
हम अकेले हैं...
हर बात के फायदे के साथ साथ नुकसान भी होते हैं जैसा कि
आज कल माँ-बाप अक्सर यह कहते पाए जाते हैं कि अच्छा है हम अपने हिसाब से अकेले रहते हैं। सब की तरह मैं भी सोचती हूँ...। पर सच तो यह है कि संयुक्त परिवार हर समस्या का समाधान होता है ..इस बात को मैं शिद्दत से महसूस कर रही हूँ....। जहाँ मानस की पढ़ाई में भानी के खलल डालने पर मानस को परेशानी होती है और उन्हें ठीक से पढ़ने के लिए भानी के सो जाने तक रुकना पड़ता है....। भानी जिद करती है कि भइया को नहीं मुझे पढ़ाओ.....साथ ही ट्यूशन जैसी बातों को लेकर मानस के साथ ही हम दोनों भी उलझन में रहते हैं...वहीं जो मानस पिछले साल तक ट्यूशन लगाने का विरोध करते थे और ट्यूटर के आने की बात पर रोने लगे थे आज ट्यूटर लगाने की बात कर रहे हैं.....।
इस बाबत मैं सोच रही हूँ कि यदि मानस संयुक्त परिवार में रह रहे होते यानी कि उनके सारे ताऊ ताई बड़े भाई बहन सब एक साथ रह रहे होते तो तो शायद उनकी समस्या का हल निकल जाता उन्हे भानी के सोने का इंतजार न करना पड़ता....और भानी भी कभी दादी के साथ तो कभी ताई के साथ खेलती....। हमें वो दिन याद हैं जब हम पढ़ाई में कहीं फंसते थे...और माँ और पिता कहीं व्यस्त होते थे तो हमारी समस्याएँ कभी बाबा दादी सुलटाते थे थे तो कभी चाचा-चाची या घर में आया गया कोई और मेहमान भी...हमारा तारण हार बन जाता था....।
मानस का कहना है कि भानी के कारण उसका मन ही पढ़ाई से हट जाता है...और हमें उसकी बातों में सच्चाई दिख भी रही है....मैं अक्सर सोचती हूँ कि अकेले रहने के जितने फायदे नहीं हैं उससे कहीं अधिक झमेला है । यह अकेले का कुनबा हमारा अकेला नहीं है....करोड़ों लोग हैं जो कि इस समस्या के शिकार हैं...और दादा-दादी केवल दीवारों पर लटक कर रह गए हैं....या एलबम और वीडियों में बंद हैं....और बच्चे परेशान हैं.....और ट्यूटर की राह देख रहे हैं...। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा। मानस को ट्यूटर के हाथ में छोड़ने का मन नही है...पर सोच रही हूँ कि उनकी समस्या अगले दिन पर अँटकी न रह जाए इस लिए एक ट्यूटर रख ही दूँ.....क्या करूँ...
मानस अभी सातवी में गए हैं और भानी अभी केजी में यानी मॉन्ट टू में हैं । चित्र मानस और भानी का है ।
हर बात के फायदे के साथ साथ नुकसान भी होते हैं जैसा कि
आज कल माँ-बाप अक्सर यह कहते पाए जाते हैं कि अच्छा है हम अपने हिसाब से अकेले रहते हैं। सब की तरह मैं भी सोचती हूँ...। पर सच तो यह है कि संयुक्त परिवार हर समस्या का समाधान होता है ..इस बात को मैं शिद्दत से महसूस कर रही हूँ....। जहाँ मानस की पढ़ाई में भानी के खलल डालने पर मानस को परेशानी होती है और उन्हें ठीक से पढ़ने के लिए भानी के सो जाने तक रुकना पड़ता है....। भानी जिद करती है कि भइया को नहीं मुझे पढ़ाओ.....साथ ही ट्यूशन जैसी बातों को लेकर मानस के साथ ही हम दोनों भी उलझन में रहते हैं...वहीं जो मानस पिछले साल तक ट्यूशन लगाने का विरोध करते थे और ट्यूटर के आने की बात पर रोने लगे थे आज ट्यूटर लगाने की बात कर रहे हैं.....।
इस बाबत मैं सोच रही हूँ कि यदि मानस संयुक्त परिवार में रह रहे होते यानी कि उनके सारे ताऊ ताई बड़े भाई बहन सब एक साथ रह रहे होते तो तो शायद उनकी समस्या का हल निकल जाता उन्हे भानी के सोने का इंतजार न करना पड़ता....और भानी भी कभी दादी के साथ तो कभी ताई के साथ खेलती....। हमें वो दिन याद हैं जब हम पढ़ाई में कहीं फंसते थे...और माँ और पिता कहीं व्यस्त होते थे तो हमारी समस्याएँ कभी बाबा दादी सुलटाते थे थे तो कभी चाचा-चाची या घर में आया गया कोई और मेहमान भी...हमारा तारण हार बन जाता था....।
मानस का कहना है कि भानी के कारण उसका मन ही पढ़ाई से हट जाता है...और हमें उसकी बातों में सच्चाई दिख भी रही है....मैं अक्सर सोचती हूँ कि अकेले रहने के जितने फायदे नहीं हैं उससे कहीं अधिक झमेला है । यह अकेले का कुनबा हमारा अकेला नहीं है....करोड़ों लोग हैं जो कि इस समस्या के शिकार हैं...और दादा-दादी केवल दीवारों पर लटक कर रह गए हैं....या एलबम और वीडियों में बंद हैं....और बच्चे परेशान हैं.....और ट्यूटर की राह देख रहे हैं...। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा। मानस को ट्यूटर के हाथ में छोड़ने का मन नही है...पर सोच रही हूँ कि उनकी समस्या अगले दिन पर अँटकी न रह जाए इस लिए एक ट्यूटर रख ही दूँ.....क्या करूँ...
मानस अभी सातवी में गए हैं और भानी अभी केजी में यानी मॉन्ट टू में हैं । चित्र मानस और भानी का है ।