया है या गृहस्थों की निगाह में पत्नी के प्रति उलझन या शंका उत्पन्न करने के लिए या पतियों को घर से भाग कर भिक्षु बनने के लिए। खुद अपने जीवन में अपनी सोती हुई पत्नी यशोधरा को छोड़ कर निकल जाने वाले बुद्ध की निगाह में यशोधरा किस तरह की पत्नी थी यह सवाल भी मेरे मन के दुखी किए है। में उलझन में हूँ...आप भी सोचें और बताएँ..। आप यदि पत्नी हैं तो बुद्ध के इस पैमाने पर कहाँ ठहरती हैं और यदि आप पति हैं तो आप अपनी पत्नी को कहाँ पाते हैं..।
नोट-अधिक जानकारी के लिए पढ़े जातक कालीन भारतीय संस्कृति नाम की पोथी जिसके लेखक हैं पंडित मोहनलाल महतो वियोगी जी।
16 टिप्पणियां:
पत्नियों का यह वर्गीकरण वाकई दिलचस्प है। पुरुषों के संन्यासी या भिक्षुक बनने के पीछे एक बड़ा कारण उनका पत्नी को आत्मोत्थान में बाधक मानना रहा है।
यहां तक कि सुकरात ने भी एक बार अपने एक शिष्य को विवाह अवश्य कर लेने की सलाह देते हुए कहा था, "यदि पत्नी मनोनुकूल मिल गई तो जीवन भर सुखी रहोगे और यदि वैसी नहीं मिल पाई तो कम से कम दार्शनिक तो बन ही जाओगे।"
पतियों की तरह, पत्नियों की मनोदशा भी बदलती रहती है इसलिए मेरे ख्याल से, किसी भी पत्नी को स्थायी रूप से किसी एक वर्ग में नहीं रखा जा सकता।
जीवन पर्यंत साथ रहने के क्रम में पति और पत्नी, दोनों एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। भारतीय पत्नियों के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वे जीवन भर अपने पति को अपने साँचे में ढालने की अनवरत कोशिश करती हैं और इसीलिए सात जन्म तक उसी व्यक्ति को पति के रूप में पाने की कामना करती हैं ताकि हर जन्म में पिछली बार की मेहनतदोहरानी न पड़े। :)
अपन पति नही बने अभी। पत्नी तो हो नई सकते। सो एक पाठक के रुप में पढ़ते हैं और ज्यादा कुछ कहे बिना कल्टी हो जाते हैं।
लीजिए आज बुद्ध की कुण्डली खोल दी आप ने.. !
दिलचस्प ! सदा यही क्यों होता है कि जो जिस विषय में सबसे कम जानता है वही उस विषय में स्वयं को महारथी मानता है ? यदि श्रीकृष्ण इस विषय पर बोलते तो अधिक सही रहता । वैसे मैं सृजन जी से सहमत हूँ ।
घुघूती बासूती
c - घुघूती बासूती - हां, रोचक होगा जानना कि श्रीकृष्ण ने कुछ कहा है क्या!
सृजन जी की बात से सहमत होते हुए भी आपने चिंतन करने पर विवश कर दिया है कि बुद्ध ही नहीं श्री राम ने भी पत्नी का त्याग कर दिया था...कृष्ण जी के विचार जानने की उत्सुकता तो सदैव रही है... आप ही इस विषय पर अध्ययन करके बताइएगा ...
ज्ञानवर्धन हुआ। धन्यवादजी।
दुनिया में ऐसा कोई महापुरुष है जिससे उसकी पत्नी को कोई तकलीफ न हुई हो....बुद्ध यदि यशोधरा का श्रंगार देखते बैठे रहते तो एक आम राजा या गृहस्थ से अधिक क्या होते....
घुघूती जी बहुत सारी स्त्रियों से जुड़ने का मतलब यह नही कि कृष्ण को अधिक समझ थी ....स्त्रि जाति के दुख दर्द की और बुद्ध घर छोड़ कर गए तो यह नहीं कि वे स्त्री मन को समझ ही न पाए हो....
मीनाक्षी जी रही राम द्वारा सीता के त्याग की तो यह तो तत्कालीन परिस्थितियों की उपज थी....
