सोमवार, 26 जुलाई 2010

यह मार्शल लॉ की तरह कोई फौजी हुकूमत है क्या?

यह मार्शल लॉ की तरह कोई फौजी हुकूमत है क्या?
रोज सुबह की चाय के साथ, अखबारो में तरह तरह की खबरे , जो खुशी देती हैं तो कभी विचलित भी करती हैं । ऐसी ही एक घटना, जिसे आप भी जानें -सुने.। उत्तर प्रदेश के, मुरादाबाद जिले के प्राइमरी स्कूल के अध्यापक “सुल्तान अहमद ”ने 6 साल के बच्चे “साहिल” को , क्लास में शोर मचाने की वजह से, इतना पीटा की साहिल बेसुध होकर गिर पड़ा और उसके कंधे की हड्डी टूट गई। इस तकलीफ को तो साहिल सहित उसके माँ बाप ही झेलेगें ।

शोर मचाने पर, इस जल्लादी पिटाई को पढ़, मन जाने क्यों पाकिस्तान में मार्शल लॉ के पन्नों पर चला गया, जहाँ फौजी हुक्मरान की मनमानी चलती थी ।बच्चा तो बच्चा है।उसके साथ ऐसा मारक व्यवहार । आए दिन ऐसी खबरें अखबारों में पढ़ने को मिलती रहती है। किसी अध्यापक नें बच्चे को मुर्गा बना दिया- उसका पैर हमेशा के लिए खराब हो गया, तो कभी कान के पर्दे फट गए।कभी कभी माँ –बाप इन अध्यापकों की वजह से अपनी औलाद से ही हाथ धो बैठते हैं।.. फिर घटना के बाद प्रिंसिपल और टीचर्स का बेशर्मी भरा, मुस्कान रत बयान । क्या ऐसे गुरुजन अभिभावक नहीं होतें ? जो बच्चे के मन को समझ उसे उचित सजा दें सके? ऐसे गुरू घंटालो के साथ बच्चों को छोड़ना उचित है?

अब दर्द हद से गुजरने न पाए इस बाबत मिडिया और प्रशासन से निवेदन है, कि स्कूलों के हर क्लास में कैमरे लगवाए जाएँ । चाहे स्कूल सरकारी हो या प्राइवेट। जिससे, सही और गलत का फैसला होगा ।बच्चे इस बेरहमी से बच पाएगें । अनुशासन और बेरहमी के फर्क को देखा जा सकेगा। जैसे आतंकवादियों, चोर उचक्कों- की धर पकड़ के लिए कैमरे जरूरी हैं। वैसे ही । सुल्तान अहमद सरीखे आतंकवादियों के लिए भी कक्षाओं में कैमरे जरूरी है।, यदि बच्चा ज्यादा शरारती है तो उसके और भी तरीके है। यह बेरहमी क्यों । बच्चों का स्वाभाविक विकास इस तरह के अध्यापकों के रहते ,कैसे सम्भव है। जों आज बच्चे हैं कल भविष्य ..। उन्हें ऐसे धमका कर शांत करना। न्याय संगत है?
फिलहाल , साहिल के परिजनों की शिकायत पर आरोपी टीचर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है ।आरोपी फरार हैं।

10 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शर्मनाक है यह कृत्य।

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप से सहमत है जी, यह घटना सच मै शर्मनाक है

Abhishek Ojha ने कहा…

पता नहीं इनके पीछे कैसी मानसिकता काम करती है !

राजेश उत्‍साही ने कहा…

बच्‍चों को सजा न स्‍कूल में न घर में कहीं नहीं दी जानी चाहिए। स्‍कूल की सजा का क्‍या परिणाम होता है,यह मै बहुत अच्‍छे से जानता हूं। मेरे परिवार में चार लोग इसके भुगत
भोगी हैं। कुछ महीने पहले मैंने गुल्‍लक में इस पर एक पोस्‍ट लिखी थी।

Anita kumar ने कहा…

Abha ji poore samaaj ki hi moral haddi tooti hui hai....sab apne andar ki bhadaas, kunthaayein, kamzor par nikaalte hain...lekin hai toh sharmnaak, par camera lagaane se kutch nahi hoga, yeh teachers khud camera phod kar kah denge bachchon ne phod diye aur kisi maasoom ko peet bhi denge

आभा ने कहा…

राजेश जी आप अपने पोस्ट का लिंक दें...ताकि आपके विचारों को जान सकूँ....
अनिता जी आप सही कह रही हैं....विचारणीय है।

रचना दीक्षित ने कहा…

आप से सहमत है। यह कृत्य शर्मनाक है

विवेक रस्तोगी ने कहा…

पिटाई की प्रथा बढ़ती ही जा रही है, क्योंकि हम अपना संतुलन खोते जा रहे हैं, आजकल के माँबाप भी बहुत ही जल्दी अपना संतुलन खोकर पिटाई कर देते हैं।

और अपने समय में हमने देखा था कि अगर हमारे मास्साब ने आँखें उठा कर देख भी लिया तो बस शामत ही है, इतना डर और सम्मान होता था, पर आज वह नहीं है, आज सब चाहते हैं कि किसी को भी केवल एक बार बोल दिया जाये और वह कहना मान लें, दूसरी बार में तो पारा अपने उफ़ान पर होता है।

शरद कोकास ने कहा…

यह शिक्षक हैं ?

ghughutibasuti ने कहा…

ऐसी खबरें पढ़कर मन बहुत दुखी होता है। ऐसे लोगों को शिक्षक की जगह कसाई का काम करना चाहिए। शायद वे कसाई बनने के लायक भी नहीं हैं। कसाई तो आपना कर्त्तव्य निभा रहा होता है।
घुघूती बासूती