गुरुवार, 27 अगस्त 2009

क्या आप ने भी आराम के लिए लगाया है झाड़ू की तीली से इंजेक्शन


आज अपनी बेटी भानी के साथ डॉक्टर डॉक्टर खेल रही थी कि अपना बचपन याद आ गया। हमारे पास बहुत सारे खिलौने होते थे लेकिन नहीं होता था तो एक डॉक्टर सेट। हम अपने खेल में इंजेक्शन की कमी को झाड़ू की खूब नुकीली तीली से पूरा करते थे। घर को बुहारने में खूब घीसी तीली हमारा इन्जेक्शन होती।

उस खेल में हम कभी-कभी सामने वाले पर अपना खुन्नस निकालते। सुई लगाने के बहाने हम किसी की बाँह पर कस कर चुभा देते। और खेल में रोगी बने लड़के या लड़की की आई आई आई आई.....सुनाई देती । डॉक्टर बना बंदा कहता अरे इतना क्यों रो रहे हो....हम तो आराम के लिए इंजेक्शन लगा रहे है । बस थोड़ी ही देर में सब ठीक हो जाएगा।

जब हम खुद डॉक्टर नहीं बने होते और मरीज के साथ गए होते और अपना बदला भी निकालना होता तो खेल खेल में डॉक्टर को इशारा करते या उसके कान में कहते । वह रोगी की बाँह में जम कर इंजेक्शन चुभाता। और कहता आराम के लिए लगा रहे हैं। अक्सर हैपी, मधु से कान मे बोलता कि शबनम को खूब जोर से इंजेक्शन लगाओ फिर शबनम दो तीन दिन खेलने न आ पाती.......एक बार मैंने भी पूनम के कहने पर मुन्नी को झाड़ू की सुई से पूरा आराम पहुँचाया था। उसकी बाँह से खून निकल आया था। वह जब न रोई तो मैंने उससे पूछा कि रो नहीं रही हो तो उसने कहा कि मेरे आराम के लिए सुई लगा रही हो तो क्यों रोऊँ.....तब उसकी बात पर मुझे रोना आ गया था।

ऐसे होता था हमारा डॉक्टर डॉक्टर का खेल, क्या आप भी ऐसे खेल खेले हैं।

11 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

हां .. बडे मजेदार होते हैं बचपन के खेल !!

Udan Tashtari ने कहा…

वाकई, बचपन याद आया जब हम भी ऐसे ही खेले हैं.

Unknown ने कहा…

सुन्दर संस्मरण!

बचपन की स्मृति, कुछ पल के लिए ही सही, वर्तमान की चिंताओं से ध्यान हटा देता है।

लता 'हया' ने कहा…

"बचपन के दिन...बचपन के दिन भी क्या दिन थे..." आपने बचपन याद करा दिया...शुक्रिया...
नीरज

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपकी पोस्ट से एक बहुत पुराना गाना याद आ गया..."भला था कितना अपना बचपन...भला था कितना..." सच बचपन की यादें भी क्या खूब हुआ करतीं हैं...जाने कहाँ गए वो दिन...
नीरज

PD ने कहा…

kahe ko Nostalgic kar rahi hain aap? :(

बेनामी ने कहा…

हम बड़े क्यूँ हो गए :(

अजय कुमार झा ने कहा…

उफ़्फ़ वो बचपन ...उफ़्फ़ वो दिन...अब कहां ..यादों के सिवा...

राज भाटिय़ा ने कहा…

यही तो है वचपन

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

आपके ब्लॉग के माध्यम से बचपन में रीविजिट हो जाती है यदा कदा। बाकी अपने बचपन के खेल तो याद नहीं आते - सिवाय बारी में आम बीनने के!

अनूप शुक्ल ने कहा…

कित्ते सस्ते और सहज सुलभ इंजेक्शन थे उन दिनों!