ज्ञान भाई को कृष्ण के विचारों पर कुछ कहना चाहिए....उन्होंने अपने ब्लॉग पर कृष्ण की फोटो भी लगा रखी है....वे कृष्ण को किसी से भी अधिक जानते होगें.....:)
सजन भाई मैं आपसे लगभग सहमत हूँ....
संजीत जी बाद के लिए सोचना शुरू कर दीजिए....
मुझे नहीं पता था कि एक गृहस्थ अपनी पत्नी का श्रृंगार देखता बैठता है । घुघूता जी से मुझे अब शिकायत रहेगी । :)
घुघूती बासूती
पता नही शिकायत करने वाली पत्नियों को बुद्ध किस श्रेणी में रखते......:)
करके देख लीजिए....
अच्छा हुआ की आपने पहले ही अपना मत स्पष्ट कर दिया. धार्मिक बातों में लोग आज भी अपने देश में दिमाग का इस्तेमाल कम ही कर पाते हैं. पर आपका सवाल बहुत ही वाजिब है. ना तो मैं पत्नी हूँ और न किसी का पति. सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगा की देश में रोज हजारों तलाक़ होते हैं, जाने कितने पति पत्नी एक दुसरे को छोड़ देते हैं पर उनके बारे में कोई ख़ास चर्चा नहीं होती सामाजिक स्तर पर, लेकिन बुद्ध ने जो किया उसके बारे में आज ७०० से ज्यादा वर्ष बाद क्यों चर्चा हो रही है? ...इसलिए की अपनी पत्नी को छोड़ जाने के गौड़ कार्य के पश्चात् जो ज्ञान का प्रकास उन्होंने दुनिया को दिया वो सम्भात्य उन्हें उनकी व्यक्तिगत और पारिवारिक जिन्दगी से अलग एक भिन्न पुरूष के रूप में स्थापित करने के लिए पर्याप्त था.
पुनीत जी
आप की बातें बहुत अच्छी हैं...आभारी हूँ...
बुद्ध के समय के बारे में शायद आप भूल रहे हैं...
बस इतना सुधार करलें कि बुद्ध 700 साल पहले नहीं बल्कि आज से लगभग 2600 साल पहले हुए थे...
आप अन्यथा न लीजिएगा...मैं आपसे बड़ी हूँ...
आभा जी, पत्नियों का इस तरह वर्गीकरण करने की प्रवृत्ति से ही मैं सहमत नहीं हूँ. गौतम बुद्ध आज होते तो मैं उन्हें ई-मेल करके आपत्ति दर्ज कराता. हाँ, व्यक्तित्व को अलग-अलग कोनों से देखने की बात मानी जा सकती है. पति हो या पत्नी, या कह लें स्त्री हो या पुरूष, जीवन या भूमिका के अलग-अलग सोपानों में समय-समय पर बुद्ध द्वारा गिनाए गए तमाम रूपों में देखा जा सकता है.
आभाजी, नमस्कारम
नए साल की शुभकामनाएं। आपके मनोरथ पूरे हों। आपक यहां आना जाना लगा रहेगा। बोधिभाई को जगा दीजिए...
आभाजी को एक और आभा का नमस्कार!
आपका पत्नियों का वर्गीकरण पढा और अन्य मित्रों की टिप्पणियाँ भी. सोचा मैं भी कुछ योगदान कर दूं. सारी दुनिया यह मानती है की नारी का स्वाभाव समझ पाना कठिन है. इसका मुख्य कारण मैं मानती हूँ की नारी का एक रूप नहीं हो सकता. वोह तो अलग अलग रूपों का एक मिश्रण होती है. बस रूपों की मात्र घटती बढ़ती रहती है. तो बुद्धजी के इन पत्नी प्रकारों का मिश्रण एक पत्नी होती है ऐसा मैं मानती हूँ. केवल दासी कोई पत्नी नहीं होती और केवल दुष्टा कोई पत्नी नहीं होती. सब चीजों का थोडा थोडा मिश्रण होता है. स्थिति और समय के अनुसार यह मिश्रण घट बढ़ सकते हैं. जो कि सही भी है. अचरज की बात है की ऐसा वर्गीकरण पतियों के लिए उपलब्ध नहीं है. आखिर सारे जगत के गुरु भी कहीं न कहीं पक्षपाती हो ही जाते हैं.
मैं दुआ करता अगर बुद्ध को कोइ सही सोलमेट मिल जाती और वो भी उसके सही सोले मेट होते।
एक टिप्पणी भेजें