अपनी बात
पहला भाग..
पिछने दिनों ब्लाग पर लिख्नने की चाहत से मन बहुत सी बातें आईं और गुम भी हो गई .
इसे आलस या व्यस्ततता भी मान सकते है । ब्लॉग तक पहुचने के लिए वैसे ही रास्ता देखती
रही जैसे बच्चे की स्कूल बस लेट होने पर बार बार घड़ी की सुई और गेट पर निगाह टिकी रह्ती है. ....
हाँ न लिख पाने का कारण था बेटी भानी की चंचलता ...उसने कभी भी टाइप करने ही न दिया...और कभी लिखने बैठे तो मानस के कमेंट ने रोक लिया...एक दिन वह स्कूल से लौटा और मैं अपनी पोस्ट को खतम करने में लगी थी...मैंने उससे दो मिनट रुकने को कहा...बेटे ने कहा हमारा ...घर बर्बाद हो गया है मुझे लगा जिस घ्रर की बर्बदी का कारण मेरा बेटा समझ रहा है मुझे भी ....
जानना चाहिए ....मैने पूछा भी ,बेटे ने कहा तुम दोनो बारी बारी से ब्लाग पर बने रह्ते हो ,हम दोनो को
खाना दे देते हो देखते भी नहीं.... हमने खाया कि नहीं नाश्ता दे दिया बस ....पूछा देखा नही । मैने माना हाँ यह सच है ...
बाद में मन ही मन मंथन शुरू....... कौन खास....कौन बड़ा मेरे बच्चे या मेरा ब्लाग कौन ज्यादा जरुरी ..मेरा घर या मेरा ब्लाग अपना घर ..
फिर मन ने माना यह कोई विकट समस्या नही... ,फिर क्या बेटी को गोद और बेटे को पास बिठा... गाने
लगी प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यू डरता है दिल.......,हा..मुझे ब्लाग से प्यार है पर चाह्ती हूँ... एक अच्छी माँ बनना। एक गुम न हुई ब्लागऱ भी ......सो आई हूं एक औरत की तरह दुखड़ा और सुखडा कहने...
आगे जारी है...
11 टिप्पणियां:
अरे यह क्या? बच्चों पर ब्लॉग तो क्या, किसी भी विषय से ज्यादा वरीयता होनी चाहिये।
But just look at time management. You may still find time...
मानस बच्चा.. माँ तुम्हारी माँ होने के अलावा भी बहुत कुछ है.. इसे समझो! जैसे तुम सिर्फ़ अकेले उसके बेटे भर नहीं हो.. तुम्हारा जैसे एक स्वतंत्र जीवन है वैसे उसे भी एक स्वतंत्र जीवन का अधिकार है।
तो मानस का कहना है कि उसे पूर्ण अटेंशन दिया जाए जितना उसे मिल रहा है वह उसे कम महसूस हो रहा है।
मानस भैया ही नही हम सभी अपनी मां से यही उम्मीद करते हैं कि वह सिर्फ़ हमारी मां बनकर ही रहे उसका अपना कोई एक अलग स्वतंत्र व्यक्तित्व ही न रहे, क्योंकि जिस उम्र में मानस है उस उम्र में यह कल्पना ही नही की जा सकती कि मां का अलग या मां होने के अलावा और व्यक्तित्व भी हो सकता है या पिता का भी।
सो मानस भाई साहब तो अपनी जगह सही है, बस जैसा कि ज्ञानदत्त जी ने कहा टाईम मैनेजमेंट।
वैसे अपन की सलाह यह है कि बस कुछ पल चुराकर बीच बीच मे ऐसे ही इस घर में भी झांक जाया कीजिए!!
एक तीसरा ब्लॉग भी हो - मानस का ।
आभा मानस की शिकायत जायज़ है ।जब तुमने अपनी नौकरी इन दोनों के लिये छोडी तो थोडा सा वक्त का संयोजन भी उनके लौटने के टाइम से कर लो। हां लिखते जरुर रहना । हमें इन्तजार रहेगा।
मसला सिर्फ टाइम मैनेजमेंट का है। अन्यथा मेरा घर और अपना घर में कोई टकराव नहीं है।
mothers feelings may be i will get them when i hv my own kid.still long time for that but.nice blog.
मानस के स्कूल से लौटने से पहले लिखा जाए, वैसे मानस का भी अपना ब्लोग हो आइडिया बुरा नहीं
मैं अपने आपको यदि मानस के स्थान पर देखता हूं तो मानस मुझे सही लगता है, आखिर मैं अपनी मां से हमेशा यही चाहता था कि वो हमेशा मेरे साथ हो, मेरा ध्यान रखे, लेकिन अब मैं थोड़ा बड़ा हो गया हूं, उम्र 25 वर्ष, ऐसे में अब लगता है कि मेरी मां तो हमेशा मेरे और परिवार के लिए ही जीती हैं, न कि अपने लिए, एक दिन मानस भी समझ जाएगा
मानस को आपके नौकरी करने या ब्लॉगिंग करने से जो दिक्कत होती है, या अकेला लगता है, या कि उस पर कम ध्यान दिया जा रहा है, ऐसा कुछ, वह बोधि की नौकरी या ब्लॉगिंग से नहीं लगता होगा। बच्चे भी मां से ही उम्मीद करते हैं कि वह घर को, उनको ज्यादा वक्त दे। इतना बड़ा होते-होते उनके दिमागों में भी मां और पिता के कार्यक्षेत्रों का स्पष्ट विभाजन हो चुका होता है। पापा घर के बाहर, या घर में भी हों तो फोन पर, टीवी के सामने, या अपनी लिखने की मेज पर, या किसी किताब के साथ। मां, रसोई में, खाना बनाती, झाडू लगाती, उन्हें नहलाती-धुलाती, प्यार करती, सुलाती, घर संभालती। मानस या भानी को उससे उतनी दिक्कत नहीं होगी, अगर बोधि घर पर बिताए आठ घंटों में से छ: घंटा कम्प्यूटर के सामने गुजारे।
मुझे याद है, जब मैं छोटी थी तो ऐसी सारी अपेक्षाएं, मेरी मां से ही होती थीं, पापा से नहीं। मुझे कभी नहीं लगा कि पापा को टिफिन बनाकर देना चाहिए और ऐसा न करके अगर वो अपने कॉमरेड साथियों के साथ मार्क्सवाद पर बहस करने में लगे हैं, तो कुछ गलत कर रहे हैं। लेकिन मां ऐसा करने लगें, तो लगता है, अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहीं। बच्चों के दिमाग भी तो कंडीशंड होते हैं। भानी समझेगी इसे, लेकिन बड़ी होने के बाद।
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